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कश्मीर को मिलेगा उसका खोया हुआ स्वरूप

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कश्मीर के मंदिर सूने पड़े हैं, खंडहर हो चुकी दीवारें अतीत में हुए अत्याचारों को बताने के लिए काफी हैं. मूर्तियां ध्वंस्त पड़ी हुई हैं, 85 करोड़ से अधिक हिन्दुओं की आस्था के केंद्र कश्मीर के मंदिरों में जहां भक्त उनके दर्शन किया करते थे, आज खंडित हो चुकी हैं. कभी इन मंदिरों में कश्मीर का हिन्दू समाज सर्वे भवन्तु सुखिना: की कामना लेकर समस्त जगत के सुख-शांति की प्रार्थना करता था, उन दिव्य, प्राचीन मूर्तियों को दरिया में फेंक दिया या फिर जला दिया.

पिछले कुछ दशकों में राज्य के सैकड़ों मंदिर इस्लाम की बर्बरता, क्रूरता, बहशीपन का शिकार हुए. असल में यही है इस्लाम और मुस्लिम बहुल कश्मीर का पूरा सच, जहां इस्लाम के नाम सिर्फ उन्माद फैलाया जाता रहा.

30 वर्ष पहले समय—समय पर घाटी के मंदिर जलाए जाते रहे, उन्हें तोड़ा जाता रहा, हिन्दुओं की आस्था पर बर्बरता से कुठाराघात होता रहा लेकिन कहीं से इसके विरोध में कोई स्वर नहीं गूंजा. न ही घाटी के इस्लाम पसंद लोगों की ओर और न ही देश के सेकुलरों की ओर से. ऐसे मौके पर न ही किसी को डर लगा देश में और न ही किसी ने देश छोड़कर जाने की धमकी दी. बात-बात पर जिस गंगा-जमुनी तहजीब के कसीदे पढ़े जाते हैं, वे लोग भी मंदिरों के ध्वंस होते समय नदारद रहे या मूक प्रश्रय देते दिखे. असल में गंगा-जमुनी तहजीब जैसी कोई चीज होती ही नहीं है. अगर होती तो इस्लाम को मानने वाले दारा शिकोह को क्यों भुलाते ??? असल में हिन्दुओं को भ्रमित करने के लिए यह तहजीब गढ़ी गई. क्योंकि इस्लाम में विविधता, बहुलता, मतभिन्नता को कोई जगह है ही नहीं.

कश्मीर में जिन स्थानों पर मंदिर थे, उन जगहों पर अवैध कब्जा करके मस्जिदें-मजारे बनाई गई हैं, बड़े-बड़े होटल, रेस्टोरेंट खोल लिए गए हैं या फिर जिहादियों-अराजक तत्वों और आतंकवादियों का अड्डा बन गए हैं. इसे समझने-जानने और इसकी सत्यता परखने के लिए कश्मीर के सुदूर गावों में जाने की कोई आवश्यकता नहीं है. सिर्फ श्रीनगर स्थित रघुनाथ मंदिर जा कर आप इसकी हालत देख सकते हैं.

किसी समय भव्यता को प्राप्त रहा रघुनाथ मंदिर आज जला पड़ा हुआ है, मंदिर में प्रवेश करने के लिए रास्ता नहीं है, विग्रह के स्थान पर आतंकी संगठन जेकेएलएफ और इंडियन मुजाहिदृीन के देश विरोधी स्लोगन पटे पड़े हुए हैं, पूरा मंदिर खंडहर बन हुआ है और अराजक तत्वों, जिहादियों के देशद्रोही कार्यों के संचालन का अड्डा. मंदिर को देखकर मन में अजीब सी उलझन होती है, डर लगता है. लगता ही नहीं कि यह 85 करोड़ हिन्दुओं के देश का मंदिर है. इसे देख मुगल आक्रांता बाबर, बिन कासिम, औरंगजेब, बुतसिकन सिकंदर की बर्बर यादें ताजा होती हैं.

इस मंदिर के दर्शन उन लोगों को जरूर करने चाहिए जो गंगा-जमुनी तहजीब की बात करते नहीं थकते.

केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के मंदिरों का सर्वे कराए जाने और उन्हें खोले जाने की जो बात की, वह पूरे भारतीय समाज के लिए गौरव की बात है. सिर्फ जम्मू—कश्मीर के लोगों ही इन टूटे-फूटे मंदिरों को देखकर दुख नहीं होता था, बल्कि जो भी भारतवासी वह किसी भी कोने का यहां आता था, देखकर द्रवित होता था, मन ही मन रोता था और अपने आराध्य की दशा देखकर उनसे माफी मांगता था. यकीनन केंद्र सरकार की यह घोषणा उनके लिए भी किसी प्रसन्नता से कम नहीं है जो घाटी में सूफी धारा (वैसे हकीकत में सूफी धारा हिन्दुओं को कन्वर्ट करने का एक तरीका है, इसलिए इससे भी सचेत रहने की जरूरत है) को मानने वाले हैं, उसे आगे बढ़ाने वाले हैं.

कम से कम अब ऋषि कश्यप, राजा ललितादित्य, राजा अवंतिवर्मन की इस धरती का खोया हुआ स्वरूप वापस मिलेगा, घंटे-घड़ियाल की गूंज होगी और सनातन संस्कृति की स्थापना की दिशा में एक कदम आगे बढ़ेगा. इसे ही सही मायने में कहेंगे-अब होगा न्याय.

 

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