करंट टॉपिक्स

प्रकृति जब संस्कृति से जुड़ जाती है तो वह धर्म का मार्ग बन जाती है

Spread the love

मुंबई। अप्रैल 1965 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने पहली बार रुइया कॉलेज में ‘एकात्म मानवदर्शन’ और ‘अंत्योदय’ के विचार प्रस्तुत किए थे। उसी दिन, 60 वर्ष बाद, उसी ऐतिहासिक स्थान पर 22 अप्रैल से 25 अप्रैल तक ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय एकात्म मानवदर्शन हीरक महोत्सव’ का आयोजन किया गया। इस श्रृंखला में अंतिम पुष्पांजलि अर्पित करते हुए महाराष्ट्र के राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन, केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य सुरेश सोनी एवं अन्य गणमान्यों ने सभा को संबोधित किया।

पीयूष गोयल ने कहा कि मेरी मां राजनीति से बहुत दूर थीं, लेकिन नानाजी देशमुख के आग्रह पर उन्होंने माटुंगा से अपना लोकसभा नामांकन दाखिल किया। कई लोग कहते थे बस डिपॉज़िट बच जाए। लेकिन मेरी मां लगातार तीन बार माटुंगा से सांसद चुनी गईं क्योंकि उन्होंने सामाजिक कार्य किए थे।

भारतीय संस्कृति में एकता की भावना है। हमने हजारों वर्षों से प्रकृति का सम्मान किया है। जब प्रकृति का संबंध संस्कृति से जुड़ जाता है तो वह धर्म का मार्ग बन जाती है। कश्मीर में अपराध करने वाले आतंकवादियों को कड़ी सजा दी जाएगी, जिसे आने वाली पीढ़ियां याद रखेंगी। हमारी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है और निकट भविष्य में भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी। विश्व ने वैश्विक संबंधों में भारत के महत्व को समझ लिया है।

राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन ने कहा कि “हमने कश्मीर में निर्दोष लोगों की जान गंवाई है”। हमारा उद्देश्य इस घातक प्रवृत्ति को समाप्त करना होना चाहिए। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन में स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी के विचारों का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। जैसे सीढ़ी स्वयं नहीं चढ़ती, बल्कि दूसरों को चढ़ने में मदद करती है, वैसे ही हमारे दीनदयाल जी भी हैं।

सुरेश सोनी जी ने कहा कि दीनदयाल जी के विचार कल, आज और कल भी समाज का मार्गदर्शन करते रहेंगे। दीनदयाल जी कहते थे कि मैंने कुछ नया नहीं कहा, मैंने तो बस भारतीय चिंतन को आधुनिक रूप में कहा है। भारतीय अध्यात्म को समझने के लिए आपको ज्यादा पढ़ने की जरूरत नहीं है, आप इसे देखकर ही समझ सकते हैं। विकास में सांस्कृतिक मूल्यों को हमेशा आर्थिक वृद्धि से ऊपर रखा जाना चाहिए। यूरोप की समृद्धि तो दिखाई देती है, लेकिन इसके पीछे कई लोगों का शोषण छिपा है।

अब, हमें कृत्रिम बुद्धि का उपयोग तो करना ही चाहिए, लेकिन हमें अपनी बुद्धि को इतना कृत्रिम नहीं बनाना चाहिए कि वह कृत्रिम ही हो जाए। प्रौद्योगिकी हमें बता सकती है कि खाद्य उत्पादन कैसे बढ़ाया जाए, लेकिन केवल संस्कृति ही हमें बता सकती है कि उत्पादित खाद्यान्न का क्या किया जाए। हम आर्थिक रूप से और जीवनशैली दोनों दृष्टि से समृद्ध होना चाहते हैं।

कार्यक्रम का समापन कल्याण मंत्र के साथ हुआ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *