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अयोध्या – फैज़ाबाद के जिला जज (ब्रिटिश जज) ने राम जन्मस्थान पर बाबरी ढांचे को दुर्भाग्यपूर्ण कहा था…

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भारत में मुग़ल काल से ही यूरोपियन व्यापारियों और यात्रियों का आना प्रारंभ हो गया था. इनमें से बहुतों ने अपने यात्रा वृत्तांत संस्मरण आदि लिखे हैं. जब राम जन्मभूमि पर स्थित मंदिर को बाबर द्वारा तोड़े जाने के प्रमाण मांगे गए, तब अनेक विद्वानों ने जगह-जगह से ढूंढकर इन अभिलेखों को प्रस्तुत किया. ये वक्तव्य राम जन्मभूमि मामले के महत्वपूर्ण दस्तावेज बन गए. इन वृत्तांतों में राम जन्मस्थान के अलावा अयोध्या के बारे में कई बातें, स्थानीय लोगों की सोच मान्यता आदि का पता चलता है. वर्णन विस्तृत हैं और उस काल का चित्र आंखों के सामने खींचते हैं.

ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापारी विलियम फिंच

विलियम फिंच 1608 ई. से 1611 ई. तक भारत में रहा था. उसने अयोध्या की भी यात्रा की थी. जिसके बारे में उसने लिखा है कि अवध (अयोध्या) एक प्राचीन नगर है जो एक पठान राजा की राजधानी है और इस समय खंडहर हो गई है. यहां का क़िला चार सौ वर्ष पुराना है. यहां पर रामीचंद्र (रामचंद्र) का क़िला और महल भी खंडहर के रूप में विद्यमान है. इन्हें भारतीय लोग बड़ा देवता मानते हैं और यह कहते हैं कि उन्होंने यहां अवतार लिया था. यहां पर कुछ ब्राह्मण रहते हैं जो पास की नदी में स्नान करने वाले सभी यात्रियों के नाम लिखते हैं और उनके अनुसार यह प्रथा चार लाख साल से चली आ रही है.

बहुभाषी इतालवी जोसेफ़ टाइफ़ेनथेलर

टाइफ़ेनथेलर इतालवी, लैटिन, स्पेनिश, फ्रेंच, अरबी, हिन्दी, फारसी और संस्कृत का जानकार था. उसने 1766 ई. से 1771 ई. के बीच का समय अवध में बिताया था.

अपने वृत्तांत ‘देस्क्रिप्तियो इंडी’ में वो लिखते हैं कि “रामकोट क़िले को ध्वस्त करके उसी स्थान पर तीन गुम्बदों वाला एक मुसलमानी पूजा-स्थल बनवाया. बाबर ने राम-जन्मस्थान पर स्थित मंदिर को नष्ट करके उसके खंभों का उपयोग करते हुए एक मस्जिद बना दी, लेकिन हिन्दुओं ने उस स्थान पर अपना अधिकार छोड़ने से इंकार कर दिया, तथा मुग़लों द्वारा उनको रोकने के प्रयासों के बावजूद वे इस स्थान पर पूजा के लिए आते रहे. मस्जिद के प्रांगण में उन्होंने एक राम चबूतरा बना लिया था, जिसकी तीन बार प्रदक्षिणा करने के बाद वे भूमि को साष्टांग प्रणाम करते हैं. वे चबूतरा और मस्जिद में अपनी पूजा करते हैं. इससे भी अधिक प्रसिद्ध स्थल सीता की रसोई है जो राम की पत्नी थीं. यह शहर के पास एक ऊंचे टीले के बीच में है.

औरंगज़ेब ने रामकोट क़िले को ध्वस्त करके उसी स्थान पर तीन गुम्बदों वाला एक मुसलमानी पूजा-स्थल बनवाया; कुछ लोगों का कहना है कि बाबर ने बनवाया. पांच हाथ ऊंचे काले पत्थरों से बने उन चौदह स्तम्भों को कोई भी देख सकता है जो यहां लगे हैं. इनमें से 12 तो मस्जिद के अंदर महराबों को संभालने के लिए लगे हैं. यह कहा जाता है कि स्तम्भों के ये टुकड़े, जिन पर कलाकारों ने नक़्क़ाशी की हुई है, हनुमान द्वारा लंका, जिसे यूरोप के लोग सिलोन कहते हैं, से लाए गए थे.

इसके बाईं ओर पांच इंच ऊंचा एक चबूतरा है जो चूना-पत्थर से आच्छादित है. हिन्दू इसे वेदी कहते हैं. वेदी कहने का कारण यह है कि यहां पर विष्णु ने राम के रूप में जन्म लिया था और यहीं उनके तीन भाई भी पैदा हुए थे.

एंग्लो-इंग्लिश लेखक माण्टगोमरी मार्टिन

ब्रिटिश सिविल सर्वेंट के रूप में काम करते हुए माण्टगोमरी मार्टिन ने 1828 ई. में इस क्षेत्र का सर्वेक्षण करने के बाद लिखा है कि – धर्मांध ने (बाबर और औरंगजेब), जिसके द्वारा मंदिर गिराए गए हैं, कहा जाता है कि अत्यधिक महत्वपूर्ण मंदिरों के ऊपर मस्जिदों का निर्माण कराया, लेकिन अयोध्या की मस्जिद, जो अब तक पूरी खड़ी है, तथा जो आधुनिक दिखती है, की एक दीवार पर लगे हुए अभिलेख के द्वारा बाबर द्वारा बनाई हुई कही गई है, जो औरंगज़ेब से पांच पीढ़ियों पहले हुआ था… इसके नाम, रामकोट से मेरा यह अनुमान है कि यह वास्तव में राम द्वारा बनाए गए भवन का वास्तविक हिस्सा रहा होगा.

यह कहा जाता है कि ईंटों के लिए खुदाई करते समय कई मूर्तियां निकली थीं, लेकिन उनमें कुछ को, जिन्हें मैं ढूंढ सका, इतनी खण्डित हो गई थीं कि उनकी पहचान मुश्किल थी, केवल एक मूर्ति को छोड़कर जो गुप्तचर (घाट) के अखाड़े से प्राप्त हुई थी, जहां से यह कहा जाता है कि लक्ष्मण ने जल समाधि ली थी. इस मूर्ति में एक नारी और पुरुष एक साथ दिखाए गये हैं, नारी के सिर पर कोई ऐसी चीज़ है जैसा कि मैंने पहले कभी नहीं देखा था. इन दो आकृतियों के अतिरिक्त बाबर द्वारा निर्मित मस्जिद में लगाए गए खम्भे ही हैं जो इस नगर की प्राचीनता का संकेत देते हैं. ये काले पत्थर के हैं तथा इस प्रकार के खम्भे पहले हमने कभी नहीं देखे थे. जैसा कि संलग्न रेखाचित्र से समझा जा सकता है, ये किसी हिन्दू मंदिर से लिए गए होंगे, यह इन स्तम्भों के आधार पर बने आकारों से समझा जा सकता है. यद्यपि ये आकृतियां धर्मांध के मानस को संतुष्ट करने के लिए काट दी गयी हैं, यह संभव है कि ये खम्भे विक्रम द्वारा बनवाए गए मंदिर के हों.

सर एडवर्ड थार्नटन, ईस्ट इंडिया कंपनी

ब्रिटिश राजनयिक एडवर्ड थार्नटन ने 1854 ई. में ईस्ट इंडिया कम्पनी की सरकार का गजेटियर लिखा था. वो कहता है कि बाबर की मस्जिद में 14 खम्भे बहुत सुंदर नक्काशी किए हुए हैं जो पुराने हिन्दू मंदिर से लिए गए थे. उसने यह भी लिखा कि हिन्दू यहां तीर्थ-यात्रा पर आते हैं तथा राम चबूतरा की पूजा करते हैं, क्योंकि यह उनका विश्वास है कि यह राम का जन्मस्थान था.

स्कॉटिश शल्यचिकित्सक और पर्यावरणविद एडवर्ड बालफोर

एडवर्ड बालफोर सर्जन जनरल था. उसने अपनी एन्साइक्लोपीडीया में लिखा है कि – “यहां पर कई जैन मंदिर और तीन मस्जिदें हैं जो तीन हिन्दू मंदिरों के स्थान पर बनी हैं. जन्मस्थान की मस्जिद, जहाँ राम पैदा हुए थे, स्वर्ग द्वार मंदिर, उनके अवशेष खड़े हैं तथा त्रेता का ठाकुर, जहां उन्होंने यज्ञ किया था.

पी कारनेगी द्वारा लिखित फ़ैज़ाबाद तहसील का इतिहास

पी कारनेगी ने फैज़ाबाद तहसील का इतिहास 1870 में लिखा. उसने अयोध्या में रामकोट के बुर्ज, मीनारों और महलों का विवरण देते हुए यह बताया है कि राम-जन्मस्थान मंदिर के स्तम्भ कसौटी पत्थर के नक्काशी करके बनाए गए हैं. जिनका उपयोग मुसलमानों ने बाबर की मस्जिद के निर्माण के लिए किया था. कारनेगी ने यह भी उल्लेख किया है कि अट्ठारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में समीप की ही भूमि में एक नए जन्मस्थान मंदिर का निर्माण कराया गया था. उसका यह कहना है कि 1855 ई. तक हिन्दू और मुसलमान दोनों ही इस मस्जिद में पूजा करते थे. कारनेगी आगे लिखता है कि –

हनुमानगढ़ी से कुछ 100 क़दम दूर जन्मस्थान है. 1855 ई. में जब बड़ा दंगा हुआ था तो हिन्दुओं ने हनुमानगढ़ी और मुसलमानों ने जन्मस्थान पर क़ब्ज़ा कर लिया. इस अवसर पर मुसलमानों ने हनुमानगढ़ी पर हमला किया, लेकिन उनको काफ़ी नुक़सान के साथ पीछे भागना पड़ा. हिन्दुओं ने उनका पीछा किया और तीसरे प्रयास में जन्मस्थान पर अधिकार कर लिया, जिसके दरवाज़े पर 75 मुसलमानों की मृत्यु हुई. जिनकी क़ब्रें वहां पर हैं, उसे गंज-ए-शाहिदां कहा जाता है. अवध के राजा (नवाब) की सैनिक टुकड़ियां वहां खड़ी थीं, किंतु उन्हें हस्तक्षेप करने का आदेश नहीं था. यह कहा जाता है कि इस समय तक हिन्दू और मुसलमान दोनों ही समान रूप से जन्मस्थान मंदिर-मस्जिद में पूजा करते थे. ब्रिटिश काल में झगड़े को दूर करने के लिए एक रेलिंग बना दी गयी, जिसके अंदर मुसलमान पूजा करते थे तथा उसके बाहर हिन्दुओं ने एक चबूतरा बना लिया और पूजा करने लगे.

फैजाबाद के जिला जज एफ ई ए चामियर का निर्णय

फैज़ाबाद के जिला जज कर्नल चामियर का वह निर्णय भी उल्लेखनीय है जो उन्होंने सिविल अपील संख्या 27/1885 के सिलसिले में इस स्थल का निरीक्षण करने के बाद दिया था. उसकी शब्दावली कुछ प्रकार है : मैंने कल भी सभी पक्षों की मौजूदगी में विवादित सभी स्थलों का निरीक्षण किया. मैंने पाया कि सम्राट बाबर द्वारा निर्मित मस्जिद अयोध्या में नदी के किनारे पर पश्चिम अथवा दक्षिण पर खड़ी है तथा यहां आबादी नहीं है. यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक मस्जिद, हिन्दुओं द्वारा विशेष रूप से पवित्र मानी जाने वाली भूमि पर खड़ी है. किंतु, यह घटना 356 वर्ष पहले की है और इस शिकायत को दूर करने के लिए काफ़ी विलम्ब हो गया है. अब जो किया जा सकता है, वह यह कि पक्षों को यथास्थिति में रखा जाए. प्रस्तुत मुक़दमे जैसे मामले में किसी भी प्रकार का परिवर्तन लाभ की अपेक्षा हानि तथा व्यवस्था को नुक़सान ही पहुंचाएगा.

फैज़ाबाद अथवा अवध के गजेटियर्स और प्रतिवेदन

फैज़ाबाद अथवा अवध के पुराने गज़ेटियर्स और प्रतिवेदन आदि भी इस मामले पर प्रकाश डालते हैं, जिनमें अयोध्या में राम-जन्मभूमि पर बाबरी ढांचा बनाए जाने की जानकारी मिलती है. उनकी सूची इस प्रकार है –

  1. गजेटियर ऑफ़ दी प्रॉविन्स ऑफ़ अवध, 1877 खण्ड एक, पृष्ठ 6-7
  2. फ़ैज़ाबाद सेटेलमेंट्स रिपोर्ट, 1880
  3. इम्पीरिअल गजेटियर ऑफ़ इंडिया, प्रोविंशीयल सीरीज़, यूनाइटेड प्रॉविन्सेज़ ऑफ़ आगरा एंड अवध, वॉल्यूम दो, सन 1881, पृष्ठ 338-39
  4. ए. फ़्यूरर, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया रिपोर्ट 1891, दी मॉन्युमेंटल एंटिक्विटीज़ एंड इन्स्क्रिप्शन इन दी नॉर्थ वेस्ट प्रॉविन्सेज़ एंड अवध पृष्ठ 296-97
  5. एच. आर. नेविल, बाराबंकी डिस्ट्रिक्ट गजेटियर, लखनऊ 1902, पृष्ठ 172-77
  6. एन्साइकलोपीडिया ब्रिटेनिका, 15वां संस्करण, 1978 (एवं पूर्व के संस्करणों में), खंड एक पृष्ठ 693

 

प्रशांत बाजपई

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