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भारत की अवधारणा संक्रांति की है, क्रांति की नहीं – अरुण कुमार

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कोलकत्ता. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार जी ने कहा कि हमारी अवधारणा संक्रांति की है, क्रांति की नहीं. परिवर्तन जो सहज (धीरे-धीरे) आता है, वो संक्रांति बनता, स्थायी होता है. जो परिवर्तन एकदम आता है वो प्रलय लाता है. हमारा आधार संस्कृति है. इस समाज की सबसे बड़ी समस्या है आत्मविस्मृति. हम भूल गए कि भारत क्या हैं? हम कौन हैं? हिन्दू क्या है? इस हिन्दू का लक्ष्य क्या है? दुनिया के देशों की तरह भारत का जीवन नहीं है. भारत एक यात्रा है – सनातन यात्रा. यह हमको समझना है कि भारत क्या है? पश्चिम के शिक्षण से समाज का जो एक वातावरण बना, उसमें से हम भूल गए कि भारत क्या है? पश्चिमी शिक्षा की नजर से नहीं समझा जा सकता कि भारत क्या है? अरुण जी कोलकत्ता में भारत विकास परिषद द्वारा “Transformation of Bharat in Context of Current Scenario” विषय पर आयोजित संगोष्ठी में संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि 400 साल पहले यूरोप से अलग-अलग देशों की सेनाओं ने अमेरिका पर हमला कर दिया. यूरोप के लोगों ने अमेरिका में वहां के 6 करोड़ स्थानीय लोगों की हत्या की. फिर ब्रिटिश ने अमेरिका पर राज किया और यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका बना दिया. आज दुनिया के अंदर लोकतंत्र, मानव के अधिकार, रिलीजन फ्रीडम, बहुलतावाद, मानवतावाद, का उपदेश देने वाले अमेरिका का ये इतिहास है. विश्व युद्ध के बाद 40 नए देश दुनिया के अंदर बने. पूरी दुनिया में भारत एक अद्भुत राष्ट्र है. जहां राष्ट्र पहले बना, फिर राज्य बना. इस राष्ट्र का गठन किसी युद्ध से प्राप्त करके नहीं बना, यह राष्ट्र एक है और राज्य अनेक हैं.

आज कांग्रेस के कपिल सिब्बल उन लोगों के साथ खड़े होते हैं जो देश विरोधी नारे लगाते हैं. भारत तेरे टुकड़े होंगे, बोलने वालों का कांग्रेस समर्थन करती है, उनके साथ खड़ा होती है.

अरुण जी ने कहा कि CAA (नागरिकता संशोधन कानून) में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के शोषित लोगों के लिए प्रावधान किया है. फिर भी सबने तरह-तरह की बातें कीं. मैं सारे लोगों को एक ही बात कहना चाहता हूं कि आप ठंडे दिमाग से सोचिए और समझिए. समाज के बुद्धजीवियों को भावना से ऊपर उठ कर तथ्यों पर विचार करना चाहिए. वर्ष 2003 में संसद में मनमोहन सिंह ने भी सीएए की बात कही थी और मांग की थी कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के शोषित लोगों को सरकार नागरिकता दे. 2012 में असम कांग्रेस का भी यही प्रस्ताव था कि इन सबको नागरिकता मिले. फिर अब क्या हुआ इन सबको? सन् 1972 में 01 करोड़ 90 लाख लोगों को नागरिकता देने का वादा इंदिरा गांधी ने किया था.

सन् 1947 को देश का एक बड़ा हिस्सा मजहब के आधार पर भारत से अलग हो गया और 15 अगस्त को एक देश बना, जिसका पाकिस्तान पड़ा. वहां पर लोग सोए भारत में थे और सुबह उठे तो पाकिस्तान में थे. फिर वहां अल्पसंख्यक हिन्दुओं, सिक्खों पर अत्याचार हुए उनके घरों और दुकानों को लूटा गया. कुछ भी नहीं छोड़ा और भी बहुत अत्याचार किए. 06 महीने के अंदर वहां के कानून मंत्री जोगेंद्र नाथ मंडल भारत आ गए और यहां शरण ली. 1956 में पाकिस्तान एक इस्लामिक राष्ट्र बन गया, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बढ़ गए. बांग्लादेश, जिसे हमने आजादी दिलाई वह भी इस्लामिक राष्ट्र बन गया.

भारत की राष्ट्रीयता विविधता में एकता की है. भारत की एक परंपरा है. भारत किसी के साथ अन्याय नहीं करता, लेकिन कट्टरपंथी लोगों के सामने झुकने वाला भी नहीं है. भारत का विचार कृणवंतो विश्वमार्यम् है, जिसको लेकर आगे बढ़ रहा है.

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