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कामायनी का कमाल

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(वि.सं.के. पटना). जब समझ में यह नहीं आये कि क्या करें, क्या न करें तब यह देखना चाहिये कि आपके कदम से समाज के आखिरी व्यक्ति को लाभ मिलेगा या नहीं.’ महात्मा गांधी के इसी संदेश के साथ सोनपुर में जन्मी और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से पढ़ी कामयानी समतामूलक समाज के स्थापनार्थ आर.टी.आई. कार्यकर्ता के रूप में गरीबों एवं दलितों को उनका हक दिलाने हेतु प्रयासरत हैं. इसकी शुरूआत उन्होंने 2008 में गरीबों एवं दलितों को समाज में मुकाम दिलाने हेतु कैमूर और कटिहार में मनरेगा सर्वे के काम से की और इसमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार पाया. सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार मस्टर रोल में उजागर हुआ. मस्टर रोल में एक ही गांव में 108 से 100 मजदूरों का काम उन्होंने कागज पर ही पाया जिसके विरूद्ध उन्होंने जबरदस्त अभियान छेड़ा और मजदूरों को उनका काम एवं मजदूरी दिलाने में सफलता पायी. संघर्ष की राह बढ़ने पर अपने पति श्री आशीष रंजन के साथ मिलकर जन-जागरण शक्ति नामक संगठन के माध्यम से बिहार सरकार द्वारा मनरेगा मजदूरों की मजदूरी 144 रू. से घटाकर 138 रु. किये जाने का प्रबल विरोध किया. फलस्वरूप उनके संगठन के आगे बिहार सरकार को झुकना पड़ा और पुनः मजदूरों की मजदूरी 138 रूपये से बढ़ाकर 162 रूपये प्रतिदिन कर दी गयी. इसके अतिरिक्त 2013-14 के बीच एक-के-बाद एक करके छः आर.टी.आई. कार्यकर्ताओं की हत्या के खिलाफ उन्होंने ह्विसल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट के लिये भी जबरदस्त अभियान चलाये जिसके फलस्वरूप ही आज यह एक्ट लागू हो पाया है. अभी वे राष्ट्रीय स्तर के अभियान नेशनल अलायंस फॉर पिपुल मूवमेन्ट, नेशनल कैम्पेन फॉर पीपुल, राइट टू फूड कैम्पेन और पेंशन कैम्पेन से अपने उद्देश्य की प्राप्ति हेतु जुड़ी हुई हैं.

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