चित्रकूट।
माँ मंदाकिनी की अविरल-निर्मल धारा बनाए रखने एवं प्रदूषण मुक्त करने हेतु दीनदयाल शोध संस्थान पूरे प्रवाह क्षेत्र का जल वैज्ञानिक, भूगर्भीय एवं सामाजिक परिप्रेक्ष्य में व्यापक अध्ययन कर रहा है। नदी क्षेत्र के व्यापक सर्वेक्षण के साथ कार्य योजना तय करने के लिए भूजल वैज्ञानिकों की टोली के साथ मंदाकिनी अध्ययन यात्रा 17 जून को मध्यप्रदेश के मझगवां जनपद के पयस्वनी के उद्गम स्थल ब्रम्ह कुंड, झिरिया घाट से शुरू हुई थी और यमुना जी में मिलन स्थल तक की गई।
यात्रा के दौरान आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर आशीष पांडेय एवं उनकी टीम ने विद्युत प्रतिरोधक टोमोग्राफी (ERT) जैसी उन्नत तकनीकी का प्रयोग कर भूजल क्षमता का आंकलन करने के लिए वैज्ञानिकों के दल ने पयस्वनी के उदगम स्थल ब्रह्मकुण्ड से सर्वेक्षण किया। पर्यावरण अनुकूल सभी भौगोलिक परिस्थितियों, भूगर्भीय संरचनाओं एवं मानकों का अध्ययन कर 30 प्रतिशत तक जल की क्षमता में वृद्धि करना है।
यात्रा के अंतिम दिन गुरुवार की शाम आरोग्य धाम के सभागार में समारोप कार्यक्रम में अनेक गणमान्य उपस्थित रहे। सतना सांसद गणेश सिंह ने कहा कि दीनदयाल शोध संस्थान धन्यवाद का पात्र है क्योंकि माँ मंदाकिनी (पयस्वनी) के पुनर्जीवन एवं अविरल धारा हेतु विशेषज्ञों की इतनी बड़ी टीम को बुलाकर तीन दिवसीय अध्ययन का कार्य किया। जिसमें नदी को पुनर्जीवित करने हेतु अध्ययन दल द्वारा दिए गए सुझावों को शासन स्तर पर भेज कर उनको क्रियान्वित करने का पूर्ण प्रयास किया जाएगा।
चित्रकूट की इस जीवनरेखा को सामूहिक प्रयत्न से पुनर्जीवन प्रदान करेंगे। नदी सूख रही है, कई जगह जल स्रोत बंद हो गए हैं, उन्हें कैसे खोला जाए इस पर विचार करना होगा। नदियों को पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित कर सकते हैं। जिससे रोजगार सृजन होगा और यह सभी कार्य सामूहिक सहयोग एवं प्रयास से संपन्न हो सकते हैं।
रीवा कमिश्नर बीएस जामोद ने कहा कि चित्रकूट को एक यूनिट के रूप में जोड़कर कार्य करना होगा। गांव के किसान एवं सामान्य जनों को जोड़कर रिचार्ज के लिए आवश्यक सहयोग प्राप्त करना होगा और उनके अनुभवों का लाभ लेकर ही कार्य करना होगा।
सीसीएफ राजेश राय ने कहा कि कैचमेंट एरिया के लिए योजना तैयार है। WRD वन विभाग का सहयोग करके बांधों और तटबंधन के साथ जल संरक्षण की दिशा में कार्य करेगा। वन विभाग वाटर बॉडी स्ट्रक्चर में अन्य विभागों के सुझावों के आधार पर तकनीकी सहयोग लेगा। जिससे और बेहतर कार्य हो पाएगा।
पद्मश्री उमाशंकर पांडे ने कहा कि चित्रकूट की पहचान वन, पर्वत और संतों और माँ मंदाकिनी से है। लगभग 120 किलोमीटर की नदी में उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के 10 किलोमीटर में नदी की स्वच्छता का कार्य ठीक प्रकार से कर दिया जाए तो मंदाकिनी को स्वच्छ बनाया जा सकता है। साथ ही पहाड़ के ऊपर तालाब एवं कुएँ बनाकर जल संरक्षण का कार्य किया जा सकता है। सघन पौधारोपण के साथ जनमानस की भागीदारी अति-आवश्यक है।
उत्तर प्रदेश जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह ने कहा कि मंदाकिनी चित्रकूट की जीवन रेखा है एवं चित्रकूट अनादिकाल से अपना धार्मिक ऐतिहासिक महत्व रखता है। इसके लिए कार्य योजना बना कर देने पर शासन स्तर पर पूर्ण सहयोग प्रदान किया जाएगा और वह शीघ्र ही चित्रकूट प्रवास कर आवश्यक सहयोग हेतु संवाद करेंगे ताकि माँ मंदाकिनी अपने पूर्व स्वरूप में अविरल एवं निर्मल रूप से सतत प्रवाहित हो सके।
मध्यप्रदेश जल संसाधन मंत्री तुलसी राम सिलावट ने कहा कि मंदाकिनी के अस्तित्व के लिए मध्य प्रदेश शासन सतत प्रयत्नशील है और इसके लिए यथासंभव सहयोग शासन स्तर से प्रदान किया जाएगा तथा सभी शासकीय नियमों का कड़ाई से पालन करते हुए चित्रकूट को स्वच्छ एवं सुंदर बनाने के साथ-साथ मां मंदाकिनी को अविरल एवं निर्मल बनाने का सामूहिक भागीदारी से प्रयत्न किया जाएगा।