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विकास का स्वदेशी मॉडल विषय पर वेबिनार का आयोजन

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नई दिल्ली. वैश्विक महामारी के चलते पूरा विश्व कराह रहा है, वहीं भारत मजबूती से उसका सामना करते हुए पूरे विश्व को रास्ता दिखाने के लिए तैयार है. देश में महामारी के बाद अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ना लगभग तय है. इस स्थिति से निपटने के लिए जहां एक ओर सरकार को कठोर कदम उठाने होंगे, तो देश के प्रत्येक नागरिक को भी स्वरोजगार को अपनाकर अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए खड़ा होना होगा. इस संकट से बाहर आने के लिए हमें विकास का स्वदेशी मॉडल अपनाना होगा.

विकास का स्वदेशी मॉडल विषय पर विश्व संवाद केंद्र भारत द्वारा सोमवार, 4 मई को वेबिनार का आयोजन किया गया. वेबिनार में मुख्य वक्ता के रूप में स्वदेशी जागरण मंच के अखिल भारतीय संयोजक सीए आर. सुंदरम जी, तथा अखिल भारतीय संगठक कश्मीरी लाल जी उपस्थित रहे. वक्ताओं ने विकास के स्वदेशी मॉडल पर चर्चा की.

1. आज का ज्वलन्त मुद्दा है कि चाइनीज कोरोना महामारी से जर्जर परिस्थिति में देश की अर्थव्यवस्था को दबारा पटरी पर कैसे लाया जाए. उदाहरण के लिए वर्तमान उपचार पद्धति कहती है, कोरोना की दवा किसी के पास नहीं. परन्तु भारत की हाईड्रॉक्सिक्लोरोक्विन जैसी दवा के लिए दुनिया भर के देश इसे मांगने के लिए हाथ जोड़े खड़े हैं. और साथ ही आयुर्वेदिक काढ़े व जड़ी बूटियों आदि, जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, की मांग भी लगातार बढ़ रही है. उसी प्रकार वैश्विक सामाजिक-आर्थिक संरचनाएं भी इस समय निरर्थक सिद्ध हो रही हैं, और भारत जैसे देश की ओर मुंह ताक रही हैं. इसलिए भारतीय मेधा ने अपनी प्रदीर्घ सोच के आधार पर जिस स्वदेशी प्रतिमान को कभी इस देश में खड़ा किया, कोरोना महामारी से लड़खड़ाती दुनिया, इसे बड़ी आशा से निहार रही है. अतः जरूरी हो गया है कि इसे एक विमर्श का मुद्दा बनाया जाए. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत ने बड़े ही सहज, सटीक, संक्षिप्त एवं सम सामयिक ढंग से इस ओर कई संकेत किए हैं, आइये उनके संकेत को विस्तार से समझने का प्रयास करें.

उन्होंने इस समय राष्ट्र के आर्थिक पुनर्निर्माण में दो प्रकार के विषयों को छुआ – तात्कालिक व दीर्घकालीन. दोनों ही बहुत महत्व के हैं.

2. तात्कालिक कामों में प्रथम उल्लेख किया, वापसी पलायन यानि reverse migration या शहरों से गांव में लौटते हुए का. क्या गांव में ही उन्हें रोजगार के नए नए अवसर उपलब्ध करवा सकते हैं? ऐसे में महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज, एपीजे अब्दुल कलाम के ‘पूरा’ (PURA Provision of Urban Amenities in Rural Areas) से लेकर नानाजी देशमुख के समग्र विकास तक के उदाहरणों के संदर्भ ताज़ा हो गए हैं. अतः यह कोई सहज व सतही टिप्पणी नहीं थी, बल्कि इस के पीछे एक पूरी संघ सृष्टि है. ग्राम विकास के कार्यों में लगे हज़ारों स्वयंसेवक कार्यकर्ताओं का बल, परिश्रम और प्रयोगधर्मिता की इसकी अधोरचना है.अतः क्या बड़े महानगरों से लौटे इन लाखों कामगरों व कारीगरों को गांव में ही रोजगार मुहैय्या करवा कर देश की एक बड़ी समस्या का समाधान सोचा जा सकता है.

दूसरा तात्कालिक काम है जो लोग गांव से दोबारा शहर लौटेंगे, उनके लिए किस प्रकार से काम-धंधे ढूंढना. क्योंकि अधिकांश उद्योग बंद हैं, वैश्विक मांग में भी भारी कमी हो गयी है. दुनिया भर से भी हमारे लोग वापिस आ रहे हैं. अतः ऐसे में दोबारा उन्हें खपाने व रोजगार दिलाने की कितनी क्षमता यहां है, इसको देखना पड़ेगा. वे उद्योग भी घाटे में चल रहे होंगे, अतः आपसी सद्भाव, समझदारी से दोनों को कुछ न कुछ छोड़ना पड़ेगा. यानि पुनर्निर्माण में मालिक-मजदूर का समन्वय आवश्यक है.

दत्तोपंत ठेंगड़ी जी जिस मालिक-मजदूर के आपसी सौहार्द की बात करते थे, यह उस विचार की और संकेत है. चाहे जो मजबूरी हो, हमारी मांगे पूरी हों….. उसकी जगह ‘देश के हित में करेंगे काम…’, और औद्योगिक परिवार की कल्पना की एक उत्तम प्रस्तुति है.

3. तीसरा बड़ा संकेत और दीर्घकालीन विचार जिस पर चर्चा हुई, वह विकास का वैकल्पिक मॉडल है. “स्वावलम्बन” शब्द और इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री जी की देश भर के सरपंचों से हुई बातचीत का संदर्भ दिया. ये सन्दर्भ एक संकेत दे रहा है कि किस प्रकार इस समय शासन “विकेन्द्रित” आर्थिक संरचना के लिए तैयारी कर रहा है. अंधाधुंध एलपीजी मॉडल (Liberalisation, Privatisation and Globalization ) के खोखलेपन को उजागर कर रही है, कोरोना महामारी. ये बाज़ार की ताकतों का बनाया हुआ प्रतिमान था, और इस समय दम तोड़ रहा है. उसकी जगह ग्राम स्वराज्य व ज़िलों पर आधारित अर्थव्यवस्था का आत्मनिर्भर मॉडल इस महामारी रूपी आपत्तिकाल का मंत्र है.

इसी को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने “स्व” शब्द पर जोर दिया और स्वदेश के विकास मॉडल को विकसित करने का उल्लेख किया. हमारा विकास का मॉडल कम उर्जाभक्षी, रोजगारमूलक व पर्यावरण का रक्षक रहा है (energy efficient, employment oriented and eco-friendly). चौथी बात, आधुनिक विज्ञान का प्रयोग हो, परन्तु अपनी परम्परा का भी साथ- साथ ध्यान रखना चाहिये. ऐसे चार सूत्र विकास के मॉडल के बताए.

इसके विपरीत आज विदेशी विकास मॉडल की खामियां जगजाहिर हो रही हैं. यह अत्यधिक उर्जाभक्षी, रोजगार विहीन, व पर्यावरण भक्षक है. ऐसे मॉडल की गहन विवेचना राष्ट्रऋषि दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने  पुस्तिका The Concept of Development एवं Third Way में की है. पण्डित दीनदयाल उपाध्याय व गांधी जी ने भी हिन्द स्वराज में इस पश्चिमी मॉडल की धज्जियां उड़ाई हैं.

विदेशों में भी इस विकास मॉडल की चीरफाड़ डट कर हुई है. शूमाखर की The small is beautiful, थॉमस पिकेटी की Capital in the 21st Century, Joseph स्टिगलिटीज़ की  Globalisation and its Discontent आदि पुस्तकें और UNCTAD की रिपोर्ट्स इस पश्चिमी विकास मॉडल को पहले ही खारिज कर  चुकी हैं. आजकल की बहु चर्चित सिंगापुर यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट, जिसमें कोरोना कैलेंडर का  उल्लेख है, उसे एक अन्य दृष्टिकोण से भी देखने की जरूरत है. यह विस्तृत रिपोर्ट यह बता रही है कि कोरोना के फैलाव का मुख्य कारण अति-शहरीकरण, वैश्वीकरण तथा ओवर कनेक्टिविटी आदि है.

अतः जहां-जहां इस पश्चिमी मॉडल की प्रसिद्धि हुई, वहां भी इसके कुपरिणामों के कारण विरोध हो रहा है. अतः कोई विकेन्द्रित, आत्मनिर्भर मॉडल ही इन बीमारियों से बचा सकता है, ऐसा चहुँ ओर चर्चा है.

4. एक अहम प्रश्न है कि इस वैकल्पिक स्वदेशी संरचना को कौन लागू करेगा. सरसंघचालक जी ने कहा कि यह तीन स्तरों पर हो सकता है. शासन, प्रशासन एवं समाज द्वारा. शासन प्रमुख रुचि दिखा रहे हैं. सरपंचों के साथ अपनी वार्ता में प्रधानमंत्री जी ने आत्मनिर्भर मॉडल के चार पायदान बताए.

गांव, ज़िला, प्रान्त व देश. यह विकेन्द्रित मॉडल का नक्शा उन्होंने दिया. दूसरे जहां तक प्रशासन का सवाल है, कायदे से वह उसी को करने को प्रतिबद्ध है, जिसे शासन कहेगा, या उनसे करवा लेगा. अतः तीसरा काम समाज ने करना होता है और वह काम सतत, नियोजित जनजागरण से होता है. निश्चित है, समाज बहुत कुछ कर सकता है. जनसंगठनों की इसमें महती भूमिका रहेगी.

5. जीवन में स्वदेशी पर आग्रह, विदेशी को अपनी शर्तों पर लेना. जो जीवन के लिए आवश्यक हैं, उसे यहां तैयार करना व उसकी गुणवत्ता पर समझौता नहीं करना. आज नई चुनौती चीन से अत्यधिक आयात की है. प्रति वर्ष 54 से 64 अरब डॉलर का व्यापार घाटा हमें चीन से हो रहा है. जिस प्रकार कोरोना महामारी के बाद भी दुनिया को घेरने में चीन संलग्न है, वह एक खतरे की घंटी है. इस कारक को गहरे से समझना होगा. इस समय दुनिया के अधिकांश देश चीन से त्रस्त हैं, वहां पर लगी कंपनियां आज अन्य देशों में जाने को आतुर हैं. ऐसे में भारत को अपनी बड़ी भूमिका इस समय निभानी होगी.

साथ ही स्वदेशी ज्ञान व विज्ञान संवर्धन भी आवश्यक है. पोखरण विस्फोट, परम् कंप्यूटर, स्पेस टेक्नोलॉजी, मंगलयान इसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं. पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता, जैविक कृषि, गौ-उत्पाद, योग, आयुर्वेद आदि के प्रचार, स्वयं के परिवार में लागू करने की ओर कदम बढ़ाने होंगे. अमूल, पतंजलि, जैसे सफल स्वदेशी प्रयोगों की चर्चा हो सकती है.

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