करंट टॉपिक्स

राष्ट्रीयता की रक्षा, समरसता के बंधन से !

Spread the love

rssअपने हिंदू समाज के व्यक्तिगत तथा पारिवारिक जीवन में रीति, प्रथा तथा परंपरा से चलती आयी पद्धतियों का एक विशेष महत्व है. अपने देश की भौगोलिक विशालता तथा भाषाई विविधता होते हुए भी समूचे देश में विविध पर्व, त्यौहार, उत्सव आदि सभी सामूहिक रीति से मनाये जाने वाले उपक्रमों में समान सांस्कृतिक भाव अनुभव किया जाता है. इसी समान अनुभव को ‘हिंदुत्व’ नाम दिया जा सकता है. कारण ‘हिंदुत्व’ यह किसी उपासना पद्धति का नाम नहीं है. सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसी कारण ‘हिंदुत्व’ को एक जीवनशैली बताया है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आरंभ से ही हिंदू जागरण तथा संगठन के अपने स्वीकृत कार्य को बढ़ाने तथा दृढ़ करने हेतु समाज के मन में सदियों से अपनायी हुई इसी समान धारणा को अपनी कार्यपद्धति में महत्वपूर्ण स्थान दिया. आगे आने वाला ‘रक्षाबंधन’ पर्व संघ के छह वार्षिक उत्सवों में से एक प्रमुख उत्सव है. श्रावण मास की पूर्णिमा को भारतवर्ष में रक्षाबंधन पर्व के नाम से मनाया जाता है. राजस्थान, गुजरात जैसे पश्चिमी प्रदेशों में अधिक हर्षोल्लास से इसे मनाया जाता है. अपने सभी उत्सव, पर्वों से प्रायः कोई पराक्रम, वीरता का प्रसंग जुडा रहता है. रक्षाबंधन त्यौहार से भी अनेक पौराणिक और ऐतिहासिक घटनाएं जुड़ी हैं.

पौराणिक काल में देवराज इंद्र की पत्नी शुची ने देव-दानव युद्ध में विजय प्राप्ति के लिये इंद्रदेव के हाथ पर रक्षासूत्र बांधा था. तो माता लक्ष्मी ने बलिराजा के हाथ में रक्षासूत्र बांधकर विष्णुजी को मुक्त करावाया था. इस प्रसंग का स्मरण कराने वाला ‘येन बद्धो बलिराजा…’ यह श्लोक प्रसिद्ध है. इतिहास में चित्तौड़ के वीर राणा सांगा के वीरगति प्राप्त होने पर चित्तौड़ की रक्षा करने रानी कर्मवती ने राखी के बंधन का कुशलता से प्रयोग किया था.

आधुनिक काल में स्वातंत्र्य संग्राम में बंगभंग विरोधी आंदोलन में राष्ट्रकवि गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर जी ने बहती नदी में स्नान कर एकत्रित आये समाज को परस्पर रक्षासूत्र बांधकर, इस प्रसंग के लिये रचा हुआ नया गीत गाकर अपनी एकता के आधार पर ब्रिटिशों पर विजय की आकांक्षा जगायी थी. साथ-साथ समाज में बहनों ने भाई को, विशिष्ट जाति  के आश्रित व्यक्तियों ने धनवानों को श्रावण पूर्णिमा के दिन राखी बांधने की प्रथा प्राचीन काल से प्रचलित है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इन सारी कथा, प्रसंग, प्रथाओं के माध्यम से व्यक्त होने वाले भाव को अधिक समयोचित स्वरुप दिया. कारण उपरोल्लिखित सारी कथाएं और प्रथाएं भी राखी के साधन से, आत्मीयता के धागों से परस्पर स्नेह का भाव ही प्रकट करती है. यही स्नेह आधार का आश्वासन भी देता है और दायित्व का बंधन भी. समाज में परस्पर संबंध में आये हुए विशिष्ट प्रसंग के कारण पुराण या इतिहास काल में रक्षासूत्र का प्रयोग हुआ होगा. पर ऐसा प्रत्यक्ष संबंध न होते हुए भी हम सब इस राष्ट्र के राष्ट्रीय नागरिक है, हिंदू है, यह संबंध भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. और व्यक्तिगत से और अधिक गहरा यह महत्वपूर्ण नाता ही सुसंगठित समाज शक्ति के लिये आवश्यक होता है. यह नाता समान राष्ट्रीयता का, समान राष्ट्रीय अभिमान, अस्मिता तथा आकांक्षा का है. समान ऐतिहासिक धरोहर का और परम-वैभवलक्षी भवितव्य का है. इस राष्ट्रीय सांस्कृतिक रक्षा बंधन से हमारा पारस्परिक एकात्म भाव बढ़ेगा. किसी भी दुर्बल की उपेक्षा नहीं होगी और बलसंपन्न दायित्व से दूर नहीं रहेगा.

डॉ. आंबेडकर जी ने अपने ग्रंथों एवम् भाषणों में हिंदू समाज की आंतरिक गहरी एकात्मता का वर्णन किया है. इस आंतरिक गहरे एकात्म भाव का प्रकटीकरण ही उसके अस्तित्व की पुष्टी करेगा. और रक्षा बंधन ही हमारे भीतरी, अटूट एकरसता को व्यक्त करने का समरसता-प्रेरक पर्व है और राखी यह एक सरल सादा साधन है, जिसके धागे से न केवल हाथ बंधेंगे, पर उससे अधिक मन बंधेंगे, हृदय बंधेंगे. अपने समाज में एकत्व जगाने का ऐतिहासिक कार्य आरंभ में संतों ने किया था. बारहवीं सदी से संपूर्ण देश में भक्ति आंदोलन की एक ज्वार उठी. भक्ति के, परमार्थ के पथ पर एकात्मता के मंत्र ने समाज को संगठित किया. आगे ब्रिटिश काल में अनेक समाज सुधारकों ने विचारों के आधार पर सामाजिक समता का अलख जगाया. स्वतन्त्रता के पश्चात भी संपूर्ण समाज के एकात्म, एकरस होने की आवश्यकता बनी रही और कुछ नये कानून, दंड विधान, आरक्षण जैसी व्यवस्थाओं के माध्यम से प्रयास होते रहे. पर, अभी भी पूर्ति से दूर ही रहे है. इसका एक कारण यह होगा कि, एकात्म एकरस समाज यह किसी बाह्य उपचारों से प्राप्त नहीं होंगे. इसकी आवश्यकता समाज के सभी घटकों में निर्माण हो और उस की प्रत्यक्ष अनुभूति भी समाज का हर एक घटक स्वयं करें, आने वाला रक्षाबंधन का पर्व इसी अनुभूति का पर्व हो और इस अवसर पर प्राप्त अनुभूति अपने समाज की स्थायी, सहज स्थिति हो इसलिये हम सब प्रयत्नशील हो.

प्रमोद बापट

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *