उज्जैन (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि शिक्षा सिर्फ आजीविका ही नहीं दे, जीवन के लिए भी शिक्षा आवश्यक है. शिक्षा में जीवन के लिए दृष्टिकोण होना चाहिए, जो मूल्य आज हम परिवार में देखते हैं, उनका प्रकटीकरण भी गुरुकुल शिक्षा में होना चाहिए.
सरसंघचालक जी महर्षि सांदीपनि वेद विद्या प्रतिष्ठान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय विराट गुरुकुल सम्मेलन के शुभारंभ अवसर पर संबोधित कर रहे थे. समारोह के मुख्य वक्ता सरसंघचालक जी ने कहा कि वर्षों के अनुभव के बाद भारत ने जिन मूल्यों को पैदा किया, वे भारत के साथ उन सभी देशों में देखे जाते हैं, जहां-जहां भारतीय देखे जाते हैं. गुरु के साथ वास और उनके वात्सल्य में पलना-बढ़ना समझना और आचरण करना गुरुकुल परंपरा की आत्मा है. गुरुकुल पद्धति ही एक मात्र पद्धति है, जिसमें शिक्षा को समग्र रूप से मानव विकास के लिए दिया जाता है. उसके लिए हमें परिवर्तनीय और अपरिवर्तनीय पर विचार करना होगा.
सरसंघचालक जी ने कहा कि गुरुकुल शिक्षा पद्धति में समय के अनुसार क्या परिवर्तन होना चाहिए, इस पर भी हमें सोचना चाहिए. नए परिवेश के हिसाब से शास्त्रों में भी सुधार की आवश्यकता है क्योंकि नये ज्ञान के साथ शास्त्र भी परिवर्तित होते हैं. शिक्षा स्वायत्त और समाज आधारित होनी चाहिए. सरकार उसका पोषण करे और बाधाओं को दूर करने का काम करे, लेकिन समाज को सरकार से अपेक्षा नहीं करनी चाहिए. यह व्यवस्था श्रेष्ठ है.
शिक्षा हमारे यहां व्यवसाय नहीं
डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भारत में शिक्षा वृत्ति रही है और व्रत के रूप में शिक्षा हमारे यहां व्यवसाय नहीं है. हमारे यहां यह उत्तरदायित्व है कि व्यक्ति ज्ञान लेने के बाद उसे दूसरों को भी प्रदान करता है. इसी कारण से सैकड़ों वर्ष में हुए आक्रमणों और षड्यंत्रों के बाद भी आज गुरुकुल चल रहे हैं. समाज को भी गुरुओं को आदर सम्मान देना चाहिए. गुरुकुल पद्धति में सभी संप्रदायों को ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम बनाया जाना चाहिए. इसमें शोध एवं अनुसंधान की प्रवृत्ति को भी प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है. लोगों को संग्रहित करके संगठन बनाया जाए. यह संगठन ऐसा हो जिसमें सभी लोग शामिल हों.
गुरुकुल को पुरस्कृत करेगी राज्य सरकार – शिवराज सिंह चौहान
शुभारंभ समारोह की अध्यक्षता करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी ने कहा कि प्रदेश में गुरुकुल शिक्षा पद्धति को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान की जाएगी. इसे औपचारिक शिक्षा के समकक्ष माना जाएगा. इंदौर के पास जानापाव में समाज के सहयोग से गुरुकुल स्थापित किया जाएगा. इस सम्मेलन से निकलने वाले निष्कर्षों को लागू करने के लिए सार्थक कदम उठाये जाएंगे. राज्य सरकार अखिल भारतीय शिक्षण मंडल के सहयोग से गुरुकुल शिक्षण संस्थान स्थापित करेगी. गुरुकुल पद्धति में शोध और अध्यापन को लेकर पुरस्कार दिए जाएंगे.
उन्होंने कहा कि शिक्षा के तीन मूल उद्देश्य हैं – ज्ञान देना, कौशल देना और नागरिकता के संस्कार देना. मैकाले ने भारत की शिक्षा पद्धति को बदला, लेकिन आजादी के बाद भी कई मैकाले इसी पद्धति से शिक्षा देते रहे. इसके कारण हमें ऐसी शिक्षा मिली, जिससे स्थिति बदतर हो गई. शिक्षा में मूल्यों का होना आवश्यक है. गुरुकुल पद्धति को अपनाने के बाद भारत विश्व को राह दिखाएगा.
सबको अच्छी शिक्षा सरकार की प्राथमिकता – प्रकाश जावड़ेकर
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर जी ने कहा कि हमारे भारत में प्राचीन काल से गौरवशाली शिक्षा का इतिहास रहा है. आज हमें गौरवशाली गुरुकुल शिक्षा परंपरा को आधुनिक शिक्षा पद्धति में शामिल करने की आवश्यकता है. हमारी सरकार सबका साथ सबका विकास की तर्ज पर सबको शिक्षा अच्छी शिक्षा देने की पहल कर रही है. इसके लिए जो भी नीतिगत बदलाव की आवश्यकता होगी, उसे सरकार करेगी. सरकार ने इसके लिए लोगों से सुझाव भी मांगे हैं. उन्होंने कहा कि हम ऐसी शिक्षा को प्रोत्साहित करना चाहते हैं, जिससे लोग अच्छे बनें. अच्छी शिक्षा का मतलब सिर्फ जानकारी प्राप्त करना नहीं है. अच्छी शिक्षा का उद्देश्य समझने और समझाने वाली कला का विकास होना चाहिए. आज की वर्तमान शिक्षा प्रणाली इनपुट बेस्ड है. आज की शिक्षा में आउटपुट की जगह बहुत कम है. इसलिए आज मूल्य आधारित शिक्षा की अनिवार्यता पर जोर देने की आवश्यकता है, जिससे शिक्षार्थी का सर्वांगीण विकास हो सके. विद्यार्थी अध्ययन के साथ-साथ अपनी कौशलता और गुणों का भी विकास कर सके. सरकार पारंपरिक शिक्षा के साथ-साथ शारीरिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए भी नीतिगत बदलाव कर रही है.
संत राजकुमार दास जी ने कहा कि भारत पुन: वैभव को प्राप्त करेगा और इसकी पुन: प्रतिष्ठा होगी. अंग्रेजों ने इसकी वैभवशाली व्यवस्था को नष्ट किया है. समारोह को संबोधित करते हुए स्वामी विश्वेश्वरानंद जी ने कहा कि वैदिक शिक्षा फिर से शुरू होनी चाहिए.
उद्घाटन सत्र में सम्मेलन की प्रस्तावना रखते हुए गोविंद देव गिरी जी महाराज ने कहा कि आज इस सम्मेलन के रूप में ऐतिहासिक कार्य का शुभारंभ हो रहा है. भारत में शिक्षा के लिए हमें दूसरी आजादी की आवश्यकता है. भारत ने ही पूरी दुनिया में ज्ञान का प्रकाश फैलाया है, लेकिन अठारहवीं शताब्दी में हमारे यहां पूर्व से चल रही शिक्षा प्रणाली को बदल दिया गया. अंग्रेजों ने भारत को साक्षर बनाया लेकिन सुशिक्षित नहीं किया. लेकिन देश आज फिर से हुंकार भरना चाहता है.
उन्होंने कहा कि देश का विकास उसकी चिति के अनुसार होना चाहिए. शिक्षा में परिवर्तन के लिए क्रांति की जाने की आवश्यकता है. हमने अपनी शिक्षा के मूल सूत्रों को त्याग दिया. वर्तमान शिक्षा पद्धति ने नौकरी ढूंढने वालों का निर्माण किया. लेकिन गुरुकुल शिक्षा पद्धति नौकरी तलाशने वालों का निर्माण नहीं करेगी, बल्कि यह नौकरी देने वाले पैदा करेगी.
राहुल भंते बोधी ने कहा कि आठवीं शताब्दी तक यूरोप के लोगों को पता नहीं था. इसके पूर्व भारत में नालंदा एवं तक्षशिला विश्वविद्यालय उच्च दर्जे के थे. प्राचीन शिक्षा पद्धति के कारण ही बुद्ध ने जो धर्म चलाया, वह आज 120 देशों में है. यह भूमि वैभव और वंदनीय रही है. दुनिया के देश भारत को ऊंचा दर्जा देते हैं.
इस अवसर पर सम्मेलन की स्मारिका ‘कनकश्रृंगा’ का विमोचन किया गया. इसके अतिरिक्त चौदह विद्या चौंसठ कलाओं पर आधारित ‘सर्वांग’ का विमोचन भी किया गया. कार्यक्रम का संचालन भारतीय शिक्षण मंडल के राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ. उमाशंकर पचौरी जी और आभार प्रदर्शन राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानंद जोशी जी ने किया.