रायपुर (छत्तीसगढ़)। जगदलपुर में स्थित सरकारी नर्सिंग कॉलेज परिसर से शिवलिंग को हटाने को लेकर विवाद हो गया। संस्थान में मुस्लिम छात्राओं की शिकायत के बाद प्रबंधन ने कॉलेज कैंपस में स्थापित शिवलिंग को हटा दिया। इतना ही नहीं, संस्थान प्रबंधन ने तर्क दिया कि यह कदम कॉलेज का “माहौल बिगड़ने” से बचाने के लिए उठाया गया है। लेकिन प्रश्न यह कि किसके दबाव में यह कदम उठाया गया? क्या हिन्दू आस्था को कुचलकर शांति लाई जाएगी?
कॉलेज में हिन्दू और मुस्लिम छात्राएं साथ में हॉस्टल में रहती हैं। कुछ दिन पहले खाने-पीने और पूजा-पाठ को लेकर मामूली विवाद हुआ, लेकिन जब इसमें धार्मिक पहचान जुड़ गई, तो सारा झुकाव मुस्लिम पक्ष की ओर दिखा। और परिसर से शिवलिंग को हटा दिया गया।
संस्थान परिसर से शिवलिंग को हटाए जाने के बाद छात्राएं आक्रोशित हो गईं और प्रबंधन के खिलाफ नारेबाजी कर भूख हड़ताल शुरू कर दी। विवाद में जिन दो प्रमुख लोगों का नाम सामने आया है, वे हैं कॉलेज की प्रिंसिपल स्वर्णलता पीटर और वॉर्डन अर्जिया अली खान।
हिन्दू संगठनों ने मौके पर पहुंचकर विरोध जताया और कहा कि शिवलिंग को हटवाया नहीं, बल्कि जानबूझकर अपमानित करने के लिए फेंका गया है। नर्सिग कॉलेज में हुए विवाद के बाद कलेक्टर से लेकर एसपी व अन्य आला अधिकारियों की टीम पहुँची, पूरे मामले में जानकारी लेने के बाद छात्राओं की बात को मानते हुए परिसर में शिवलिंग स्थापित करने का आश्वासन दिया।
जिसके पश्चात संस्थान परिसर में वहां पढ़ने वाली छात्राओं के हाथ से ही प्राण प्रतिष्ठा संपन्न हुई, साथ ही सभी छात्राओं को भगवान शिव की मूर्ति भी प्रदान की गई।
एकजुट होकर खड़े होने का समय
बहुसंख्यक समाज की आस्था को कुचलना और फिर उसे “सांप्रदायिक सौहार्द” का नाम देना, यही वह मानसिकता है जो देश के ताने-बाने को तोड़ने की साजिश कर रही है। ये वही लोग हैं जो एक तरफ “धर्मनिरपेक्षता” की बात करते हैं और दूसरी ओर हिन्दू प्रतीकों को हटवाने में सबसे आगे रहते हैं।
धर्म के नाम पर तुष्टीकरण की राजनीति और एक वर्ग को खुश करने के लिए हिन्दुओं को अपमानित करना, यह बहुत हो चुका है। देश को तोड़ने वालों के खिलाफ एकजुट होकर खड़े होने का समय है।