जबलपुर. अंधाधुंध प्रगति की दौड़ से मानव जाति सर्वाधिक संक्रमित काल से गुजर रही है. यदि इसे रोका नहीं गया तो सदी के अंत तक मानव जाति के समक्ष अस्तित्व का प्रश्न खड़ा हो जायेगा. यह विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह श्री सुरेश सोनी ने 6 सितंबर को भोपाल में आयोजित ‘पर्यावरण और भारतीय दर्शन: संकट से समाधान की ओर’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में व्यक्त किये. एप्को, राज्य जलवायु परिवर्तन ज्ञान प्रबंध केन्द्र, पर्यावरण विभाग एवं मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् के सहयोग से आयोजित इस संगोष्ठी में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री सहित कई मंत्री, प्रशासनिक अधिकारी एवं देश भर से आये प्रतिभागी उपस्थित थे.
म.प्र. विज्ञान प्रौद्योगिकी परिषद् भोपाल के विज्ञान वीथिका सभागार में आयोजित इस संगोष्ठी को संबोधित करते हुए श्री सोनी ने कहा कि कार्बन डाई ऑक्साइड अधिकतम स्तर पर पर्यावरण में मौजूद है. दुनिया में 10 करोड़ एकड़ की कृषि भूमि खत्म हो गई है. समुद्र में एसिड की मात्रा बढ़ने के साथ ही पृथ्वी से कई जीव-जंतु और वनस्पतियों की प्रजातियां खत्म हो गई हैं. अगर इसी गति से पर्यावरण को क्षति होती रही तो इस सदी के अंत तक जीवन के लिये संकट उत्पन्न हो जायेगा. इसके पीछे कल्पना से अधिक विज्ञान और तकनीक के विकास को उत्तरदायी बताते हुये श्री सोनी ने कहा कि बाहर की दुनिया एक हो रही है पर अंदर की दुनिया में दूरी आ रही है. जीवन की जरूरतों के लिये हम जीवन को ही संकट में डालते जा रहे हैं.
श्री सोनी ने कहा कि इस संकट से निकलने के लिये मनोवैज्ञानिक, दार्शनिक, राजनीतिक और आर्थिक सभी आयामों में परिवर्तन के प्रयास करने होंगे. माइन्ड और मैटर को अलग-अलग मानने की अवधारणा को छोड़ना होगा. भारत की वैश्विक दृष्टि और चिंतन से ही पर्यावरणीय मानसिकता और पर्यावरण मित्र तकनीक विकसित होगी. इसके लिये समाज, शासन और प्रशासन को एक साथ आगे आना होगा. प्रकृति के साथ रहने और जितनी भरपाई हो सके उतने दोहन के प्रयास करने होंगे. उन्होंने कहा कि जड़-चेतन में एक ही चेतना है, यह धारणा ही जीवन के अस्तित्व को बचा सकती है. भारतीय दर्शन में यह समान्य व्यवहार में था. भारतीय चिंतन से ही इसका समाधान निकलेगा. क्योंकि यह सहअस्तित्व पर आधारित है. प्रकृति और मानव के बीच दोहन का संबंध है, शोषण का नहीं. जबकि विज्ञान और पश्चिम का दर्शन तो प्रकृति पर विजय प्राप्त करने और आर्थिक विचारधाराओं को प्रोत्साहित करने वाला है. पर्यावरण की चिंता करने वाले वैश्विक मंच समाधान नहीं निकाल पा रहे हैं, क्योंकि वे आधारभूत बातों पर चर्चा नहीं करते. जब तक रूटकॉस्ट पर चर्चा नहीं करेंगे, तब तक जो ताकतवर है, वह कमजोर का शोषण करेगा. भारतीय मुनियों ने एक जंगल का विनाश एक राज्य के विनाश के बराबर माना है और एक जंगल लगाने को एक राज्य के निर्माण बराबर माना है. इसलिये विश्वको वैकल्पिक मार्ग भारत दे सकता है.
श्री सोनी ने कहा कि मध्यप्रदेश देश और दुनिया को इस दिशा का दर्शन करा सकता है. यहाँ प्राकृतिक सम्पदा का आधिक्य है. उन्होंने नर्मदा नदी को अमरकंटक से प्रदूषणमुक्त करने, उसके किनारे पर रहने वालों को जागरूक करने के प्रयासों के साथ ही मृत जल संरचनाओं के पुनर्जीवन के प्रयासों की जरूरत बताई. एप्को के कार्यकारी संचालक श्री अजातशत्रु ने आभार व्यक्त किया.