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अरण्यऋषि पद्मश्री मारुति चित्तमपल्ली का निधन

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सोलापुर। अवकाश प्राप्त वन अधिकारी, अरण्यऋषि, पद्मश्री से सम्मानित मारुति चितमपल्ली का 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया। मारुति चित्तमपल्ली को 30 अप्रैल, 2025 को पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।

अक्कलकोट रोड पर सुत मिल हेरिटेज, मणिधारी एम्पायर सोसाइटी में उनका निवास था। उनकी अंतिम यात्रा गुरुवार, 19 जून को दोपहर 1 बजे उनके निवास से निकलेगी और रूप भवानी मंदिर के समीप श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार किया जाएगा। पिछले दस दिनों से उन्होंने भोजन से परहेज किया हुआ था और केवल दूध और थोड़ा पानी पी रहे थे।

प्राकृतिक विज्ञान, साहित्य, पक्षी निरीक्षण और अध्यात्म का सुंदर संगम धारण करने वाले उनके व्यक्तित्व को विनम्र श्रद्धांजलि। ऊँ शांतिः

मारुति चित्तमपल्ली का जीवन परिचय

मारुति चित्तमपल्ली का जन्म ५ नवंबर १९३२, सोलापुर, महाराष्ट्र में हुआ। वे प्रकृतिप्रेमी, वन्यजीव संरक्षक एवं प्रख्यात मराठी लेखक हैं। उनके कार्य तथा वनों पर अपरिमित प्रेम के चलते उन्हें “अरण्यऋषि” के रूप में जाना जाता है।

शिक्षा और वनसेवा – चित्तमपल्ली ने कोयम्बटूर स्थित स्टेट फॉरेस्ट सर्विस कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने 36 वर्षों से अधिक समय तक महाराष्ट्र सरकार के वन विभाग में सेवा की। उन्होंने विभिन्न वनों और राष्ट्रीय उद्यानों जैसे कि कर्नाला पक्षी अभयारण्य, नवेगांव राष्ट्रीय उद्यान, नागजीरा वन्यजीव अभयारण्य और मेलघाट टाइगर रिजर्व में काम किया। उन्होंने वन्यजीव संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने नागजीरा और मेलघाट में विस्थापित वन्यजीवों के लिए अनाथालय स्थापित करने में मदद की। उन्हें 18 भाषाओं का ज्ञान था, जिनमें वे संस्कृत, जर्मन और रूसी भाषा का समावेश है।

साहित्यिक योगदान

मारुति चित्तमपल्ली का साहित्य मुख्य रूप से मराठी में है और वन्यजीव, प्रकृति और आदिवासी जीवन पर केंद्रित है। अपने अनुभवों और गहन अध्ययन के माध्यम से, उन्होंने मराठी साहित्य में एक अद्वितीय स्थान बनाया है। उनकी लेखन शैली जीवंत और जानकारीपूर्ण है, जिसमें वैज्ञानिक ज्ञान को रचनात्मक कहानी के साथ जोड़ा गया है। उन्होंने मराठी भाषा में पक्षी विज्ञान और वन्य जीवन से संबंधित कई नए शब्द और संज्ञाएं पेश की हैं। उन्होंने मराठी में पक्षी विज्ञान की कई अवधारणाओं को नाम दिए हैं। उनकी आत्मकथा “चकवा चांदणं” बहुत प्रसिद्ध है।

कुछ प्रमुख साहित्यिक कृतियां :

* निलवंती

* जंगलाचं देणं

* घरट्या पलिकडे

* रातवा

* रानवाटा

* प्राणीकोश

* पक्षीकोश

* सुवर्ण गरुड

* निसर्गवाचन

* शब्दांचे धन

* मृगपक्षीशास्त्र

* केशराचा पाऊस

* आनंददायी बगळे

पुरस्कार और सम्मान – पद्मश्री, विंदा करंदीकर जीवन गौरव पुरस्कार, 2006 में सोलापुर में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष रहे। मारुति चित्तमपल्ली ने अपने लेखन के माध्यम से महाराष्ट्र के जंगलों को ज्ञानवर्धक वर्ग और कविता बना दिया। उनका काम प्रकृति के प्रति उनके असीम प्रेम और इसके संरक्षण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

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