नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक व विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के अनेक दायित्वों पर रहे श्रीयुत् श्रीधर आचार्य अत्यन्त कर्मठ, अनुशासन-प्रिय तथा अनासक्त भाव से देश व समाज की सेवा में जीवन पर्यन्त संलग्न रहे. उनको श्रद्धांजलि देते हुए विश्व हिन्दू परिषद के संरक्षक अशोक सिंहल ने कहा कि अपने कार्य में आनन्द का अनुभव करते हुए समाज की पीड़ा को वे सहज ही पहचान लेते थे और उसके निदान के लिये सदैव सक्रिय रहते थे. संस्कृत के प्रति उनकी अगाध निष्ठा थी, वहीं हिन्दी, अंग्रेजी, उडि़या, मराठी इत्यादि अनेक भारतीय भाषाओं के वे ज्ञाता थे. उन्होंने आचार्य जी को एक महापुरुष बताते हुए उनके आदर्श जीवन को समाज के हर व्यक्ति तक पहुंचाने की इच्छा व्यक्त की.
दक्षिणी दिल्ली के रामकृष्ण पुरम स्थित विहिप मुख्यालय में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में बोलते हुए परिषद के अन्तर्राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री श्याम गुप्त ने कहा कि वे जहां अपने कार्य के प्रति कठोर थे, वहीं दूसरों के प्रति मातृत्व से भी अधिक मृदु थे. उनके अन्दर अनासक्ति का भाव दुर्लभ था और गो माता के प्रति उनका समर्पण व भक्ति अनन्य थी. स्वामी विज्ञानानन्द ने कहा कि मुझे विश्वास है कि आचार्य जी पुनः पुण्य-धरा पर आकर, संघ के प्रचारक बन देश की सेवा करेंगे.
अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हुए विहिप के अन्तर्राष्ट्रीय संगठन महामंत्री दिनेश चन्द्र जी ने कहा कि हिन्दू संस्कारों व मान-बिन्दुओं का अक्षरशः पालन कर सदैव सक्रिय रहने वाले आचार्य जी समाज हित के कार्य अपने लिये स्वयं खोज लिया करते थे. समाज के कार्य का चिन्तन हमेशा उनके मन में रहता था. केन्द्रीय मंत्री व कार्यालय प्रमुख कोटेश्वर शर्मा ने अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हुए कहा कि गत कुछ वर्षों से सद्-साहित्य और कामधेनु औषधी तथा गोमूत्र के प्रचार में उनकी अगाध श्रद्धा थी. उनके निर्भीक स्वभाव का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि उड़ीसा के क्योंझर में संघ के एक शिक्षा वर्ग में जाते समय उनकी मोटर साईकिल एक बाघ से टकरा गई, गिरने के कारण वे घायल तो हुए किन्तु बाघ ने उनका कुछ नहीं बिगाड़ा और वे घायल अवस्था में ही संघ शिक्षा वर्ग में पहुंचे. नियमों का कठोरता से पालन और अनुपयोगी वस्तुओं का सदुपयोग करना उनकी खूबी थी. गत तीन माह से वे सिर्फ गोमूत्र पर जीवित थे.
परिषद के केन्द्रीय मंत्री मोहन जोशी ने उन्हें एक समाज सुधारक बताते हुए कहा कि वे जहां भी कोई छोटी सी भी त्रुटि देखते थे, उसके ठीक होने तक पीछे पड़े रहते थे. उत्तरायण के शुक्ल पक्ष में उन्होंने अपनी इच्छा मृत्यु से शरीर छोड़ा.
विहिप प्रवक्ता विनोद बंसल ने कहा कि संघ व विश्व हिन्दू परिषद के अनेक दायित्वों पर रहे आजीवन प्रचारक 84 वर्षीय श्रीयुत् श्रीधर हनुमन्त आचार्य का 28 फरवरी, 2015 को संकट मोचन आश्रम में ही शरीर शान्त हो गया था. 28 अगस्त 1928 को मेंगलोर (कर्नाटक) में जन्मे आचार्य जी 1946 में संघ के स्वयं सेवक बने और अपना सम्पूर्ण जीवन अविवाहित रह कर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के माध्यम से देश और धर्म को समर्पित कर दिया. यहां तक कि 01 मार्च, 2015 को उनकी इच्छा अनुसार उनके शरीर को भी दधीचि देह दान समिति को दान कर दिया गया.
विहिप मुख्यालय में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में स्वदेशी जागरण मंच के सरोज मित्रा, भारतीय मजदूर संघ के कृष्णचन्द्र मिश्रा, हिन्दू विश्व के दूधनाथ शुक्ल व अमेरिका से आए आचार्य जी के भतीजे कृष्णाचार्य सहित अनेक वक्ताओं ने अपने श्रद्धासुमन अर्पित किये.