मुंबई, 24 जून 2025।
मुंबई विश्वविद्यालय के दीक्षांत सभागार में प्रो. अशोक गजानन मोडक द्वारा लिखित पुस्तक ‘इंटीग्रल ह्यूमनिज़्म – अ डिस्टिंक्ट पैरेडाइम ऑफ डेवलपमेंट’ के लोकार्पण समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने कहा कि भारतीय समाज कभी भी अतीत में नहीं रमता। लेकिन भारत के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि वह इतिहास से सीख लेकर भविष्य की दिशा में आगे बढ़े।
सरकार्यवाह जी ने कहा कि भारतीय दर्शन पर आधारित समसामयिक व्याख्या ‘इंटीग्रल ह्यूमनिज़्म’ नामक पुस्तक में प्रस्तुत की गई है। इसे एक सर्वकालिक ग्रंथ कहा जा सकता है जो मानव जीवन को दिशा देने वाला है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने ‘एकात्म मानवदर्शन’ के माध्यम से जो संदेश दिया था, वही संदेश समाज तक पुस्तक के रूप में पहुँचाने का कार्य अशोक राव मोडक ने किया है।
उन्होंने कहा कि “बाजार आधारित और सरकार केंद्रित जीवनशैली समाज के लिए हानिकारक है। इस मॉडल का एक ज्वलंत उदाहरण है ई-कॉमर्स… इसके कारण आपसी संबंध केवल लेन-देन तक ही सीमित हो गए हैं।”
“यदि मुझे तमिलनाडु के किसी गाँव में यह पुस्तक प्राप्त करनी हो, तो मैं उसे आसानी से ऑनलाइन ऑर्डर कर सकता हूँ। यह सुविधाजनक भी है। मैं पैसे देता हूँ और वे पुस्तक पहुँचा देते हैं। लेकिन क्या यह वाकई इतना सरल है? पारंपरिक बाजार लंबे समय से स्थापित संबंधों के कारण विकसित हुए थे।
लेकिन ई-कॉमर्स में कोई चेहरा नहीं होता। इसके कारण हम ऐसे मानवीय संबंधों का सार, उनका सत्व धीरे-धीरे खोते जा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, अमेरिका में ‘समाज’ व्यावहारिक रूप से समाप्त हो चुका है, और वहाँ केवल व्यक्ति और राज्य ही शेष बचे हैं।”
प्रकृति और जीवनशैली को लेकर आधुनिक विश्व के दृष्टिकोण पर सरकार्यवाह जी ने कहा कि “हम बिजली के बिना नहीं जी सकते, लेकिन हमें यह गहराई से सोचना होगा कि इसे कार्यकुशलता से कैसे उत्पन्न किया जाए और पर्यावरण का सम्मान करते हुए इसे अपने जीवन में किस प्रकार सम्मिलित किया जाए।”
“भारत का योगदान दर्शन (तत्त्वज्ञान) के क्षेत्र में है, जो प्रत्येक व्यक्ति को अपना मार्ग स्वयं खोजने के लिए प्रेरित करता है। भागवान बुद्ध, महावीर और स्वामी विवेकानंद केवल विचारक नहीं थे, वे तत्त्वज्ञानी थे।”
पुस्तक में प्रस्तुत तर्कों का उल्लेख करते हुए सरकार्यवाह ने कहा, “पश्चिमी दुनिया का दृष्टिकोण व्यक्तिगत अधिकारों, सबसे योग्य व्यक्ति के अस्तित्व और प्रकृति के शोषण के इर्द-गिर्द घूमता है। लेकिन हम करुणा, संवेदनशीलता और सामंजस्य पर आधारित एक भिन्न दृष्टिकोण की चर्चा करते हैं। मानव समाज का हिस्सा है और समाज प्रकृति के बिना अस्तित्व में नहीं रह सकता।”
कार्यक्रम के दौरान मंच पर राज्य के उच्च व तंत्र शिक्षा मंत्री चंद्रकांत दादा पाटिल, इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च के मेंबर सेक्रेटरी प्रो. धनंजय सिंह, मुंबई विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति प्रो. रविंद्र कुलकर्णी उपस्थित थे। इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च ने पुस्तक का प्रकाशन किया है।
चंद्रकांत दादा पाटील ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अपने कार्यकाल में ‘एकात्म मानवदर्शन’ के विचार पर आधारित कार्य किया। स्वामी विवेकानंद के इस विचार को पंडित जी ने आगे बढ़ाया। वही विचार अशोक राव मोडक ने पुस्तक के माध्यम से समाज में गहराई से पहुँचाया है। पुस्तक की गहराई और लेखक का चिंतन प्रत्येक पाठक को पुस्तक की ओर आकर्षित करेगा। आने वाले समय में ‘एकात्म मानवदर्शन’ का विचार शैक्षणिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध होगा।
प्रो. अशोक गजानन मोडक ने कहा कि लगभग दशक पहले ‘इंटीग्रल ह्यूमनिज़म’ पुस्तक लिखने की शुरुआत हुई थी। 2015 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने मुझे राष्ट्रीय शोधकर्ता (राष्ट्रीय संशोधक) के रूप में सम्मानित किया, तभी इस पुस्तक को लिखने का संकल्प लिया। यह पुस्तक पंडित दीनदयाल उपाध्याय को समर्पित है। ‘इंटीग्रल ह्यूमनिज़म’ भारतीय विचार परंपरा पर आधारित है और यह भारत का मूलभूत दर्शन है।