कासगंज में तिरंगा यात्रा के दौरान चंदन गुप्ता की कट्टरपंथियों द्वारा नृशंस हत्या के मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी की विशेष अदालत ने 28 दोषियों को उम्रकैद सजा सुनाई थी, साथ ही न्यायालय ने मामले में विदेशी फंडिंग को लेकर भी कड़ी टिप्पणियां की है.
न्यायालय ने अपने निर्णय में 7 एनजीओ का नाम लिया है. ये सभी एनजीओ देश-विदेश में काम करते हैं. अमेरिका के न्यूयॉर्क और ब्रिटेन के लंदन में चल रहे एनजीओ से भी चंदन गुप्ता के आरोपियों को बचान के लिए मदद आई थी. कई विदेशी एनजीओ ने आरोपियों को बचाने के लिए फंडिंग की.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिका से संचालित Alliance for justice and accountability नाम के एनजीओ ने आरोपियों को बचाने के लिए फंडिंग की. इसी के साथ एनजीओ Indian American Muslim council की तरफ से भी फंडिंग हुई थी. लंदन से संचालित South Asia solidarity Group की तरफ से भी फंडिंग हुई थी. भारत से संचालित एनजीओ भी फंडिंग में शामिल थे. मुंबई का एनजीओ Citizens for justice and Peace, दिल्ली से संचालित एनजीओ People Union for civil liberties और लखनऊ से संचालित एनजीओ Rihai मंच ने आरोपियों की मदद के लिए फेंडिंग की.
विशेष न्यायालय के न्यायाधीश श्री वीएस त्रिपाठी ने अपने निर्णय में कहा कि ऐसे NGOs पर अंकुश लगाया जाना जरूरी है जो दंगाइयों को बचाने के लिए लगातार विधिक सहायता उपलब्ध कराते हैं. इन एनजीओ की फंडिंग कहां से हो रही है, कौन कर रहा है, इनका सामूहिक उद्देश्य क्या है, इसकी भी जांच कराई जाए. जब कोई आतंकी पकड़ा जाता है तो ऐसे NGOs बड़े से बड़ा वकील खड़ा करके उसकी पैरवी कर दंगाइयों को बचाते हैं. उन्हें फंडिंग करते हैं. यह देश के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय है.
विशेष न्यायालय के आदेश की कॉपी भारत सरकार के गृह मंत्रालय के साथ-साथ बार काउंसिल आफ इंडिया को भी भेजी जाएगी. न्यायालय ने कहा कि गैर जरूरी तरीके से न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप रोकने के लिए फैसले की कॉपी गृह मंत्रालय और भारत काउंसिल ऑफ इंडिया को भेजी जाएगी.
विदेशी एनजीओ से फंडिंग की बात सामने आने के बाद चन्दन गुप्ता के पिता सुशील गुप्ता ने कहा कि पहले भी उन पर दबाव बनाने को कोशिश हुई थी, लेकिन उन्होंने लड़ाई जारी रखी. देश-विदेश के एनजीओ से आरोपियों को मदद मिलने की जानकारी कोर्ट के आदेश से मिली, उसके बाद से डर सता रहा है. ऐसे एनजीओ की जांच होनी चाहिए.
कासगंज में एक समय कोई वकील केस लड़ने को तैयार नहीं था. कासगंज कोर्ट में केस की सुनवाई के लिए पूरा हुजूम उमड़ता था. केस को खत्म करने का दबाव बनाने की भी कोशिश की जाती थी. हमने फिर केस को कासगंज से एटा ट्रांसफर करवाया. उसके बाद NIA कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई. बेशक आरोपियों को जेल हुई हो, लेकिन परिवार में अभी भी डर का माहौल है.
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