करंट टॉपिक्स

योगी सरकार ने वन विभाग की 100 बीघा भूमि को पीर के अवैध कब्जे से मुक्त करवाया

Spread the love

उत्तरप्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार के कार्यकाल में कानून अपना काम कर रहा है. तुष्टीकरण या गुंडागर्दी के कारण जिस ओर कोई देखता नहीं था, अब नियमानुसार कार्रवाई हो रही है. वक्‍त के साथ हालात भी बदल रहे हैं. पीर खुशहाल के अवैध आलीशान साम्राज्‍य पर सरकारी बुलडोजर चल गया है. पहले जिस किले की कोई ईंट तक छूने की हिम्‍मत नहीं कर सकता था, वहां आज सब कुछ जमींदोज है. वन विभाग अपनी बेशकीमती 100 बीघा जमीन वापिस हासिल कर चुका है.

पहले, चारों तरफ ऊंची दीवारों और खुफिया कैमरों से लैस 100 बीघा जमीन पर बनी इमारत की किलेबंदी ऐसी थी कि बगैर इजाजत कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता था. संदिग्‍ध गतिविधियों को लेकर कभी कोई सामाजिक कार्यकर्ता या पत्रकार आवाज उठाता तो उस पर हमले करा दिए जाते थे. सरकारें बदलती रहीं, मगर तुष्‍टीकरण की राजनीत‍ के चलते सब मेहरबान नजर आते थे. शिकायतों के अंबार लगे मगर सरकारी जमीन खाली कराने की कोई हिम्मत नहीं कर सका.

वन विभाग की जमीन को 30 साल की लीज पूरी होने के बाद भी खाली नहीं करने को लेकर मुजफ़फरनगर प्रशासन ने अब सख्‍त तेवर अपनाए. प्रशासन ने अभियान चलाकर पीर खुशहाल द्वारा मेहमान नवाजी के लिए बनाए 40 कमरों को ध्वस्त कर दिया है. खुशहाल के आवास को ध्वस्त करने से पहले ही परिवार अपना सामान समेट चुका है. सात कमरों की चाबी वन विभाग को सौंप दी गई है. वन रक्षक सुनील कुमार ने बताया कि मामले में पीर खुशहाल की पत्नी नाज़िया अफरीदी उनके दामाद सूफी जव्वाद व एक अन्य के खिलाफ भोपा थाने में मामला भी दर्ज करवाया गया है. बिहारगढ़ स्थित इमारत पर प्रशासन की जेसीबी गरज रही थी तो पीर खुशहाल की पत्नी ने यह कहते हुए विरोध किया कि देश-विदेश में काफी मुरीद हैं, इसलिए इमारत नहीं तोड़ी जानी चाहिए. एडीएम प्रशासन अमित सिंह ने स्पष्ट किया कि जमीन वन विभाग की है और कब्‍जा अवैध है. ध्‍वस्‍तीकरण की कार्रवाई जारी रहेगी.

कई शादियां, बेशुमार दौलत, आलीशान ठिकाना, अभेद किलेबंदी

खुशहाल नामक व्यक्ति 1964 में पाकिस्‍तान से भारत आया था. उसने देवबंद आने का वीज़ा लिया था. एक बार यहां आया तो फिर लौटकर गया ही नहीं. मुजफ्फरनगर के भोपा इलाके में बिहारगढ़ के पास उसने ठिकाना बना लिया. शुरुआत रुहानी समस्‍याओं के निदान से की. मुस्‍ल‍िम आबादी बहुल इलाके में देखते-देखते खुशहाल मियां चमत्‍कारी पीर खुशहाल हो गए. दो शादियां पाकिस्‍तान में करके आए थे और दो यहां आकर कीं. जैसे-जैसे पीर खुशहाल के ठिकाने पर लोगों का मजमा बड़ा होता गया, वैसे-वैसे उनके रहस्‍यमयी संसार के चर्चे बढ़ते गए. दौलत के ढेर लगते गए.

तुष्‍टीकरण की राजनीति करने वाले दल और उनके नेताओं को खुशहाल के ठिकाने की भीड़ में फायदा नजर आया तो वे भी मुरीद बनकर पहुंचने लगे. 1975 में पीर खुशहाल के नाम पर तत्‍कालीन सरकार ने बड़ा खेल किया. वन विभाग का हरा-भरा 100 बीघा का जंगल लीज़ की आड़ में उनको सौंप दिया गया. बात हरियाली को बरकरार रखने तक रहती तो ठीक थी, मगर इसके बाद वहां जो कुछ हुआ, उसके पीछे और भी उलझाऊ कहानी है.

हरा-भरा जंगल उजाड़कर 100 बीघा जमीन पर खड़ा किया ‘महल’

दौलत और एशोआराम की दुनिया से पीर-फकीर, साधु-संत हमेशा दूर रहते हैं. मगर पीर खुशहाल की कहानी बिल्‍कुल इसके उलट नजर आती थी. कई शादियां कर चुके पीर खुशहाल ने इबादतगाह के नाम पर वन विभाग की 100 बीघा जमीन लीज पर ली थी और धीमे-धीमे हरा-भरा जंगल उजाड़कर आलीशान महल जैसी इमारत खड़ी की थी. हर तरफ ऊंची दीवारें बनवाकर मजबूत किलेबंदी करा दी थी. बाहर के किसी भी अंजान व्‍यक्‍त‍ि को इमारत के अंदर जाने की इजाजत नहीं दी जाती थी. पिछले डेढ़ दशक में पीर खुशहाल के ठिकाने पर और ज्‍यादा काम कराया गया था. कुछ मजार बनवाए गए थे और प्रचारित किया गया था कि यहां सब कुछ चमत्कारी है. यहां माथा टेकने से हर समस्‍या दूर हो जाती है. इमारते के हर हिस्से में खुफिया कैमरे लगाए गए थे, जिनसे हर तरफ निगरानी कराई जाती थी. आसपास रहने वाले लोग बताते हैं कि पीर खुशहाल के अभेद्य ठिकाने में बाहर से ट्रकों में भरकर गैस सिलेंडर, डीजल आदि सामान जाता देखा जाता था. इतने सामान का अंदर क्‍या होता था, इस बारे में किसी को जानकारी नहीं दी जाती थी. लोग बस इतना ही जान पाते थे कि जीवन की समस्‍याओं में जकड़े लोग यहां पहुंचते थे. स्‍थानीय लोग बताते हैं कि पाकिस्‍तान, बांग्‍लादेश, अफगानिस्‍तान आदि देशों से आने वाले लोग पीर खुशहाल के ठिकाने पर खूब चढ़ावा चढ़ाते थे.

पीर खुशहाल के ठिकाने पर संदिग्‍ध गतिविधियां देखे जाने के बाद गुप्‍तचर एजेंसियों ने सरकार को रिपोर्ट भेजीं थीं, मगर तत्‍कालीन सरकारों ने रिपोर्ट को दबा दिया. वहां विदेशों से लोगों का आना-जाना लगा रहा. सामाजिक कार्यकर्ता अनुज मलिक बताते हैं कि पीर खुशहाल के ठिकाने पर संदिग्‍ध गतिविधियों को लेकर लगातार शिकायतें की गईं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ. हां, शिकायत करने वाले जरूर मुश्‍क‍िल में पड़ गए. बकौल अनुज मलिक, उन्‍होंने पीर खुशहाल को लेकर आवाज उठाई तो उन पर हमला हुआ. किसी पत्रकार ने कभी इसे लेकर खबर छापी तो उसे भी धमकी और हमले का सामना करना पड़ा.

1975 से 2020 यानी 45 साल तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. योगी सरकार अब एक्‍शन मोड़ में आई तो पीर खुशहाल के अवैध ठिकाने पर कानून का बुलडोजर चला.

सांसद संजीव बालियान ने लिखा था पत्र

वन विभाग की जमीन को सन् 1964 में लीज पर लेकर उस पर अवैध रूप से कब्जा कर 100 बीघा जमीन पर एक किलेनुमा इमारत का निर्माण कर लिया गया था. 40 से ज्यादा कमरे और कारागार की तरह बैरक बनाई हुई थी. लीज समाप्त होने पर वन विभाग ने जमीन खाली करने को कई नोटिस भिजवाए, मगर इसका कोई असर नहीं पड़ा. कानूनी लड़ाई जारी रही. पीर खुशहाल का 2017 में निधन हो गया. तत्‍कालीन केन्‍द्रीय मंत्री एवं वर्तमान सांसद संजीव बालियान ने वन विभाग की जमीन खाली नहीं हो पाने को लेकर अफसरों को पत्र भी लिखा था. उसके परिवार को सिर्फ नोटिस भेजे जा रहे थे, जिसका कोई असर नहीं हो रहा था.

पाञ्चजन्य

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *