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प्रणव दा के संघ कार्यक्रम में जाने से समस्या किसे और क्यों ?

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पूर्व राष्ट्रपति प्रणव दा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में भाग लेने जा रहे हैं। तो इसमें किसी को क्या दिक्कत हो सकती है और क्यों ? संघ ने 07 जून को निश्चित तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग के समारोप कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में प्रणव दा को आमंत्रित किया है, और प्रणव दा ने संघ के निमंत्रण को स्वीकार किया है। उन्होंने यह निमंत्रण सोच विचार कर ही स्वीकार किया होगा तो फिर मामले को लेकर हायतौबा या राजनीति क्यों? प्रणब दा ने पहले क्या कहा, उसे लेकर क्यों विवाद खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है? पूर्व राष्ट्रपति के संघ के कार्यक्रम में भाग लेने से समस्या किसे है और क्यों?
दरअसल, समस्या उन्हें हो रही है जो हर विषय पर राजनीति करते हैं, अपने राजनीतिक स्वार्थ की रोटियां सेकते हैं। वर्तमान समय में देश में कहीं भी, कुछ भी हो….संघ पर आरोप लगाने में तत्पर रहते हैं, संघ को हर मामले में लपेटने में आगे रहते हैं।
उदाहरण स्वरूप
राहुल गांधी द्वारा 23 मई को, तमिलनाडु में पुलिस गोलीबारी के लिए आरएसएस को दोषी ठहराया जाना, जिसमें स्टरलाइट के खिलाफ विरोध जताने वाले 13 नागरिकों की मौत हो गई थी। यह उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता को दर्शाता है। राज्य में न ही बीजेपी की सरकार है, और न ही आरएसएस का राज्य पुलिस पर कोई नियंत्रण। राहुल का बयान न केवल तथ्यात्मक रूप से गलत था, बल्कि तमिल अलगाववाद का पोषण करने वाला था…..
उन्होंने कहा, “तमिलों की हत्या की जा रही है क्योंकि वे आरएसएस के दर्शन को मानने से इनकार कर रहे हैं। आरएसएस और मोदी की गोलियां कभी भी तमिल लोगों की भावना को कुचल नहीं सकतीं। तमिल भाइयों और बहनों, हम आपके साथ हैं!”
इससे पूर्व 22 मई को भी राहुल ने झूठ फैलाकर बेरोजगार युवाओं को भड़काने की कोशिश की और यूपीएससी के माध्यम से चुने गए बेरोजगार युवाओं को संबोधित करते हुए लिखा ट्वीट किया विद्यार्थियों जागो, आपका भविष्य खतरे में है। आरएसएस चाहता है कि वह तय करे कि आपके लिए क्या सही है।

दरअसल इन जैसे लोगों को लग रहा है कि यदि प्रणब दा संघ के कार्यक्रम में गए तो उन जैसे नेता जो संघ का नाम लेकर या विरोध कर अपनी राजनीति को आगे बढ़ाना चाहते हैं, उसमें वे सफल नहीं हो पाएंगे। चुनावों में लाभ नहीं मिल पाएगा।
संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार जी का विचार स्पष्ट था कि संघ समाज में कोई अलग संगठन नहीं है, बल्कि संघ संपूर्ण समाज का संगठन करना चाहता है। इसीलिए संघ स्वयं को समाज का अंग मानता है, समाज से अलग नहीं। तथा इसी विचार के कारण संघ प्रारंभ काल से ही चिरपुरातन देश को लेकर विचारवान लोगों से बिना किसी जाति, राजनीतिक दल, धर्म भेद के निरंतर संपर्क के प्रयास में रहता है। यही कारण है कि संघ धुर विरोधियों को भी कार्यक्रमों में आमंत्रित कर मंच प्रदान करता है, संघ को समझने के पश्चात अनेक लोग संघ समर्थक बने हैं। प्रत्येक वर्ष नागपुर में होने वाले विजयादशमी उत्सव तथा संघ शिक्षा वर्ग तृतीय वर्ष समारोप कार्यक्रम में समाज के विभिन्न वर्गों में कार्यरत प्रतिष्ठित व्यक्तियों को आमंत्रित किया जाता है।
तीन साल पहले की घटना है, दिल्ली में पत्रकारिता क्षेत्र से संबद्ध लोगों कार्यक्रम था। कार्यक्रम में वरिष्ठ महिला पत्रकार व समाजसेवी ने अनुभव बताए। उन्होंने कहा कि प्रारंभ में संघ विरोधी थीं, संघ के विरोध में काफी लेख लिखती थीं। इससे उनके सर्कल (वामपंथी गुट) में काफी प्रशंसा मिलती थी। लेकिन संघ से संवाद होने के पश्चात उनकी अवधारणा बदली, उन्होंने केवल एक लेख संघ के समर्थन में लिखा तो मानो पहाड़ टूट पड़ा, उनके अपने ही सर्कल में अछूत जैसा व्यवहार होने लगा।
अप्रैल 2015 में भारत प्रकाशन दिल्ली द्वारा आयोजित आर्गनाइजर-पाञ्चजन्य विशेषांक विमोचन कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित अर्थशास्त्री व योजना आयोग के पूर्व सदस्य नरेंद्र जाधव जी ने भी बताया था कि जब उन्होंने कार्यक्रम में आने की हामी भरी तो अनेक लोगों ने उन्हें विचार को बदलने, व न जाने के लिये कहा।

2010 में कोल्लम, केरल में एक बड़े कार्यक्रम की तैयारी के लिए खोले जाने वाले कार्यालय के उद्घाटन के लिये संघ ने स्थानीय मेयर व सीपीएम नेता को आमंत्रित किया था। 1990 में गुजरात में एक कार्यक्रम के दौरान एनडीडीबी के चेयरमैन प्रभात सिंह चौहान जी को अध्यक्ष के रूप में आमंत्रित किया गया था, वे उपस्थित भी रहे थे। कार्यक्रम में तृतीय सरसंघचाक बाला साहब देवरस जी उपस्थित थे।

डॉ. भीमराव आंबेडकर भी संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार जी के संपर्क में थे। बाबा साहेब 1935 और 1939 में संघ शिक्षा वर्ग में गए थे। 1937 में उन्होंने कतम्हाडा में विजयादशमी के उत्सव पर शाखा में संबोधित भी किया था। इस दौरान वहां 100 से अधिक वंचित और पिछड़े वर्ग के स्वयंसेवक थे। जिन्हें देखकर डॉ. आंबेडकर को आश्चर्य हुआ था।

महात्मा गांधी जी पहली बार वर्धा के शिविर में गए थे। उसके पश्चात 16 सितम्बर, 1947 की सुबह दिल्ली में संघ के स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए उन्होंने संघ के अनुशासन, और समरसता की प्रशंसा की थी। गांधी जी ने कहा – ”बरसों पहले मैं वर्धा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक शिविर में गया था। उस समय इसके संस्थापक श्री हेडगेवार जीवित थे। स्व. श्री जमनालाल बजाज मुझे शिविर में ले गये थे और वहां मैं उन लोगों का कड़ा अनुशासन, सादगी और छुआछूत की पूर्ण समाप्ति देखकर अत्यन्त प्रभावित हुआ था.’’ ”संघ एक सुसंगठित, अनुशासित संस्था है.” यह उल्लेख ‘सम्पूर्ण गांधी वांग्मय’ खण्ड 89, पृष्ठ सं. 215 -217 में किया गया है.

सन् 1977 में आंध्रप्रदेश में आए चक्रवात के समय स्वयंसेवकों के सेवा कार्य को देखकर वहां के सर्वोदयी नेता श्री प्रभाकर राव ने तो संघ को नया नाम ही दे दिया था। उनके अनुसार, “R.S.S. means Ready for Selfless Sarvice.”

सन् 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान संघ के स्वयंसेवकों का समाज व देश के प्रति समर्पण देख संघ के धुर विरोधी प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू भी प्रभावित हुए थे। और इसी कारण 1963 के गणतंत्र दिवस समारोह की परेड में भाग लेने के लिये संघ को आमंत्रित किया था। उनके निमंत्रण पर तीन हजार स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश में परेड में भाग लिया था।

फरवरी 2015 में वाराणसी में आयोजित एक कार्यक्रम में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के पुत्र सुनील शास्त्री जी ने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मध्य के रिश्तों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बाबूजी के मन में आरएसएस के लिये सम्मान था. देश में एक अहम बैठक होने वाली थी और प्रधानमंत्री के नाते बाबू जी ने संघ के सरसंघचालक श्री​गुरूजी को भी बुलवाया था, श्री गुरूजी ने संघ के राजनीतिक गतिविधियों में भाग न लेने की बात कहकर बैठक में आने से इंकार कर दिया था। तब शास्त्री जी ने बैठक करने से ही मना कर दिया और कहा था, जब तक संघ प्रमुख गुरुजी बैठक में नहीं आयेंगे, हमें बैठक नहीं करनी। बदली परिस्थितियां देखकर श्री गुरुजी बैठक में आये. एक समय ऐसा भी आया, जब पिता जी (तत्कालीन प्रधानमंत्री) ने दिल्ली की सड़कों पर यातायात को नियंत्रित करने के लिये स्वयंसेवकों से उतरने का आग्रह किया था।

संघ को किसी के प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है। समाज में संघ के स्वयंसेवकों द्वारा किए जा रहे कार्यों के आधार पर समाज की संघ पर आस्था है। देशभर में शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन, वनवासी, दुर्गम क्षेत्रों में डेढ़ लाख से अधिक सेवा कार्य चल रहे हैं। संघ का लक्ष्य सर्व समाज को साथ लेकर ‘परंवैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रम’ का है। यानि अपने भारत देश को वैभव संपन्न बनाना, विश्व गुरु के पद पर आरूढ़ करना है।

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