नई दिल्ली. उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि वीर सावरकर बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे. वह स्वतंत्रता सेनानी के साथ ही लेखक, इतिहासकार, राजनेता, दार्शनिक और समाज सुधारक भी थे. उपराष्ट्रपति नेहरू म्यूजियम एवं लाइब्रेरी में ‘Savarkar: Echoes from a Forgotten Past’ पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि वीर सावरकर तथा देश के विभिन्न हिस्सों में स्वतंत्रता संग्राम में बलिदान देने वाले अनेक वीरों के बारे में नहीं बताया गया, जिस कारण हमारी युवा पीढ़ी इनसे अनभिज्ञ है. कुछ इतिहासकारों ने सावरकर के बारे में नकारात्मक बातों को प्रचारित किया.
उन्होंने कहा कि सावरकर जैसे व्यक्तित्व की जीवनी लिखना आसान नहीं है. उन्होंने लेखक वीके संपत की सराहना की और कहा कि सावरकर के व्यक्तित्व के कई पहलू ऐसे हैं, जिन्हें लोग नहीं जानते. बहुत कम लोग जानते होंगे कि सावरकर ने देश में छुआछूत के खिलाफ एक सशक्त आंदोलन छेड़ा था. वीर सावरकर ने रत्नागिरी जिले में पतित पावन मंदिर का निर्माण कराया, जिसमें दलित सहित सभी हिन्दुओं को प्रवेश की अनुमति थी.
उपराष्ट्रपति ने कहा कि वीर सावरकर जाति रहित भारत की कल्पना करने वाले व्यक्ति थे. भारतीय मूल्यों के प्रति चिंतनशील इतिहास के सही ज्ञान का आह्वान करते हुए कहा कि वह वीर सावरकर ही थे, जिन्होंने 1857 के विद्रोह को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नाम दिया. सावरकर ने समाज की 7 बेड़ियां बताई थीं, जिनमें पहली कठोर जाति व्यवस्था थी. सावरकर ने इसे इतिहास के कूड़ेदान में फैंके जाने योग्य बताया था.
वीर सावरकर किसी एक जाति नहीं, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति तक वैदिक साहित्य पहुंचाना चाहते थे. वह जाति आधारित व्यवसाय के खिलाफ थे और मानते थे कि इसे रुचि व दक्षता पर आधारित होना चाहिए. उन्होंने कहा कि सावरकर ग्लोबल मोबिलिटी में विश्वास रखते थे और भारतीय संस्कृति को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाना चाहते थे.
वीर सावरकर अंतरजातीय विवाह के समर्थक थे. वह कहते थे कि धर्म हृदय में, आत्मा में है, पेट में नहीं. उन्होंने कहा कि भारत के विकास में उनकी दूर दृष्टि वास्तव में उल्लेखनीय है. सावरकर ने कहा था कि हम यूरोप से 200 साल पीछे हैं. भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को जिन असंख्य कष्टों का सामना करना पड़ा, उन्हें याद करते हुए प्रत्येक व्यक्ति से अपने जीवन में कम से कम एक बार सेल्युलर जेल जाने की अपील की थी.