रांची. पश्चिम बंगाल में चुनाव पश्चात जारी हिंसा को लेकर झारखंड के प्रबुद्ध नागरिकों का प्रतिनिधि मंडल आज राज्यपाल से मिला. प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति को राज्यपाल के माध्यम से एक ज्ञापन भेजा. जिसमें प. बंगाल में जारी हिंसा को रोकने और नागरिकों के संरक्षण हेतु अविलंब कदम उठाने की मांग की.
ज्ञापन में पश्चिम बंगाल की वर्तमान स्थिति पर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा गया है कि आज पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र, संविधान और बहुमत की आड़ में एक चुनी हुई सरकार होने के बावजूद स्थानीय असामाजिक तत्वों एवं स्थानीय प्रशासन के संरक्षण में नागरिकों की हत्या, लूटपाट, आगजनी, अपहरण, उन्हें घरों से बेदखल कर पलायन को मजबूर करना, महिलाओं के साथ बलात्कार, अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या को बसाने एवं देशद्रोही गतिविधियों जैसे अमानवीय असंवैधानिक कुकृत्य अपने चरमोत्कर्ष पर है.
ज्ञापन में कहा गया कि आज वहां मानवता कराह रही है, एक चुनी हुई सरकार के साथ मिलकर, लोग दहशत भरे माहौल, जहां बमों के धमाके और जीने के अधिकार से बंचित निरीह जनता के प्रति, सरकार का व्यवहार अत्यंत घृणास्पद, अमानवीय है तथा संविधान प्रदत अधिकारों का हनन किया जा रहा है. पश्चिम बंगाल के तीन हजार से भी अधिक हिन्दू बाहुल्य गांव के लगभग 70000 (सत्तर हजार) से अधिक लोग हिंसा के शिकार हुए है. 3886 स्थानों पर सम्पति का नुकसान उपद्रवियों द्वारा पहुंचाया गया है.
प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल को दिए ज्ञापन में कहा कि विचारों की भिन्नता लोकतंत्र की खूबसूरती है, संविधान की आत्मा है. इसी नाते संविधान निर्माताओं ने दो दलीय व्यवस्था के बजाय बहुदलीय शासन को चुना, किंतु आज पश्चिम बंगाल में सरकार जिस तरह से वैचारिक विरोधियों का कत्ल, उनकी सम्पति की लूटपाट, आगजनी, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, उनकी सम्पति से जबरदस्ती बेदखल करना, भारत के संविधान की धज्जी उड़ाने जैसा है. प्रश्रय के कारण हिंसा में पीड़ितों की संबंधित थाने में एफआईआर भी दर्ज नहीं की जा रही है.
02 मई को चुनाव परिणाम आने के बाद चुनचुन कर उन परिवारों एवं व्यक्तियों को निशाना बनाया जाने लगा, जिन्हें वर्तमान सरकार यह मानती है कि उक्त परिवार एवं व्यक्ति ने चुनाव में अपना मत मुझे नहीं दिया है.
पश्चिम बंगाल में महिलाओं के प्रति होने वाले दर्ज अपराध में 2018 में कुल 30994, हत्या के 1933 घटना एवं इसी वर्ष 16027 बच्चों के लापता होने के मामले दर्ज हुए. बेलगाम अपराधी और बेतहाशा बढ़ते अपराध लोकतांत्रिक चुनी हुई सरकार के माथे पर कलंक है जो नागरिकों को जीने के मौलिक अधिकार से वंचित कर रही है.
02 मई को चुनाव परिणाम के दौरान जैसे-जैसे वर्तमान सत्ताधारी दल का वर्चस्व बढ़ता गया, वैसे-वैसे राजनीतिक हिंसा का दौर भी बढ़ता गया. लोग अपनी जिन्दगी बचाने के लिए असम, झारखंड, उड़ीसा में भागने को मजबूर हुए. प्रतिनिधिमंडल ने मांग की कि वर्तमान स्थिति को देखते हुए संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए अविलंब राष्ट्रपति शासन लागू हो.
वर्तमान सरकार संविधान के विपरीत कार्य कर रही है. सरकार के इशारे पर राज्यपाल के साथ-साथ, केन्द्रीय संगठनों के सुरक्षा एवं नागरिक कार्यों में लगे नौकरशाहों के साथ दुर्व्यवहार लोकतंत्र के संघीय ढांचे पर प्रहार है.
राष्ट्रपति संविधान के सर्वोच्च संरक्षक हैं. ऐसे में लोकतंत्र और संविधान की रक्षा और निरीह जनता की सुरक्षा के लिए संविधान प्रदत्त अधिकारों का उपयोग कर आवश्यक कदम उठाएं.