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भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के लिए आज पूरा विश्व भारत की ओर आशा भरी दृष्टि से देख रहा – शांता अक्का जी

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samarop-1नई दिल्ली. राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका शांता अक्का जी ने कहा कि कश्मीर घाटी के युवकों के साथ-साथ पूरे भारत की युवा पीढ़ी को जाति-बिरादरी और संप्रदाय के नाम पर उकसाने का षड्यंत्र चल रहा है. युवा पीढ़ी को आज एक सकारात्मक दिशा देना अति आवश्यक हो गया है. राष्ट्र सेविका समिति अपने विविध कार्यक्रमों के माध्यम से देश की युवा पीढ़ी को देशभक्त और जागरूक बनाने की दिशा में कार्य कर रही है. वर्तमान परिस्थितियों में युवा पीढ़ी को सही दिशा में ले जाने का संकल्प लेना अब आवश्यक प्रतीत हो रहा है. वह दिल्ली में आयोजित राष्ट्र सेविका समिति के तीन दिवसीय अखिल भारतीय प्रेरणा शिविर के समारोप कार्यक्रम में संबोधित कर रही थीं.

उन्होंने कहा कि उपभोगवादी जीवनशैली और नशीले पदार्थों के सेवन से दूर रहते हुए युवा समाज के सामने सार्थक जीवन का लक्ष्य रखना आज बहुत आवश्यक हो गया है. हमारे देश की युवा पीढ़ी प्रतिभा, मेधा, दृष्टि और श्रद्धा जैसे गुणों से भरपूर है, बस इन गुणों को और अधिक विकासित करने की कला आनी चाहिए. व्यक्तित्व को गढ़ने और संवारने में परिवार की भूमिका अहम है और भारतीय परिवारों में अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने की परंपरा सदा से रही है. शिविर में उपस्थित 2500 के करीब कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए आडंबरपूर्ण जीवन से दूर रह कर, सादगीपूर्ण जीवन जीने का आग्रह किया. मुंडन, सगाई, विवाह आदि अवसरों पर सैकड़ों व्यंजन बनाने से अच्छा है, सादगीपूर्ण स्वादिष्ट व्यंजन बनाएं. पैसे और अन्न को पानी की तरह ना बहाएं. उन्होंने कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि वो अपना समय समाज, देश और मानवता की सेवा में लगाएं. sharing and caring का विचार मन में रखें और निजी स्वार्थ से ऊपर उठ कर सोंचे.

samarop-1उन्होंने लातूर की महिलाओं की प्रशंसा की. जिन्होंने भीषण जल संकट में जाति-धर्म और संप्रदाय का भेद भुला कर पानी के संकट से लोगों को छुटकारा दिलाया. पर्यावरण को लेकर आज पूरी दुनिया में चिंता है, शांताअक्का ने भारत की प्राचीन अवधारणा का उदाहरण दिया कि प्रकृति और हम एक ही तत्व के अंश हैं. प्रकृति पंच तत्वों से बनती है और मानव शरीर भी पंच तत्व से ही बना है. इसलिए प्रकृति को नुकसान पहुंचाना स्वयं को नुकसान पहुंचाना है. प्राकृतिक संसाधनों के संयमित और मर्यादित उपयोग पर बल दिया. पर्यावरण बचाने का यह सर्वोत्तम उपाय है. स्त्री पुरूष संबंधों को लेकर अनेक तरह के विवाद समाज में पैदा हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि स्त्री और पुरूष एक दूसरे के पूरक हैं ना कि प्रतिस्पर्धी. पुरूषों को अपनी ये सोच बदलनी होगी कि महिलाएं उनसे हीन हैं और उपभोग की वस्तु हैं. समिति पारंपरिक मूल्यों को सहेज कर रखने की पक्षधर है, लेकिन युगानुकूल (समय के अनुसार) परिवर्तन आवश्यक है. आत्म सम्मान, आत्मविश्वास, करूणा, ममता आदि महिलाओं के नैसर्गिक गुण हैं. उसमें क्षमताओं की भी कमी नहीं है. महिलाओं के आतंरिक औऱ बाहरी गुणों को निखारने औऱ संवारने का काम समिति पिछले 80 वर्ष से कर रही है. शांता अक्का ने इस बात पर प्रसन्नता जताई कि भारतीय नारी आज हर क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रही है और अपनी पहचान बना रही है.

उन्होंने कहा कि भारतीय जीवन शैली के प्राचीन सांस्कृतिक मूल्यों के लिए आज पूरा विश्व भारत की ओर आशा भरी दृष्टि से देख रहा है. योग और आयुर्वेद जैसी प्राचीन विधाएं आज पूरे विश्व में मान्य हो रही हैं. संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करके 21 जून को अतंरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित कर दिया है. भारतीय चिंतन और परंपराओं को विदेशों में न केवल मान्यता मिल रही है, बल्कि लोग अपने जीवन में भी आत्मसात कर रहे हैं. श्रीमद्भवद्गीता, रामायण औऱ महाभारत जैसे महान ग्रंथों को नीदरलैंड में चार वर्ष से ग्यारह वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए स्कूलों में अनिवार्य कर दिया गया है. अमेरिका के अनेक स्कूलों में गुरू पूर्णिमा के दिन गुरू वंदना आरंभ हुई है. इस वर्ष भारतीय संस्कृति को एक और गौरव मिला. दीपावली के शुभ अवसर पर अमेरिकी सरकार ने मिट्टी के दीये का डाक टिकट जारी किया. हल्दी औऱ नीम को पेटेंट करने की होड़ लगी है जो भारत के घर-घर में दैनिक उपयोग की वस्तु है.

शांता अक्का जी ने न केवल समिति कार्यकर्ताओं अपितु देश-विदेश की भारतीय महिलाओं से अनुरोध किया कि वो अपनी देश की प्राचीन और गौरवमयी संस्कृति को अपना आधार बना कर राष्ट्र के निर्माण में अपने व्यस्त जीवन से कुछ समय निकाल कर तन-मन-धन से योगदान दें. भारत की अवधारणा “वसुधैव कुटुम्बकम” और भारतीय महिलाओं का अतुलनीय योगदान मिलकर ही भारत को तेजस्वी राष्ट्र बनाएगा एवं समस्त विश्व के लिए शांति का मार्ग प्रशस्त करेगा.

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