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भारतीय संस्कृति में विद्यमान है समन्वय का तत्व – रामकृपाल सिंह

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भोपाल. वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह ने कहा कि भारतीय संस्कृति में समन्वय का तत्व विद्यमान है. भारतीय संस्कृति सबको साथ लेकर चलती है. सबकी चिंता और सबके कल्याण की कामना करती है. हम जो शांति पाठ करते हैं, उसमें प्रकृति के सभी अव्यवों की शांति की प्रार्थना शामिल है. हमारी यह संस्कृति ही हमें सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाती है. रामकृपाल जी देवर्षि नारद जयंति के उपलक्ष्य में आयोजित पत्रकार सम्मान समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे.

पत्रकारिता में विशिष्ट योगदान के लिए वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ल को ‘देवर्षि नारद सम्मान-2019’ से सम्मानित किया गया. इसके साथ ही पत्रकार हेमंत जोशी, हर्ष पचौरी, हरेकृष्ण दुबोलिया और पल्लवी वाघेला को सकारात्मक समाचारों के लिए ‘देवर्षि नारद पत्रकारिता पुरस्कार’ प्रदान किया गया.

उन्होंने कहा कि सत्ता जब हिंसा को स्वीकार करती है, तब प्रतिहिंसा होती है. बंगाल में राजनीतिक हिंसा को कम्युनिस्टों ने आगे बढ़ाया. कम्युनिस्ट और माओवादी मजबूरी में लोकतंत्र को स्वीकार कर रहे हैं, जबकि उनकी विचारधारा में यह नहीं है. वह तो वर्ग संघर्ष से परिवर्तन के हामी हैं, जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ग संघर्ष के विचार को खत्म कर दिया है. प्रधानमंत्री ने स्थापित कर दिया है कि परिवर्तन समन्वय से आएगा. सबके साथ, सबका विकास हो सकता है. किसी से मतभिन्नता का अर्थ यह नहीं कि हम उसके सकारात्मक पक्ष को भी खारिज कर दें. विरोध अपनी जगह है, लेकिन जो सत्य है उसको भी स्वीकार करना चाहिए. वर्ष 2014 में राजनैतिक परिवर्तन ही नहीं हुआ, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक बदलाव भी आया है. उन्होंने कहा कि आज के समय में मीडिया जड़ों से कट गया है. इसलिए धरातल पर क्या चल रहा है, उसका ठीक अनुमान उसे नहीं होता है. इसकी अनुभूति 2019 के आम चुनावों से हो जाती है.

षड्यंत्र के तहत हमारी गर्व की अनुभूति को खत्म किया गया – आनंद पाण्डेय

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार आनंद पाण्डेय ने कहा कि किसी सुनियोजित षड्यंत्र के तहत आक्रांताओं और इतिहासकारों ने हमारी गर्व की अनुभूति को खत्म कर दिया. इस प्रकार की शिक्षा प्रणाली बनाई और ऐसा इतिहास लिखा कि हम अपनी संस्कृति पर गौरव करना भूल गए. जब हमें अपने कार्य पर गौरव होता है, तब हम सर्वोत्तम परिणाम देते हैं. आनंद पाण्डेय ने लार्ड मैकाले का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे उसने भारतीयों को अधिक समय तक गुलाम बनाए रखने के लिए भारतीय शिक्षा पद्धति को समाप्त कर मैकाले शिक्षा पद्धति को लागू किया. मैकाले ने अपने पत्र में लिखा था कि हमारी शिक्षा पद्धति ऐसे लोग तैयार करेगी जो बाहर से देखने पर भारतीय होंगे, लेकिन मन और आत्मा से अंग्रेज ही होंगे.

उन्होंने कहा कि हमारा धर्म हमें प्रकृति से प्रेम करना सिखाता है. परंतु, जब भारतीय संस्कृति पर गर्व की अनुभूति समाप्त हो गई तो हम अपनी संस्कृति से दूर हो गए और यह सब छूट गया. आज अभियान चलाकर हमें पेड़ बचाना-नदी बचाना सिखाया जा रहा है. उन्होंने पूछा कि आखिर क्यों श्रीमद्भगवत गीता हमारे पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं हो सकती? नये भारत को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाने में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है.

मीडिया और समाज के संबंध में उन्होंने कहा कि समाज मीडिया से अपेक्षा तो बहुत करता है, लेकिन सहयोग नहीं करता. मीडिया को अधिक जिम्मेदार बनाने के लिए समाज को अधिक सहयोग करना होगा. 1947 के पहले के मीडिया के सामने देश को स्वतंत्र कराने का लक्ष्य था. उसके बाद देश को सशक्त बनाने में मीडिया ने अपनी भूमिका को खोज लिया था. परंतु, 1991 के बाद मीडिया और पत्रकारों के पास कोई स्पष्ट लक्ष्य नहीं रह गया है. मीडिया बाजार और राज्य दोनों पर आश्रित हो गया है. इसलिए आज मीडिया वह समझदारी, जिम्मेदारी, बहादुरी और ईमानदारी नहीं दिखा पाता है, जिसकी उससे अपेक्षा है.

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्व संवाद केंद्र के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. अजय नारंग ने कहा कि योग्य और समर्थ भारत की कल्पना तब ही साकार हो सकती है, जब भारत सांस्कृतिक रूप से समृद्ध हो. सांस्कृतिक समृद्धि से अभिप्राय जीवन मूल्यों से है. यह सांस्कृतिक समृद्धि राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक सभी क्षेत्रों में अपेक्षित है. मीडिया को इसमें अपनी सकारात्मक भूमिका का निर्वहन करना चाहिए. डॉ. राघवेन्द्र शर्मा ने आभार व्यक्त किया. कार्यक्रम का संचालन डॉ. कृपा शंकर चौबे ने किया.

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