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मुंबई। अप्रैल 1965 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने पहली बार रुइया कॉलेज में ‘एकात्म मानवदर्शन’ और ‘अंत्योदय’ के विचार प्रस्तुत किये। उसी दिन, 60 वर्ष बाद, उसी ऐतिहासिक स्थान पर, 22 अप्रैल से 25 अप्रैल तक ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय एकात्म मानवदर्शन हीरक महोत्सव’ का आयोजन किया गया है। इस श्रृंखला की दूसरी कड़ी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल जी का मार्गदर्शन सभी को प्राप्त हुआ।
उन्होंने कहा कि भारत विविधताओं वाला देश है। विविधता में एकता भारत की पहचान है। इसका उदाहरण हमने महाकुम्भ में देखा। कुम्भ में सभी प्रकार के लोगों ने पवित्र स्नान किया। हम सब एक हैं, कोई द्वैत नहीं है। जैसे ज्ञान एक है, वैसे ही आप और मैं एक हैं। भारत ने कभी किसी को कैद नहीं किया, न ही बाजार में गुलाम के रूप में बेचा। पश्चिमी देशों में ऐसा हमेशा होता रहा है, क्योंकि यह उनकी समझ से परे है कि जो कुछ वे बेच रहे हैं, उसमें भी ईश्वर है।
ऋग्वेद का उदाहरण देते हुए सह सरकार्यवाह जी ने कहा कि ऋग्वेद में सबसे सुंदर वर्णन भारत का है। विश्व के किसी भी राष्ट्र का वर्णन किसी कवि ने इतनी सुन्दरता से नहीं किया है, जितना कि ऋग्वेद में भारत का किया गया है। ऋग्वेद कहता है कि इस पृथ्वी पर कोई भी निम्न, मध्यम या श्रेष्ठ नहीं है। हे पृथ्वी, तुम माता बनो और सबका भरण पोषण करो। यह इस महान राष्ट्र का दृष्टिकोण है। राम मनोहर लोहिया हमेशा कहते थे कि राम वह भगवान हैं जो उत्तर को दक्षिण से जोड़ते हैं और कृष्ण वह भगवान हैं जो पश्चिम को पूर्व से जोड़ते हैं। देश की यह एकता सदियों से प्रकट होती रही है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी समिति के सदस्य मनमोहन जी वैद्य ने कहा कि “मैं रहूं या न रहूं, भारत रहना चाहिए”। सभी लोग हमारे हैं. यह भारत का जीवनदर्शन है और कोरोना काल में पूरी दुनिया ने इसका प्रत्यक्ष अनुभव किया है। ज्ञान वह है जो मुक्ति देता है, धर्म क्या है? “मैं” को न्यूनतम करें और अपनी आँखें खोलें तथा अपने क्षितिज का विस्तार करें। भारत की शिक्षा नीति और विदेश नीति, दोनों ही स्तरों पर महत्वपूर्ण परिवर्तन आया है। इसलिए, सभी को विश्वास है कि कल की घटना पर उचित कारवाई की जाएगी।
एकात्म मानव दर्शन पर एक पुस्तक देकर डॉ. कृष्णगोपाल जी एवं मनमोहन जी वैद्य का अभिनंदन किया गया, तथा कार्यक्रम का समापन मंगल प्रभात लोढ़ा द्वारा सभी का धन्यवाद करके तथा कल्याण मंत्र के साथ हुआ।