कोलकाता. भारतीय संस्कृति, राष्ट्रीयता और साहित्यिक समृद्धि को समर्पित डॉ. हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान 2024 इस वर्ष का फिल्म जगत के प्रसिद्ध व्यक्तित्व डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी को प्रदान किया गया. चाणक्य की भूमिका निभाकर चर्चित हुए डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी को केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने सम्मान प्रदान किया.
इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने मुख्य वक्ता के रूप में कार्यक्रम को संबोधित किया.
सुनील आंबेकर ने डॉ. हेडगेवार के योगदान का उल्लेख करते हुए कहा कि वे संघ की स्थापना से पहले भी बंगाल से गहराई से जुड़े थे. उन्होंने कहा कि डॉ. हेडगेवार ने राष्ट्र के प्रति समर्पित लोगों की आवश्यकता को समझते हुए 1925 में केवल 17 लोगों के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव रखी. उस समय इसे संभालकर रखना बड़ी चुनौती थी.
उन्होंने कहा कि जब-जब हिन्दू समाज राष्ट्रीयता से विमुख हुआ, देश ने विभाजन और आतंकवाद जैसी समस्याएं झेलीं. लेकिन जब भी एकजुट हुआ, परिणाम राष्ट्र के हित में रहे. बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे हमलों का जिक्र करते हुए कहा कि यह दुखद है, लेकिन वहां हिन्दू समाज एकजुट होकर विरोध कर रहा है, जो सबके लिए एक सीख है.
कार्यक्रम के दौरान तकनीक और संस्कृति के संतुलन पर चर्चा करते हुए सुनील आंबेकर ने कहा कि पूरी दुनिया में तकनीकी विकास के साथ लोग ढल चुके हैं, लेकिन भारत की मेधा इतनी समृद्ध है कि एक समय आएगा, जब हम तकनीक के साथ अपनी सांस्कृतिक विरासत को भी जीवंत रखेंगे.
सज्जन कुमार तुलस्यान ने डॉ. चंद्र प्रकाश द्विवेदी के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने भारतीय सभ्यता और संस्कृति को जीवित रखा है. फिल्म इंडस्ट्री में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया है. उनके कार्य भारतीयता और हिन्दुत्व के पर्याय हैं.
राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर गर्व करने योग्य है, लेकिन हमने इसके साथ न्याय नहीं किया. डॉ. हेडगेवार जैसे व्यक्तित्व का उद्देश्य भारतीय पुनर्जागरण था.
डॉ. द्विवेदी ने कहा कि मुझे कई सम्मान मिले हैं, लेकिन डॉ. हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान मेरे लिए सबसे बड़ा है. यह सम्मान उस विचारधारा और मार्ग का सम्मान है, जिसके साथ मैंने जीवन की शुरुआत की थी. भारतीय संस्कृति प्राचीन और नित नवीन है, और यह देखकर खुशी होती है कि नई पीढ़ी इसे समझ रही है. उन्होंने केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को दारा शिकोह कहकर संबोधित किया.
गीता के संदेश को जीवन में उतारने की आवश्यकता
आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि गीता केवल पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि इसके संदेशों को जीवन में उतारने की आवश्यकता है. दारा शिकोह जैसे व्यक्तित्व ने उपनिषदों का अनुवाद करवाकर भारतीय ज्ञान को पूरी दुनिया तक पहुंचाया. औरंगजेब ने उन्हें फांसी देकर न केवल दारा शिकोह को मारा, बल्कि उनकी ज्ञान संपदा को भी नष्ट करने की कोशिश की. उसने दारा शिकोह की ओर से पारसी भाषा में अनुवाद की गई सभी प्रतियों को भी जलाया था. स्वामी विवेकानंद को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति का मूल उद्देश्य है कि आखिरी सांस तक ज्ञान प्राप्ति में लगे रहना.
कार्यक्रम में स्वागत भाषण पुस्तकालय के अध्यक्ष महावीर प्रसाद बजाज ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन बीडी शर्मा ने किया.