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युवा साहित्यकार सम्मेलन – कुछ भी क्यों लिखना?

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“एक मित्र ने पूछा कि दो सौ पेज की किताब लिखने के लिए संदर्भ कहाँ-कहाँ तलाशना होगा? गूगल पर कितना मिलेगा? यह कैसे सवाल हैं। किसने कहा है कि लिखना है और वो भी दो सौ पेज में लिखना है। लिखना ही है तो ढाई सौ पेज में क्यों नहीं या डेढ़ सौ में क्यों नहीं। पहली बात तो ये कि लिखना ही क्यों है?’

“यदि किसी डॉक्टर, वैद्य या हकीम ने न कहा हो और किसी ने बंदूक सिर पर न तान रखी हो तो कुछ भी लिखना तब करें जब आत्मा की पुकार हो। कुछ भी लिखने के पहले दस बार सोचें, आपका लिखा हुआ समय की कसौटी पर कितना और कहाँ तक टिकेगा। जो लिखें, ऐसा लिखें कि लोग कहें-ये आप ही लिख सकते थे…’

“औपनिवेशिक दासता को अब दोष देना बंद करें। बार-बार उसका जिक्र करना ही क्यों। हमारे भाषण क्यों औपनिवेशिक गुलामी के मंगलाचरण से शुरू होते हैं। भारत को स्वाधीन हुए 75 साल से अधिक हो गए। हमारे चित्त अभी भी उस काले कालखंड पर अटके हुए हैं। अब आगे की बात होनी चाहिए। रात गई, बात गई…’

“विषय कुछ भी हो आज के अनेक लेखक दस बार लिखेंगे – हमारे ऋषि-मुनियों के भारत में ऐसा था, वैसा था, वे ये जानते थे, वो जानते थे और आज जो कुछ भी है, सब उन्हें पता था। सच कहूँ तो किसी उच्च लोक में विराजित ऋषि-मुनि भी त्राहिमाम्-त्राहिमाम् कर रहे होंगे कि हे भारतीयो, अब हमारा पीछा छोड़ो और खुद भी कुछ करो…’

“अटलांटा जर्नल नाम के अखबार में मार्गरेट मिशेल नाम की एक रिपोर्टर थी। लोकल विषयों में लोकल पन्नों पर रिपोर्टिंग उसका काम था। एक हादसे में वह अपंग होकर घर बैठ गई। खाली बैठे उसने कुछ लिखना शुरू किया। वह एक शानदार किताब बन गई, जिसका नाम है – गॉन विद द विंड। छपते ही वह करोड़ों कॉपियों में बिकी। कई भाषाओं में अनुवाद हुए। हॉलीवुड ने उस पर मूवी बनाई। कोई भी रचना अपने रचनाकार का चयन स्वयं करती है।’

“दो भाइयों के बीच हुआ पत्र व्यवहार इरविंग स्टोन के हाथ लगा। सैकड़ों चिट्ठियाँ, जो दोनों भाइयों के बीच लिखी गई थीं। उनके नाम थे – थियो और विनसेंट। वे फ्रांस के थे। विनसेंट चित्र बनाता था। थियो उसे पैसे भेजता था। विनसेंट ने जिंदगी भर केवल चित्र बनाए। उसके जीवनकाल में केवल एक ही प्रदर्शनी लगी और अखबार में केवल एक ही समीक्षा छपी। जब उसके चित्रों में कुछ नयापन नहीं रहा तो एक दिन उसने खुदकुशी कर ली। आज उसके चित्र करोड़ों में नीलाम होते हैं। वह विनसेंट वैनगॉग था। उन चिट्ठियों के आधार पर उस महान चित्रकार पर लिखी गई एक किताब – लस्ट फॉर लाइफ ने इरविंग स्टोन को लेखक के रूप में विश्व प्रसिद्ध बना दिया। ये आत्मा की गहरी पुकार से संभव होता है। केवल दो सौ पेज के लिए कुछ भी क्यों लिखना। कागज और पन्ने बचाकर हम पेड़ कटने से बचा सकते हैं।’

(विजय मनोहर तिवारी, नर्मदापुरम् में युवा साहित्यकार सम्मेलन में)

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