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मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश की याचिका SC में खारिज, कहा याचिकाकर्ता मुस्लिम नहीं

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सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार (08 जुलाई) को मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश और उन्हें पर्दा प्रथा से मुक्ति दिलाने की अपील करने वाली याचिकाएं खारिज कर दीं. सर्वोच्च न्यायालय ने कारण यह बताया कि याचिकाकर्ता खुद मुस्लिम नहीं है, इसलिए केरल उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर इस याचिका पर सुनवाई का कोई औचित्य नहीं है.

इस याचिका को खारिज करने वाली पीठ में सर्वोच्च सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई भी शामिल थे. उनके अलावा न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और दीपक गुप्ता भी हिन्दू महासभा द्वारा दायर याचिका को खारिज करने वाली पीठ में थे. याचिका को खारिज करते हुए मुख्य न्याधीश ने कहा कि, “पहले किसी मुस्लिम महिला को आने दो, फिर हम (इस पर) सोचेंगे.”

सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका एक स्पेशल लीव पेटिशन थी, जो केरल हाई कोर्ट के 11 अक्तूबर के निर्णय के खिलाफ दायर की गई थी. केरल उच्च न्यायालय में इसे खारिज करने वाले जस्टिस एके जयशंकरण और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश हृषिकेश रॉय थे.

गौर करने लायक यह है कि सर्वोच्च न्यायालय ने मामले के विषय (मस्जिद और मुस्लिम महिलाओं) से याचिकाकर्ताओं का संबंध न होने को आधार बनाकर याचिका खारिज की. जबकि उच्च न्यायालय ने याचिका इसलिए खारिज की, क्योंकि याचिकाकर्ता हिन्दू महासभा उसे यह आश्वस्त नहीं कर पाई थी कि महिलाओं को मस्जिदों में प्रवेश से रोका जा रहा है. इसके अलावा ‘सस्ती लोकप्रियता’ के लिए याचिका दायर करने की टिप्पणी भी उच्च न्यायालय ने याचिका ख़ारिज करते समय की थी. उच्च न्यायालय ने कहा था कि उसके मतानुसार अनुच्छेद 226 का दुरुपयोग ऐसे कारणों के लिए नहीं किया जा सकता.

सर्वोच्च न्यायालय का यह रुख शबरीमला मामले में उसके फैसले के ठीक विपरीत है. तब सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं में केरल (जहाँ शबरीमला मंदिर स्थित है) के निवासी नहीं होने और न ही मंदिर की परम्पराओं की जानकार होने के बावजूद भी याचिका सुनी थी. न केवल सुनी थी, उस पर निर्णय भी सुनाया था.

https://barandbench.com/supreme-court-dismisses-pil-to-allow-muslim-women-into-mosques-ban-purdah/

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