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हमें राष्ट्र के राष्ट्रत्व को प्रकट करने का अवसर मिला है – दत्तात्रेय होसबाले जी

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आगरा. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने कहा कि भारत एक प्राचीन राष्ट्र है और हमें राष्ट्र के राष्ट्रत्व को प्रकट करने का अवसर मिला है. वर्षों के संघर्ष के बाद हमें स्वाधीनता प्राप्त हुई है. अपनी परंपरा, जड़ों के आधार पर एक श्रेष्ठ राष्ट्र के नाते खड़े होने के लिए आज भारत सिद्ध हो चला है. जाति, भाषा, पंथ-संप्रदाय के नाम पर हम झगड़े होते हुए देखते हैं. एक राष्ट्र, एक संस्कृति, एक जन यह सब हमने मन, कर्म, और वाणी में प्रकट नहीं किया तो विश्व गुरू बनने की इच्छा पूर्ण नहीं होगी. एक राष्ट्र के नाते हमें खड़े रहना है. संकट है, समस्याएं हैं, इन सब समस्याओं को ठीक करने का ठेका हम किसी दूसरे देश को नहीं दे सकते हैं. वर्तमान को ध्यान में रखते हुए भारत को विश्व गुरू बनाना है और यह सरकार का काम नहीं है, अपितु समाज को अपना दायित्व निभाना चाहिए. उन्होंने कहा कि बड़े सपने देखने वाला ही बड़ा काम कर सकता है.

सरकार्यवाह जी बुधवार (22 दिसंबर, 2021) को सिकंदरा स्थित एमपीएस स्कूल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, आगरा विभाग द्वारा आयोजित ‘स्वराज नाद’ कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि भारत आज परिवर्तन की दहलीज पर पहुंच गया है. इस सपने को पूरा करने के लिए संघ कार्य निरंतर चल रहा है.

संघ कार्य के दो आयाम – व्यक्ति निर्माण व समाज का संगठन

सरकार्यवाह जी ने कहा कि संघ कार्य के दो आयाम हैं. एक व्यक्ति निर्माण और दूसरा समाज का संगठन. व्यक्ति के अंदर चरित्र का निर्माण हो, अपने अंदर के दैवत्व को जाग्रत करें. सेवा और संवेदना द्वारा मानवता की सेवा तन, मन और धन से करना है और मातृभूमि की रक्षा भी.

हमें ऐसे चरित्र का निर्माण करना है जो शरीर, मन, बुद्धि, आत्मा से राष्ट्र के लिए उपयोगी बने.

दूसरों को उपदेश न दें, स्वयं का निर्माण करें

उन्होंने कहा कि समाज में जाग्रति आ रही है. अपने समाज पर विश्वास रखें, प्रेरणा लें, अपनी संस्कृति से और अपने इतिहास को याद रखें. समाज का काम समाज के सहयोग से चलता है. दूसरों को उपदेश न दें, स्वयं का निर्माण करें, समाज को समय दें और इस भाव को जीवन में उतारें.

दत्तात्रेय होसबोले जी ने कहा कि संघ की शाखा में शारीरिक, बौद्धिक कार्यक्रम होते हैं. भारतीय संगीत जीवन में अनुशासन लाता है. गीता के प्रथम अध्याय में रण संगीत (घोष) के महत्व का वर्णन है. रण संगीत की भारत में परम्परा रही है. सेना में भी इसका महत्व है, संघ में क्यों जोड़ा….! रण संगीत के माध्यम से ही व्यक्ति का निर्माण कर रहे हैं. स्वयंसेवक संगीत और ताल के साथ कदमताल करते हुए अनुशासन सीखता है. घोष मनोरंजन का साधन नहीं है.

भारत को महान और अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाएं

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व एअर चीफ मार्शल राकेश कुमार सिंह भदौरिया ने स्वयंसेवकों के घोष वादन की प्रशंसा करते हुए कहा कि धुनों पर प्रदर्शन करना आसान नहीं है. संघ ने घोष में कई नई धुनों को अपनाया है. देश तेजी से बदल रहा है. हम सब मिलकर भारत को महान बनाएं और अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाएं.

कार्यक्रम की अध्यक्षता वृंदावन चंद्रोदय मंदिर के संपर्क प्रमुख अनंत प्रभु दास जी ने की. मंच पर प्रांत संघचालक राजपाल सिंह और विभाग संघचालक भवेंद्र शर्मा उपस्थित रहे. एकल गीत मनोज ने ‘स्वतन्त्रता को सार्थक करने शक्ति का आधार चाहिए प्रस्तुत किया.

‘स्वराज नाद’ में घोष टोली के स्वयंसेवकों ने पंरपरागत वाद्ययंत्र तूर्य, नागांग, स्वरद, आनक, पणव, मधुलिका, बिगुल, बंशी, झाल्लरी और त्रिभुज आदि वाद्य यंत्र से भारतीय रागों पर आधारित रचनाओं का वादन किया. कार्यक्रम में वंशी 11 रचनाएं भूप, मीरा, तिलंग, शिवरंजनी, बंगश्री, गोवर्धन, कर्नाटकी, शिवराज, जयोस्तुत, जन्मभूमि, निर्भय, दुर्गा, श्रीपाद, भारतम. शंख की रचनाओं में किरण, उदय, श्रीराम, गायत्री, चेतक, सोनभद्र, कावेरी, दत्तात्रेय और परमार्थ का वादन किया.

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