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क्या लिबरल-सिकुलर मीडिया के लिए ये घटनाएं मॉब लिंचिंग नहीं?

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निकुंज सूद

नई दिल्ली. इंदौर में स्वास्थ्य विभाग की टीम पर जिहादियों की भीड़ ने हमला किया, जिसमें दो महिला डॉक्टर घायल हो गईं. जयपुर में भी स्वास्थ्य विभाग की टीम पर भी जिहादी भीड़ द्वारा हमला किया गया. उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में पुलिस टीम पर हमला, रामपुर में उप जिलाधिकारी पर हमला. कन्नौज में जिहादी भीड़ द्वारा पुलिस कर्मियों पर जानलेवा हमला. मधुबनी में जिहादियों द्वारा पुलिस टीम पर हमला और पथराव…..व अन्य……

ये समस्त घटनाएं पिछले कुछ दिनों की हैं. लेकिन क्या किसी ने मॉब लिंचिंग का शोर सुना? या मॉब लिंचिंग के नाम पर अपना एजेंडा चलाने वाले सिकुलर लोगों को देखा? मॉब लिंचिग का आंदोलन चलाने वालों से पूछा जाना चाहिए कि क्या ये सारी घटनाएं मॉब लिंचिंग की परिभाषा में नहीं आतीं? क्या केवल मुसलमान के साथ होने वाली कोई घटना ही मॉब लिंचिंग के दायरे में आती है, भले ही वह चोर क्यों न हो? गौ मांस का तस्कर क्यों न हो? अन्य किसी के साथ ऐसी घटना होगी तो मॉब लिंचिंग नहीं माना जाएगा? हालांकि ऐसी किसी भी प्रकार की हिंसा अपराध है.

हाल ही में हुई उपरोक्त समस्त घटनाओं में सभी लोग अपनी ड्यूटी पर थे, वर्तमान संकट के समय में हमारे भले के लिए ही डटे हुए हैं. इंदौर की घटना के बाद डॉ. आनंद राय ने एक टीवी चैनल से कहा कि “हम लोगों की ‘मॉब लिंचिंग’ हो सकती थी. अगर ऐसा होता तो करीब 200 से ज्यादा लोग मारे जाते.”

पुरानी घटनाएं…

झारखंड में तबरेज की मौत के मामले में एक बात स्पष्ट थी कि वो चोरी करने का आरोपी थी, लेकिन भीड़ द्वारा उसकी हत्या को जायज नहीं ठहराया जा सकता. सीट के विवाद को लेकर हुई मारपीट के बाद जुनैद की मौत हो या घर में गौ मांस रखने वाले अखलाक की मौत का मामला हो. सिकुलर मीडिया और राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले फौरन उठ खड़े हुए थे. उनका नेटवर्क एकदम सक्रिय हो गया था. तबरेज की मौत पर उत्तर प्रदेश में शांति मार्च निकाले गए थे और पिछले साल जून में निकाले शांति मार्च के दौरान जो उपद्रव हुआ था, वह सबको याद होगा. स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा था.

अभी की घटनाएं…

मध्य प्रदेश के इंदौर के टाटपट्टी बाखल में कोरोना वायरस के संक्रमण की जांच करने गई टीम पर बुधवार को मुसलमानों ने पथराव किया. घटना की सूचना मिलने पर पुलिस ने मौके पर पहुंचकर स्थिति को नियंत्रण में लिया. इंदौर में स्वास्थ्य विभाग की टीम बुजुर्ग महिलाओं की जांच करने पहुंची थी. तभी वहां के लोगों ने उनके ऊपर थूकना शुरू कर दिया. देखते ही देखते बुर्का पहने कुछ महिलाओं और मुस्लिम युवकों ने पत्थरबाजी करना शुरू कर दी. जब स्वास्थ्य विभाग की टीम वहां से जान बचा कर भागी तो भीड़ ने गाली देते हुए डाक्टरों को दौड़ाया. हमले में दो महिला डाक्टर घायल हो गईं.

31 मार्च को राजस्थान के जयपुर के रामगंज इलाके में डाक्टरों की टीम कोरोना मरीजों को चिन्हित करने गई. वहां भी मुसलमान युवकों ने स्वास्थ्य विभाग की टीम पर हमला कर दिया. स्वास्थ्य विभाग की तरफ से डॉ. अनिल शर्मा ने पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई. पुलिस ने इस मामले में एक आरोपी रिजवान खान को गिरफ्तार किया.

उत्तर प्रदेश के रामपुर जनपद के टांडा में बुधवार की शाम को एसडीएम गौरव कुमार, तहसीलदार महेंद्र बहादुर सिंह एवं कोतवाली थाने की पुलिस लॉकडाउन की स्थिति का जायजा ले रहे थी. मोहल्ला – मियां वाली मस्जिद के पीछे पहुंचे, तो वहां पर कुछ युवक भीड़ लगाए हुए थे. एसडीएम गौरव कुमार ने उन युवकों को अपने-अपने घरों में जाने के लिए कहा, तो युवकों ने घरों की छत पर पहुंच कर पथराव कर दिया.

सहारनपुर जनपद में पुलिस को सूचना मिली कि बेहट कोतवाली क्षेत्र के गांव जमालपुर में स्थित मस्जिद के बाहर कुछ मुसलमान नमाज पढ़ने के लिए एकत्र हुए हैं. पुलिस ने मौके पर पहुंचकर समझाने का प्रयास किया कि कोरोना वायरस की महामारी को देखते हुए लॉकडाउन किया गया है, इसलिए मस्जिद में ज्यादा संख्या में एकत्र होकर नमाज न पढ़ें. पुलिस द्वारा नमाज पढ़ने से मना करने पर मुसलमानों ने पुलिस पर हमला कर दिया. पुलिस ने 6 महिलाओं समेत 26 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. सहारनपुर जनपद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक दिनेश कुमार प्रभु ने बताया कि “मस्जिद में नमाज पढ़ने की सूचना पर पुलिस मौके पर गई थी. पुलिस टीम पर हमला किया गया. एफआईआर दर्ज करके आवश्यक कार्रवाई की जा रही है.”

बिहार के मधुबनी की घटना हो या उत्तर प्रदेश के कन्नौज या मेरठ, मुजफ्फरनगर की घटना सभी की कहानी एक जैसी है. भीड़ ने एकत्रित होकर पुलिस व स्वास्थ्य़ विभाग की टीमों पर हमला किया. सिकुलरों से केवल एक ही सवाल है, क्या इन घटनाओं को मॉब लिंचिंग नहीं मानेंगे क्योंकि यहां पीड़ित आपके राजनीतिक स्वार्थ को सिद्ध करने वाले धर्म के लोग नहीं हैं.

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