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विश्व जल दिवस – इजराइल से जल सुरक्षा भी सीखिए..!

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जयराम शुक्ल

इजराइल की गैलीना मनुस्किन मेरी सोशल मीडिया मित्र हैं. वे पूरी दुनिया घूमती हैं, पर भारत से उनका खास लगाव है. वे ये इतिहास जानती हैं कि यहूदियों को जब दुनिया भर से खदेड़ा जा रहा था, तब भारत में ही शरण मिली थी. कभी कभार मैं उनसे इजराइल का अपडेट लेता रहता हूँ. घुम्मकड़ होने के नाते वे पर्यटन स्थलों के बारे में पूछती रहती ह़ैं. खजुराहो को लेकर उनमें खास रुचि दिखी. तीन साल पहले राष्ट्रीय जल सम्मेलन के सिलसिले में खजुराहो में गया था तो विदेशी पर्यटकों को देखते ही गैलीना का स्मरण हो आया.

इत्तेफाक से इजरायली पर्यटक समूह से आमना-सामना हो गया. मैंने उनके स्थानीय गाइड के माध्यम से बातचीत की. इजराइल के जल प्रबंधन के बारे में काफी कुछ सुन रखा था, इसलिए जानना चाहा. बात संक्षेप में हुई, लेकिन जो बताया वह इजराइल के जल प्रबंधन का मूल मंत्र था -अरेस्ट द वाटर यानि कि पानी को गिरफ्तार करो.

केंद्र में भाजपा सरकार आने के बाद इजरायल से दोस्ती बढ़ी है. हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी इजराइल हो आए और वहां के जल प्रबंधन की बहुत चर्चा की. पानी के प्रबंधन को सीखने के नाम पर प्रदेश सरकारों के मंत्रियों और अफसरों का प्रतिनिधि मंडल वहां घूमने जाता रहता है.

इजराइल में खेती करने की तकनीक भी अद्भुत है. कम पानी, खाद, पेस्टीसाइड से भरपूर उपज. मोहन भागवत जी ने जब से यह कह दिया कि इजराइल की रक्षा-सुरक्षा प्रणाली व जल संरक्षण को अपना रोलमॉडल बनाना चाहिए, तब से हम जल संरक्षण और डिफेंस स्ट्रैटजी के लिए तेलअवीव की ओर देखने लगे हैं.

एक ऐसा देश जो भारत के आकार के मुकाबले मात्र 0.63 प्रतिशत है, जो चारों ओर से अपने जानी दुश्मनों से घिरा है, हिटलर की जर्मनी में जिसके वंशनाश से बीज बच गए, जिसे मरने के लिए अरब देशों की छोड़ी हुई बंजर भूमि दी गई, वह देश रोल मॉडल है.

उसकी विकास यात्रा भी लगभग हमारी आजादी के साथ शुरू हुई. ऐसा क्यों.?..  इसलिए कि उसने अतीत से सबक लिया और हम अपने अतीत पर मुदित होते हुए उसे दफन करते गए. जल प्रबंधन के मामले में भी ऐसा हुआ.

कुछ मित्र लोग पानी को गिरफ्तार करने की बात से आहत हो सकते हैं. क्योंकि यह अपराधियों के लिए प्रयुक्त होने वाला शब्द है. जल तो आपने यहां पवित्र शब्द है.

ऋग्वेद में इसे वरुण देवता माना गया है. हर हिन्दू के घर में होने वाली कर्मकाण्यीय पूजाओं में इसके नाम से स्वस्तिवाचन होता है. पानी के भी विविध अर्थ हैं. यह पौरुषीय स्वाभिमान है. लोकलाज का प्रतीक है. करुणा पानी में घुलकर आँसू बन जाती है.

नहाते समय सप्त नदियों के स्मरण से ही पानी अमृत का रूप धर लेता है और स्वर्ग का पथ प्रशस्त करता है. इसलिए इसके गिरफ्तारी की बात नहीं होनी चाहिए.

इंडिया वाटर पोर्टल की एक रिपोर्ट पढ़ रहा था कि भारत में 715 मिमी औसत वार्षिक वर्षा के मुकाबले इजराइल में 500 मिमी ही वर्षा होती है. देश के भीतर 9.5 प्रतीशत के मुकाबले इजराइल में 2 प्रतिशत वाटरबॉडीज़ हैं. इजराइल के लिए पानी पेट्रोल से भी ज्यादा कीमती है. इसलिए जरूरी है कि एक-एक बूँद का इस्तेमाल किया जाए. यानि 500 पानी गिरता है तो इसका पूरा का पूरा उपयोग है.

अब इजरायली पद्मपुराण या ऋग्वेद तो पढ़े नहीं जो हम जैसे उसकी महत्ता समझे व पूजें, सो इसलिए छटक के जाने न पाए के भाव के साथ अरेस्ट द वॉटर की अवधारणा दी.

इजराइल ही ऐसा देश है जो व्यर्थ का पानी बहाने, प्रदूषित या बर्बाद करने के गुनहगारों को कड़ी सजा भी देता है. यानि कि जिसने भी पानी को अरेस्ट करने में जरा भी हीलाहवाली की, उस व्यक्ति का अरेस्ट होना तय.

हम किसी का ज्ञान भले ही न ग्रहण करें, लेकिन उसे प्रवचन के लिए बुलाते जरूर हैं. पानी प्रबंधन के व्याख्यान के लिए भारत आए इजराइल के नेशनल वाटर सीवरेज अथॉरिटी के चीफ इंजीनियर डॉ. गिओरा एलन ने बताया कि हम क्या-क्या करते हैं.

पहली बात, पानी का अपव्यय और प्रदूषण सबसे बड़ा अपराध है. सीवरेज के यानि लेट्रिन म़ें प्रयोग होने वाले पानी तक का ट्रीटमेंट करके उपयोग हेतु बनाते हैं. सिंचाई में बूँद बूँद पानी का उपयोग करते ह़ैं, फिर इस पर भी नजर रखते हैं कि जो बचे उसी से फिर सिंचाई करें. भाप बनकर न उड़े इस पर भी नजर रखते हैं.

दैनिक जीवन में हर इजरायली पानी की स्वमेव राशनिंग करता है. पेस्टीसाइड, छार, लवण का उपयोग कम से कम और जिसने भी प्रदूषित किया उसकी खैर नहीं. कुल मिलाकर ये समझें कि गंभीर अपराध करने वाला एक बार बच भी जाए, पर पानी के प्रति अपराध करने वाले का बच पाना मुमकिन नहीं.

सूखा इजराइल आज इसलिए पानीदार है और पानी को ईश्वर मानने वाला यह महादेश कंगाल.

पानी हमारी सृष्टि का आधार है. समूचा वैदिक वांग्मय नदियों के किनारे पानी को साक्षी मानकर रचा गया. पानी हमारे संस्कारों में था, उस संस्कार को हमने त्यागा इसलिए हमारी यह गति हुई.

भारत में पानी के सम्मान की लड़ाई लड़ने वाले महान योद्धा पर्यावरण महर्षि अनुपम मिश्र ने हमारे पानी के संस्कारों को जागृत करने की लड़ाई लड़ी है.

अनुपम जी अब हमारे बीच नहीं हैं, पर कई ऐसे जागरूक योद्धा हैं जो अभी भी यह जंग छेड़े हुए हैं.

हाँ, इनका रोलमॉडल इजराइल नहीं है. इनका रोलमॉडल यही भारत भूमि है, यहीं के जन हैं, यहीं की परंपरा व संस्कृति है, यहीं के संदर्भ हैं और यहीं के आदर्श भी. आगे इन्हीं संदर्भों पर आपको हम सब स्वयं शामिल करते हुए जलसंरक्षण पर विचार करें, शायद फिर पहले की तरह पुनः पानीदार बन जाएं.

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