माओवाद से प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों के एक के बाद एक अभियानों ने माओवादी आतंकी संगठन की कमर तोड़ दी है. सुरक्षा बलों को अब एक और बड़ी सफलता मिली है. धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र बीजापुर में माओवादियों को झटका देते हुए सुरक्षा बलों ने 12 नक्सलियों को मार गिराया है.
जिस क्षेत्र में माओवादियों को ढेर किया है, वह माओवादियों का बड़ा गढ़ माना जाता रहा है. यह मुठभेड़ जिले के भीतर पीड़िया के जंगलों में शुक्रवार को हुई, जिसमें जवानों ने माओवादियों को ढेर किया है.
मुठभेड़ को लेकर पुलिस ने बताया कि नक्सल उन्मूलन अभियान के लिए निकले जवान जब पीड़िया के जंगल में पहुँचे, तो वहां पहले से घात लगाए बैठे माओवादियों ने जवानों पर गोलीबारी शुरू कर दी. इस गोलीबारी का जवाब सुरक्षाकर्मियों ने भी दिया और फिर जवानों को भारी पड़ता देख माओवादी भाग निकले.
मुठभेड़ के बाद जब जवानों ने क्षेत्र की तलाशी ली, तो उन्हें माओवादियों के शव प्राप्त हुए. भारी मात्रा में हथियार और विस्फोटक भी मिले हैं. पुलिस ने बताया कि ऑपरेशन से पहले पीड़िया क्षेत्र में बड़े माओवादी आतंकी नेताओं की मौजूदगी की सूचना मिली थी, जिसके बाद दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा जिले के 1200 जवानों के साथ यह अभियान चलाया गया था.
शुक्रवार सुबह 6 बजे निकली टीम में डीआरजी, एसटीएफ और सीआरपीएफ एवं कोबरा के जवान शामिल थे. क्षेत्र में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में जवान नक्सल अभियान के लिए निकले थे.
बीजापुर में पिछले डेढ़ महीने में यह दूसरा मौका है, जब सुरक्षा बलों ने माओवादियों के विरुद्ध किसी बड़े ऑपरेशन में सफलता हासिल की है, जिसमें बड़ी संख्या में माओवादी मारे गए हैं. इससे पहले 1 अप्रैल को 10 माओवादियों को मार गिराया था.
माओवादी इसी जगह पर अपने नये लड़ाकों को ट्रेनिंग देते हैं. क्षेत्र में माओवादियों की धमक ऐसी थी कि वर्ष 2009 में जब यहां से एक हेलीकॉप्टर गुजरा था, तब माओवादियों ने उस पर भी गोलीबारी की थी, जिसमें एक गोली एयरफोर्स के इंजीनियर को भी लग गई थी.
बड़े अभियानों के चलते बीते साढ़े चार महीनों में ही 103 माओवादी ढेर हो चुके हैं.
रणनीति से मिल रही सफलता
1 अप्रैल को 13 माओवादी बीजापुर में ढेर हुए थे. इसके बाद 16 अप्रैल को कांकेर में 29 माओवादी मारे गए. 30 अप्रैल को नारायणपुर में 10 माओवादी ढेर हुए थे. और अब बीजापुर में फिर 12 माओवादी मारे गए हैं. इसके अलावा अन्य अभियानों में भी बीच-बीच में माओवादी ढेर हुए हैं.
वर्ष 2022 से रणनीति पर कार्य शुरू किया गया, जिसके बाद सुरक्षा बल माओवादियों के गढ़ में घुसने लगे. भीतरी क्षेत्रों में कैंप स्थापित किये जाने लगे और माओवादियों की सप्लाई चेन को भी तोड़ने का काम किया गया. अंदरूनी क्षेत्रों में कैंप होने के कारण सुरक्षा बलों को लंबा सफर कर ऑपरेशन नहीं करना पड़ता, इससे गोपनीयता भी बनी रहती है, और माओवादियों का इंटेलिजेंस नेटवर्क भी विफल हो जाता है. नक्सलियों की सप्लाई चेन को तोड़ना भी एक बड़ी सफलता रही, जिसके चलते उनके लिए हथियारों की आपूर्ति से लेकर अन्य सामानों की पहुँच भी कठिन हो गई.