नई दिल्ली. अन्तरराष्ट्रीय सांस्कृतिक अध्ययन केन्द्र द्वारा नई दिल्ली में 9वें चमनलाल स्मृति व्याख्यान में केन्द्रीय विद्युत राज्य मंत्री पीयूष गोयल जी ने कहा कि हर व्यक्ति एवं संस्था की निगरानी तथा मार्ग में भटकने से बचाने के लिए कोई न कोई मौरल अथॉरिटी आवश्यक होती है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रूप में हमें वह अथॉरिटी मिली है जो हमें गलत रास्ते में जाने से बचाती आई है. श्री चमन लाल जी भी संघ के शीर्षस्थ मार्गदर्शक थे, जिनके सरल, सहज व सभी के साथ समान आत्मीय व्यवहार के कारण लोग केशव कुंज में उनसे मिलने खिंचे चले आते थे. उनकी सादगी इससे भी झलकती थी कि उन्होंने कभी प्रेस किये कपड़े नहीं पहने. चमन लाल जी में भक्ति, नैतिक मूल्यों की शक्ति तथा युक्ति का सामंजस्य था. संघ की शाखा में जो गीत गाया जाता है – तन समर्पित, मन समर्पित और जीवन समर्पित यह पंक्तियां उनके लिए सटीक बैठती हैं. संघ के विश्व विभाग के दायित्व का निर्वाह श्री चमन लाल जी ने पूर्ण निष्ठा व कुशलता से कर के विश्व की सोच को भारतीय विचार की ओर मोड़ने का कार्य किया है. पीयुष गोयल जी ने ‘‘दाराशिकोह के विशेष संदर्भ में हिन्दू धर्म की समन्वयकता’’ विषय पर अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि दाराशिकोह जैसे महान विद्वान व गंगा जमुनी तहजीब नायक को आज देश भूल चुका है, जबकि आज उनके विचारों की देश को बहुत आवश्यकता है.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक डॉ. केके मुहम्मद ने बताया कि मुगल काल में अकबर ने हिन्दू ग्रंथों का फारसी में अनुवाद करवाना आरम्भ किया. बाद में दाराशिकोह ने बहुत से उपनिषद्, अधिकतर हिन्दू धार्मिक ग्रंथों का फारसी में अनुवाद किया. जिससे भारतीय ज्ञान व विचार विश्व में फैला.
राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक डॉ. बीआर मणि जी ने कहा कि यदि शाहजहां के बाद दाराशिकोह भारत के बादशाह बने होते तो भारत का इतिहास कुछ और होता. उन्होंने दाराशिकोह से जुड़े इतिहास के कई तथ्यों को कार्यक्रम में रखा. सौमित्र गोखले जी ने भी अपने विचार रखे.
‘‘दाराशिकोह के विशेष संदर्भ में हिन्दू धर्म की समन्वयकता’’ विषय पर आयोजित सम्मेलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले जी, अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य जी, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री सुनील आंबेकर जी, बाल मुकुन्द पांडे जी, श्याम परांडे जी, स्वर्गीय चमन लाल जी के परिवार के सदस्य तथा बड़ी संख्या में इतिहासवेत्ता व बुद्धिजीवी उपस्थित थे. कार्यक्रम का मंच संचालन श्री अमरजीव लोचन ने किया. अंत में धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर कपिल कपूर ने प्रस्तुत किया.