इंदौर. झाबुआ जिले के प्रवास में जब मैं मेघनगर पहुंचा तो वहां के स्थानीय कार्यकर्ताओं की टोली श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निधि समर्पण के लिए यशवंत जी के घर पहुंची. देखा, सारा परिवार घर के बाहर प्रतीक्षा कर रहा था और स्वागत में ढोल बजने लगे. परिवार ने तिलक लगाकर अभिवादन किया तो कार्यकर्ताओं ने सहज ही कहा कि संघ के कार्यकर्ताओं का स्वागत कैसा, हम तो आपके परिवार के ही हैं. तो दूसरी ओर बड़ा सुखद उत्तर मिला कि आप सब तो परिवार के ही हो, पर आज आप रामदूत बनकर हमारे घर आए हो, स्वागत तो होना ही चाहिए.
सब लोग घर में बैठे थे, ठहाके लग रहे थे और अल्पाहार व मिठाई का आग्रह चल रहा था, लाखों के समर्पण की चर्चा चल रही थी.
तभी घर की मालकिन चाय की ट्रे लेकर आईं और हम सभी को चाय का प्याला देकर बोलीं – आप सभी की बातें सुनकर मेरे घर का काम करने वाली महिला ने भी श्रीराम मंदिर के लिए अपने छोटे से वेतन में से 500 रुपये देना का संकल्प लिया है… लगभग सभी का एक ही भाव था कि बहुत अच्छा है, श्रीराम मंदिर तो सभी के समर्पण से ही बनेगा और समर्पण तो भाव का होता है, राशि कितनी भी हो… तभी परिवार के सभी लोगों के साथ फोटो लेने की बात आई तो काम करने वाली महिला को भी बुलाया गया. हृदय में विचार चलता रहा कि समर्पण किसका बड़ा है पता नहीं…. करोड़ों कमाने वाला लाखों में दे रहा है और हजारों कमाने वाला सैकड़ों में … तभी यशवंत जी के परिवार ने फ़ोटो लेते समय उस महिला को सबसे आगे खड़ा कर दिया और पूरा परिवार उसके पीछे खड़ा हो गया तो लगा कि राम राज्य का ही दृश्य उभर आया हो और हृदय भाव विभोर हो गया और वृतांत को लिखने से रोक नहीं पाया. घर का काम करने वाली महिला और यशवंत जी का परिवार, दोनों के भाव हम सभी के लिए अनुकरणीय हैं.
अमीर – गरीब, छोटा- बड़ा, जाति भेद, वर्ग भेद सब भूलकर हम सभी राम मंदिर के निर्माण में लगे है. इसी भावना से ममता, समता, समरसता और एकात्मता से युक्त देश बनेगा और राम मंदिर से राष्ट्र मंदिर की भावना साकार होगी.
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