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ईवीएम मशीनों से छेड़छाड़ का सच और झूठ!

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लोकसभा चुनावों की आहट के चलते विपक्षी दलों ने एक बार फिर ईवीएम मशीनों में छेड़छाड़ को मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है. हालांकि कुछ समय पूर्व संपन्न राज्यों के विस चुनावों के दौरान यह मुद्दा नहीं बना क्योंकि चुनावों में कांग्रेस को जीत नजर आ रही थी.

हाल ही में 19 जनवरी को पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की रैली में जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला ने ईवीएम को ‘चोर मशीन’ कहा था, और इसी बीच अब एक हैकर के दावे से मतदाताओं के मन में भी सवाल पैदा हो रहे हैं. तो चुनाव आयोग ने दिल्ली पुलिस में ईवीएम मशीन हैक करने का दावा करने वाले हैकर के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई है और उसके दावे को गलत करार दिया है. दूसरी ओर सरकार को घेरने के लिए विपक्षी दल चुनाव आयोग पर सवाल उठा रहे हैं. ईवीएम मशीन हैक करने के दावों को सिद्ध करने के लिये जून 2017 में चुनाव आयोग ने सभी को, राजनीतिक दलों सहित हैकर्स को खुला चैलेंज दिया था, लेकिन इसमें राजनीतिक दलों ने भाग लिया ही नहीं और अन्य किसी को सफलता नहीं मिली.

इन चर्चाओं में ईवीएम मशीन से जुड़े कुछ तथ्यों के बारे में जानकारी होना आवश्यक है –

ईवीएम को लेकर चुनाव आयोग के दावे

चुनाव आयोग के दावे के अनुसार ईवीएम कंप्‍यूटर नियंत्रित नहीं है, बल्कि अपने आप में स्वतंत्र मशीन है. ईवीएम इंटरनेट या किसी अन्य नेटवर्क के साथ किसी भी समय जुड़ी नहीं होती. इसलिए रिमोट या अन्य किसी डिवाइस के माध्यम से हैक करने की कोई संभावना नहीं है.

ईवीएम में वायरलैस या किसी बाहरी हार्डवेयर पोर्ट के लिए कोई फ्रीक्वेंसी रिसीवर नहीं है, इसलिए हार्डवेयर पोर्ट, वायरलेस, वाईफाई या ब्लूटूथ डिवाइस के जरिए किसी प्रकार की टेम्परिंग या छेड़छाड़ संभव नहीं.

कंट्रोल यूनिट (सीयू) और बैलेट यूनिट (बीयू) से केवल एन्क्रिप्टेड या डाइनामिकली कोडिड डेटा ही स्वीकार किया जाता है. सीयू द्वारा किसी अन्य प्रकार का डेटा स्वीकार नहीं किया जा सकता.

ईवीएम मशीनों को स्वदेशी तकनीक से बनाया जाता है. पब्‍लिक सेक्‍टर की दो कंपनियां भारत इलैक्‍ट्रॉनिक्‍स लिमिटेड, बंगलुरू एवं इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद में ये मशीनें बनाती हैं.

दोनों कंपनियां ईवीएम मशीनों के सॉफ्टवेयर प्रोग्राम कोड आं‍तरिक तरीके से तैयार करती हैं. उन्‍हें आउटसोर्स नहीं किया जाता. प्रोग्राम को मशीन कोड में कन्‍वर्ट किया जाता है. इसके बाद ही विदेशों के चिप मैन्‍युफैक्‍चरर को दिए जाते हैं. हर माइक्रोचिप की मेमरी में एक पहचान संख्‍या होती है. उन पर निर्माण करने वालों के डिजिटल हस्‍ताक्षर होते हैं. माइक्रोचिप को हटाने की किसी भी कोशिश का पता लगाया जा सकता है. साथ ही ईवीएम को निष्‍क्रिय बनाया जा सकता है. कुछ इंजीनियर ही इसका स्रोत कोड जानते हैं.

ऐसे में एक सवाल उठता है कि क्या ईवीएम का निर्माण करने वाले इसमें कोई हेराफेरी कर सकते हैं? इस पर आयोग का कहना है कि ऐसा संभव नहीं है. सॉफ्टवेयर की सुरक्षा के बारे में निर्माण के स्तर पर कड़े सुरक्षा प्रोटोकोल हैं. ईवीएम के निर्माण के बाद उसे पहले राज्य और उस राज्य के किसी जिले में भेजा जाता है. इसके बाद वहां से फिर दूसरे जिले में भेजा जाता है. ईवीएम बनाने वाले यह पता नहीं कर सकते कि कौन सा उम्मीदवार किस विस क्षेत्र से चुनाव लड़ेगा और बैलेट यूनिट में उम्मीदवारों की क्रम संख्या क्या होगी.

ईवीएम पर सीरियल नंबर

चुनाव आयोग के अनुसार हर ईवीएम का एक सीरियल नंबर होता है. निर्वाचन आयोग ईवीएम-ट्रेकिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके अपने डेटा बेस से यह पता लगा सकता है कि कौन सी मशीन कहां पर है, इसलिए ईवीएम में किसी तरह की गड़बड़ नहीं हो सकती.

प्रत्येक चुनाव से पूर्व दो से तीन बार ईवीएम मशीनों की राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में जांच होती है, मशीन ठीक काम कर रही है या नहीं, वोट जिसे डाला जा रहा है, उसी क्रम में जा रहा है या नहीं. ईवीएम मशीनों का आवंटन कंप्यूटराइज्ड तकनीक से होता है.

 वीवीपैट

ईवीएम की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए आयोग वीवीपैट (वोटर वेरीफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) मशीन की मदद ले रहा है. ईवीएम पर सवाल उठने के बाद ही वीवीपैट का इस्तेमाल किया गया है. जैसे ही वोट डाला जाता है तत्काल एक कागज की पर्ची बाहर निकलती है, जिस पर इस बारे में जानकारी होती है कि किस उम्मीदवार को वोट दिया है. साथ में उसका चुनाव चिह्न भी छपा होता है. यह व्यवस्था इसलिए है कि किसी तरह का विवाद होने पर ईवीएम में पड़े वोट के साथ पर्ची का मिलान किया जा सके.

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