चीन को संशय की नज़रों से देखती दुनिया ?
यशार्थ मंजुल / नई दिल्ली
कोविड-19 ने दुनिया के लगभग हर हिस्से में जीवन को घुटने पर ला दिया है. मध्य चीन के हुवेई प्रांत में उत्पन्न इस वायरस ने अब तक 1,15,000 से अधिक लोगों की जान ली है. 13 अप्रैल, 2020 को रॉयटर्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार कोविड 19 अब तक 175 से अधिक देशों में अपनी जड़ें जमा चुका है. मात्र 16 ही देश अभी ऐसे बचे हैं, जहां कोविड-19 का एक भी संक्रमण नहीं पाया गया है.
हालांकि इस प्रभाव को काफी कम किया जा सकता था, अगर चीन शुरुआत से वायरस के प्रकोप के बारे में अधिक पारदर्शी होता. आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष समीर सरन के अनुसार “जब से शी जिनपिंग ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव का पद संभाला है, तब से चीन ने लगातार अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में नेतृत्व की स्थिति में खुद को मजबूत किया है, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर अपनी पकड़ मजबूत की है. परन्तु कोविड-19 पर चीन की प्रतिक्रिया ने दुनिया को चीनी नेतृत्व की वास्तविक सोच का सामना करने के लिए मजबूर किया है.
वो आगे लिखते हैं – “हालांकि कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा स्थापित एक राजनीतिक सत्ता से किसी और तरीके की प्रतिक्रिया की उम्मीद भी नहीं की जा सकती. चीन के वैश्विक हित, अपने घरेलू हितों की तरह, एक प्रकार की वृत्ति से उपजा है और वो है सर्वज्ञ, सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान कम्युनिस्ट पार्टी की निरंतरता सुनिश्चित करना”. इस वायरस की उत्पति को लेकर कई तरह की थ्योरी सामने आ रही हैं. वॉशिंगटन पोस्ट ने जनवरी में इजराइल के एक रिसर्चर के हवाले से लिखा है कि संभवत: वायरस चीन के हुबवेई में वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में बनाया गया. वहीं, शिक्षा और वैज्ञानिक संस्थानों से जुड़े लोग लीक की सम्भावना पर खुल के चर्चा कर रहे हैं.
अमेरिका से निकलने वाली पत्रिका नेशनल रिव्यू ने भी इस बात पर प्रकाश डाला है कि कैसे चीन ने इस वायरस से सम्बंधित सूचनाएं दुनिया से छिपाईं. अगर ये सूचनाएं सही समय पर बाहर आ गई होतीं तो आज ये वायरस ऐसी महामारी की शक्ल न लिए होता. चीन के भीतर शुरुआत में इस वायरस के संक्रमण की टाइम लाइन और चीन की कम्युनिस्ट सरकार की शुरुआती प्रतिक्रियाओं को ध्यान से देखें तो समझना मुश्किल नहीं है कि किस प्रकार से चीन द्वारा इस वायरस के संक्रमण से जुड़ी जानकारी दुनिया से छिपाई गयी. ऐसा करने में चीन की विश्व स्वास्थ्य संगठन से साठ-गांठ की कई थ्योरी भी सामने आ रही हैं. अमेरिका की मैगज़ीन नेशनल रिव्यु के अनुसार, इस वायरस के संक्रमण से जुड़ा पहला मामला अधिकारिक रूप से 01 दिसम्बर को सामने आया, दिसम्बर के दूसरे सप्ताह तक वुहान के डाक्टरों को ऐसे अन्य मामले मिलने लगे जो ये संकेत करते थे कि कोई संक्रमण मानव से दूसरे मानव में पहुंच रहा है. 25 दिसम्बर को वुहान के मेडिकल स्टाफ में इस वायरस से जुड़े लक्षण देखने को मिले और देखते ही देखते बड़ी मात्रा में ये संक्रमण वुहान में फैलने लगा. वुहान के ही एक अस्पताल में कार्यरत 34 वर्षीय डॉक्टर ली वेनलियांग ने सबसे पहले इस बीमारी के प्रकोप के बारे में चेताया और यह भी कहा कि इस बीमारी के लक्षण SARS से मेल खाते हैं, ये संक्रमण मानव से मानव में बहुत ही तेज़ी से फ़ैल रहा है. 31 दिसम्बर 2019 ली वेनलियांग की बातों का खंडन करते हुए अधिकारिक रूप से वुहान के स्वास्थ्य विभाग ने एक बयान जारी किया – “अस्पताल के कर्मचारियों में किसी भी प्रकार का संक्रमण नहीं पाया गया है, मानव से मानव संक्रमण की बात गलत है”.
इस घटना के बाद प्रारंभ हुआ ली वेनलियांग की प्रताड़ना का दौर, उन्हें वुहान के पब्लिक सिक्योरिटी ब्यूरो द्वारा ये आरोप लगाते हुए समन जारी किये गए कि उन्होंने आम जनता को गुमराह करने की कोशिश की. 03 जनवरी को ली वेनलियांग ने माफ़ी मांगते हुए वुहान के पुलिस स्टेशन में एक आवेदन दिया कि उनके द्वारा भविष्य में लोगों को गुमराह करने का कोई भी कार्य नहीं किया जाएगा”. 03 जनवरी को ही हुवेई के प्रांतीय स्वास्थ्य आयोग के निर्देशों द्वारा वुहान से आये कोरोना सम्बंधित सभी नमूनों को नष्ट कर दिया गया. चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ आयोग द्वारा सभी सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं को “नई बीमारी के सम्बन्ध में कुछ भी न लिखने” के कड़े निर्देश जारी किये गए. 06 जनवरी, 2020 को न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा “वुहान मे निमोनिया जैसी बीमारी” के बारे में छपने के बाद चीन की कम्युनिस्ट सरकार हरकत में आई और उसके द्वारा वुहान में बाहर से आए यात्रियों के लिए एक एडवाइजरी जारी की गई. जिसमे यात्रियों को “वुहान में जीवित और मरे हुए जानवरों के संपर्क में न आने के लिए कहा”. इन सबके बाद भी चीन का स्वास्थ्य आयोग इस बात पर अडिग रहा कि “इस बीमारी का मानव से मानव संक्रमण से कोई लेना देना नहीं”. 14 जनवरी, 2020 को इसके सम्बन्ध में विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा प्रथम बयान जारी किया गया, जिसमे अब तक चीन के ही पक्ष को लोगों के सामने रखा गया. 14 जनवरी के बाद विश्व के अन्य देशों द्वारा निमोनिया जैसी बीमारी के लक्षण रिपोर्ट होने की शुरुआत हुई. 15 जनवरी को चीन के कम्युनिस्ट प्रशासन द्वारा पहली बार मानव से मानव संक्रमण की बात को माना गया. अमेरिका में 21 जनवरी को इस बीमारी से जुड़ा पहला मामला सामने आया, 22 जनवरी को विश्व स्वास्थ संगठन की एक टीम द्वारा वुहान में एक फील्ड विजिट के बाद “मानव से मानव संक्रमण” की बात पर मुहर लगा दी. वुहान के भीतर इतना कुछ घटित हो रहा था, मगर उसके बाद भी स्थानीय प्रशासन की अनुमति से वुहान में वहां के नए साल के सालाना जलसे को बड़े ही धूम धाम से मनाया गया. ये वहां की कम्युनिस्ट सरकार की लचरता, गैर जिम्मेदाराना रवैय्या और मानवीय जीवन के प्रति घोर असंवेदनशीलता को दर्शाता है. अगर चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने इनमें से किसी भी मानवीय मूल्यों की तरफ थोड़ी से भी संवेदना दिखाई होती तो विश्व की ऐसी सूरत नहीं होती जैसी की आज है.
07 फरवरी, 2020 को वुहान के अस्पताल में डॉ. ली वेनलियांग की मृत्यु हो गयी. हम अभी भी नहीं जानते कि कब, कहां और कैसे ये सब ख़त्म होगा. लेकिन जब भी खत्म होगा, तब दुनिया के सभी देशों को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि इस आपराधिक कृत्य की अंतरराष्ट्रीय जवाबदेही तय हो.
लेखक, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर हैं.