जनजातीय, सामाजिक प्रतिबद्धता रखने वाले परिवार से आने वाली जास्वंदा विवाह से पहले ही कल्याण आश्रम के कार्य में शामिल हो गई थीं. जास्वंदा अमरूजी टेकाम मूल रूप से गढ़चिरौली के निकट कंटागटोला की निवासी हैं. हमें कुछ अलग और बेहतर करना है, यह चमक उसकी आंखों में हमेशा थी.
यह लड़की पहले से ही नक्सल प्रभावित इलाकों में रहती है. कल्याण आश्रम में आने के बाद विभिन्न संघ प्रचारकों और कार्यकर्ताओं से उसका परिचय हुआ. राष्ट्र के प्रति उनके समर्पित और व्रतस्थ जीवन को देखकर उसने मन में ठान लिया कि उसे कल्याण आश्रम के लिए पूर्णकालिक कार्य करना है.
अवसर के अनुसार एक दूसरे का सहयोग करना, सद्भाव से रहना, सुख में सहभागी होना बचपन से ही उसके मन में अंकित हो गया था और वनवासी कल्याण आश्रम के संपर्क में आते ही उसका जीवन बदल गया.
जास्वंदा ने बाल संस्कार केंद्र के माध्यम से काम करना शुरू किया. दूरदराज के क्षेत्रों में बच्चों को शिक्षित करने के लिए कई गांवों में चल रही कल्याण आश्रम की एक महत्वपूर्ण परियोजना है. इसके लिए कई गांवों की यात्रा, संस्कार कक्षाओं से उभरने वाले बच्चे आदि को ध्यान में लेते हुए जास्वंदा को प्रयास, सेवांकुर, महर्षि कर्वे स्त्री शिक्षण संस्थान जैसे कई पुरस्कार मिले हैं. एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता के लिए पुरस्कार प्राप्त होना सम्मान की बात है. वास्तव में यह कल्याण आश्रम का ही गौरव है.
पंढरी दररो, के साथ शादी के बंधन में बंधकर जास्वंदा ने अपने साथी के साथ सामाजिक कार्यों में अपनी भागीदारी को मजबूत किया. विशेष यह कि दोनों ने विवाह के तीसरे दिन, यानि हल्दी निकलने से पहले ही, काम करना शुरू कर दिया था. अर्थात् कार्य में जुटने के लिए सभी को साथ रखने का स्नेहपूर्ण स्वभाव और परिवार का सहयोग पूरक है.
विवाह के बाद जास्वंदा ने समाजशास्त्र विषय के साथ ओपन यूनिवर्सिटी से बी.ए. पूरा किया. उसके दो बच्चे हैं. जब बच्चे बहुत छोटे थे तो उन्हें संभालते हुए कार्य करने, यात्रा करने, वक्त पड़ने पर सभी रिश्तेदारों और ससुराल वालों की देखभाल करने और उनकी खुशी में भाग लेने जैसे कठिन काम जास्वंदा ने सहजता से किए. पूरी मनोभावना के साथ काम करते हुए उसे एक बहुत ही अजीब घटना का सामना करना पड़ा.
उसका बेटा हर्षल जब छह महीने का था, तो बाल संस्कार वर्ग के काम के लिए एक कार्यकर्ता पोहरी मट्टामी के साथ सेविकाओं से मिलने जास्वंदा काकरगाटा गांव गई थी. सेविकाओं से मुलाकात हुई, लेकिन लौटते समय कुछ देर हो गई. बच्चे की चिंता होने लगी थी. उसी बीच एक निजी वाहन मिला, कुछ दूर चलने के बाद चालक उन्हें बार-बार अवांछित सवालों और अजीबोगरीब नजरों से परेशान करने लगा. जब वह उसे छूने की कोशिश कर रहा था, तो जास्वंदा के अंदर की रणरागिनी जाग उठी. उसने बलपूर्वक जैसे-तैसे गाड़ी रूकवाई और दोनों को छुड़ाने में सफल रही. मौका पड़ने पर सख्त होकर उसने कई जनजातीय कार्यकर्ता तैयार किए. गांव-गांव जाकर वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यों के बारे में बताया. गांव की स्त्रियों को अपना बनाया.
बाल संस्कार वर्ग संचालित करने के उद्देश्य से 16 साल की आयु में कल्याण आश्रम में काम करने आई एक लड़की आज अपनी उपलब्धियों के कारण विदर्भ प्रांत की महिला कार्यप्रमुख बन गई हैं. पूरे विदर्भ के साथ-साथ नक्सल प्रभावित गांवों (गढ़चिरौली जिले) में वह जाती हैं. वह कल्याण आश्रम की कई गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल हैं जैसे युवा महिलाओं को अपने काम में शामिल करना, विभिन्न शिविरों का आयोजन, बैठकें आयोजित करना, स्वयं सहायता समूह चलाना, युवा जागरूकता शिविर, परिचय कक्षाएं आदि. कुरखेड़ा, अहेरी और भामरागढ़ इन तीन स्थानों पर हमारे छात्रावास हैं. नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के बच्चे अपने छात्रावासों में पढ़ें, वह संस्कारित हों, वे बच्चे पढ़कर बड़े बन जाएं इसके लिए भी प्रयास कर रही हैं. यात्रा और इन कार्यों में आने वाली विभिन्न कठिनाइयों को पार करते हुए जास्वंदा बहादुरी से आगे बढ़ रही है…
पहाड़ी जंगलों में खिलने वाले फूल हमेशा ताजे, ताजगी देने वाले, मन को प्रसन्न करने वाले, मनमोहक, मुस्कुराते हुए और हमारे हौसले को बढ़ाने वाले होते हैं. उसी तरह यह जास्वंदा नामक जनजातीय फूल इस बात का एक अच्छा उदाहरण है कि कल्याण आश्रम के परिवेश में कैसे दृढ़ संकल्प, देशभक्ति की भावना, कुछ अच्छा करने का संघर्ष और अपने पति का मजबूत समर्थन सामने आ सकता है.
जनजातीय समुदाय से जास्वंदा जैसे कई फूल पैदा हों, यही कामना है…
वैशाली देशपांडे
पश्चिम क्षेत्र महिला कार्य सहप्रमुख वनवासी कल्याण आश्रम
(विश्व संवाद केंद्र, पुणे)