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शीराज़ क़ुरैशी, अधिवक्ता
भारत में वक़्फ़ संपत्तियाँ मुसलमानों की धार्मिक, सामाजिक और शैक्षणिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक पवित्र अमानत मानी जाती हैं। इस्लाम में वक़्फ़ की परिकल्पना एक ऐसे संस्थान के रूप में की गई है जो समाज के वंचित और ज़रूरतमंद वर्ग की सेवा करे और न्याय, दया तथा साझेदारी जैसे मूल्यों को सुदृढ़ बनाए। लेकिन बीते वर्षों में वक़्फ़ संपत्तियों पर अवैध कब्ज़े, प्रशासनिक लापरवाहियाँ, भ्रष्टाचार और कानूनी उलझनों ने प्रणाली को खोखला बना दिया है। मुसलमानों के इस पवित्र संसाधन का दुरुपयोग हुआ, जिससे न केवल समुदाय का विश्वास टूटा, बल्कि धार्मिक और सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति में भी बाधा उत्पन्न हुई। इन्हीं जटिलताओं के समाधान हेतु केंद्र सरकार द्वारा वक़्फ़ संशोधन विधेयक 2025 प्रस्तुत किया गया है, जो मौजूदा वक़्फ़ अधिनियम 1995 में व्यापक परिवर्तन करता है। यह विधेयक न केवल वक़्फ़ संपत्तियों की बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित करता है, बल्कि वक़्फ़ प्रशासन में पारदर्शिता, जवाबदेही और सार्वजनिक हित को भी प्रमुखता देता है।
विधेयक के माध्यम से वक़्फ़ जायदादों को ‘सार्वजनिक धर्मार्थ संपत्ति’ के रूप में चिन्हित कर उन्हें विशेष कानूनी संरक्षण देने की कोशिश की गई है, जिससे अब कोई भी व्यक्ति या संस्था इन पर आसानी से दावा नहीं कर सकेगा। यह एक ऐतिहासिक क़दम है क्योंकि इससे उन लाखों एकड़ वक़्फ़ ज़मीनों को बचाया जा सकेगा जो दशकों से गैर-कानूनी कब्ज़ों के अधीन हैं। साथ ही, यह विधेयक वक़्फ़ बोर्डों को डिजिटल प्रणाली के अंतर्गत लाने का निर्देश देता है, जिससे संपत्तियों की पारदर्शी सूची बने, वार्षिक लेखा परीक्षण हो और आम जनता को यह जानने का अधिकार मिले कि वक़्फ़ की आय कहाँ खर्च हो रही है। इससे ना सिर्फ़ भ्रष्टाचार में कमी आएगी, बल्कि वक़्फ़ प्रशासनिक व्यवस्था पर मुसलमानों का विश्वास भी पुनः स्थापित होगा।
विधेयक में एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि अब वक़्फ़ संपत्ति घोषित करने के लिए केवल “उपयोग” (User) के आधार पर दावा मान्य नहीं होगा। कई वर्षों से बिना किसी वैध दस्तावेज़ या घोषणा के लोग केवल लंबे समय तक ज़मीन के इस्तेमाल के आधार पर उसे वक़्फ़ घोषित कर देते थे, जो शरीअत और न्याय दोनों के विरुद्ध है। नया विधेयक इस प्रवृत्ति को प्रतिबंधित करता है और केवल विधिसम्मत रूप से समर्पित संपत्तियों को ही वक़्फ़ मान्यता प्रदान करता है। यह प्रावधान न केवल ज़मीन हथियाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाएगा, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया को भी सुचारु बनाएगा।
जहाँ तक न्यायिक प्रक्रिया की बात है, अब वक़्फ़ मामलों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायाधिकरण स्थापित किए जाएंगे, जिनमें योग्य न्यायाधीशों की नियुक्ति होगी। इससे वर्षों तक लटके हुए वक़्फ़ विवादों का शीघ्र और न्यायसंगत निपटारा संभव होगा। विधेयक इस बात पर भी बल देता है कि वक़्फ़ की आय का उपयोग मुख्यतः शिक्षा, स्वास्थ्य और धार्मिक-सामाजिक सेवाओं में किया जाए, न कि राजनीतिक या व्यावसायिक लाभ के लिए। इस प्रकार, यह संशोधन विधेयक वक़्फ़ की धार्मिक और परोपकारी भावना की पुनर्स्थापना करता है।
विधेयक द्वारा केंद्रीय वक़्फ़ परिषद को भी अधिक अधिकार दिए गए हैं ताकि वह राज्य वक़्फ़ बोर्डों की निगरानी कर सके, उनके कार्यों का मूल्यांकन कर सके और आवश्यकतानुसार दख़ल दे सके। इससे राज्यों के बीच समन्वय बढ़ेगा और निष्क्रिय या भ्रष्ट वक़्फ़ बोर्डों के विरुद्ध कार्रवाई की जा सकेगी। इसके अतिरिक्त, पारदर्शी नीतियों और डिजिटल व्यवस्था के माध्यम से वक़्फ़ संपत्तियों से आय भी बढ़ाई जा सकती है, जिसे सामाजिक विकास में लगाया जाएगा। उदाहरणस्वरूप, अविकसित या बिना कब्ज़े वाली संपत्तियों को PPP मॉडल या इस्लामी सामाजिक वित्त (Islamic Social Finance) की सहायता से जनकल्याणकारी उपयोग में लाया जा सकता है।
सभी प्रावधानों का समग्र प्रभाव यह होगा कि मुस्लिम समुदाय, जो लंबे समय से वक़्फ़ प्रशासन से निराश था, उसमें नया विश्वास उत्पन्न होगा। वक़्फ़ संशोधन विधेयक 2025 न केवल वक़्फ़ संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, बल्कि उन्हें मुसलमानों के लिए एक सशक्तिकरण के उपकरण के रूप में रूपांतरित करने की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकता है। यह विधेयक केवल एक क़ानूनी सुधार नहीं, बल्कि शरीअत, संविधान और समाज – इन तीनों के बीच संतुलन साधने वाला ऐतिहासिक प्रयास है। मुसलमानों को इस सुधार में भागीदारी करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वक़्फ़ का सही स्वरूप फिर से जीवंत हो और यह आने वाली नस्लों के लिए एक सुरक्षित और उन्नत भविष्य की नींव बने।