रविन्द्र सिंह भड़वाल
धर्मशाला
पुरस्कारों का विवादों से पुराना नाता रहा है. इसी क्रम में हाल ही में दिए गए पुलित्जर अवॉर्ड भी सवालों के घेरे में आ गए हैं. यह विवाद तब उपजा जब इस साल सर्वश्रेष्ठ फीचर फोटोग्राफी श्रेणी में पुलित्जर पुरस्कार एसोसिएटेड प्रेस के तीन फोटो पत्रकारों कश्मीर से मुख्तार खान व डार यासीन और जम्मू से चन्नी आनंद को दिया गया है. यह पुरस्कार इन्हें जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 को हटाने के बाद पनपे हालात के बीच कुछ विशेष फोटो के लिए दिया गया है. हालांकि इन पत्रकारों को अवॉर्ड मिलना विवाद की कोई वजह नहीं है. असल विवाद तब पैदा हुआ, जब तीनों को यह पुरस्कार देते हुए बोर्ड ने अपनी वेबसाइट पर कहा, ’यह कश्मीर के विवादास्पद क्षेत्र में जिंदगी की तस्वीरों को उकेरने के लिए उन्हें दिया गया है…’ दरअसल, अवॉर्ड देने वाली लॉबी ने यह पुरस्कार उन्हें जम्मू-कश्मीर पर भारत को नीचा दिखाने के लिए उनके द्वारा की जा रही मेहनत के इनाम स्वरूप दिया है. एक अंतरराष्ट्रीय गिरोह हमेशा इसी कोशिश में रहता है कि जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करके प्रस्तुत किया जाए. इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु यह लॉबी हर उस प्रयास को सम्मानित करती रही है, जो जम्मू-कश्मीर प्रदेश को लेकर भारत को नकारात्मक ढंग से पेश करता है. इस लॉबी के समर्थकों ने पुलित्जर अवॉर्ड सम्मान नाम पर खुशी मनाने के साथ-साथ भारत के प्रति नफरत फैलानी शुरू कर दी है.
इन सम्मानित पत्रकारों की कुछ चयनित तस्वीरों को भी पुलित्जर अवॉर्ड देने वाली संस्था से अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित किया है. इन तस्वीरों के जरिए यह दिखाने की कोशिश की गई कि कश्मीर में भारतीय सेना और सुरक्षाबल ज्यादती कर रहे हैं. इसमें एक तस्वीर में पत्थरबाजों को हीरो की तरह पेश किया गया है, जो चेहरा ढककर पुलिस की गाड़ी पर सामने से पत्थर फेंक रहा है. एक तस्वीर में पाकिस्तान का झंडा लिए लोग दिख रहे हैं. एक तस्वीर में सुरक्षाबलों को तोड़फोड़ करते दिखाया गया है. क्या ये तस्वीरें वास्तव में जम्मू-कश्मीर की वास्तविक सच्चाई को बयां कर रही हैं. जम्मू-कश्मीर, विशेषकर घाटी में दुष्प्रचार का यह रोग काफी पुराना है. एजेंडाधारी पत्रकारों के इस दुष्प्रचार की आड़ में लंबे समय से जम्मू-कश्मीर के लोगों में अविश्वास की भावना भरी जाती रही है. इस षड्यंत्र के तहत यह जमात सुरक्षाबलों को खलनायक और आतंकियों को नायक के रूप में प्रस्तुत करती रही है. घाटी वाले क्षेत्र में लोगों में अलगाव की जो भावना पैदा हुई है, वो इसी मानसिकता और एजेंडेबाजी का परिणाम है. एजेंडे में रंगी इस पत्रकारिता का सबसे ज्यादा पीड़ित स्वयं ’सच’ है. इस तरह की रिपोर्टिंग में जो कवरेज और उसका पक्षपातपूर्ण प्रस्तुतिकरण होता है, उससे जम्मू-कश्मीर का सच कभी सामने नहीं आ पाता. इसी का परिणाम है कि जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ देश-दुनिया इसकी जमीनी हकीकत से सही से वाकिफ नहीं हो पाए हैं. इस तरह के डिजाइनर पत्रकारों को जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस तरह से सम्मानित किया जाता है, तो ये लोग और भी खुलकर अपने एजेंडे को अंजाम देने में लग जाते हैं.
इस विवाद की आग में घी डालने का काम गांधी परिवार के वारिस राहुल गांधी ने किया. पुलित्जर अवॉर्ड की घोषणा के बाद ट्वीट कर उन्होंने कहा, ’डार यासीन, मुख्तार खान और चन्नी आनंद को जम्मू-कश्मीर में जिंदगी की असरदार तस्वीरें खींचने पर पुलित्जर पुरस्कार जीतने के लिए बधाई. आप लोगों ने हमें गौरवान्वित किया है.’ राहुल ने एक खबर का हवाला देते हुए कहा कि इन तीनों फोटो पत्रकारों ने पिछले साल अगस्त में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद, क्षेत्र में लॉकडाउन के दौरान की गई अपनी फोटोग्राफी के लिए यह पुरस्कार जीता है. दरअसल, कांग्रेस पार्टी की यह राजनीतिक विवशता बन चुकी है कि एक खास वोट बैंक को अपने पक्ष में बनाए रखने की खातिर वह किसी भी राष्ट्रविरोधी हरकत के समर्थन में उठ खड़ी होती है. इससे पहले भी जम्मू-कश्मीर को लेकर आजादी के नारे लगाने वालों और टुकड़े-टुकड़े गैंग पर भी राहुल गांधी ने खुलकर समर्थन किया था. 2016 में जेएनयू में जब आतंकी अफजल गुरु की बरसी मनाने का विवाद हुआ था, तब भी राहुल गांधी टुकड़े-टुकड़े गैंग का समर्थन करने जेएनयू पहुंच गए थे. यह बार-बार देश ने देखा है कि जब भी कोई देशविरोधी बातें करता है, तो कांग्रेस और राहुल गांधी केंद्र सरकार के विरोध में उन देशविरोधी लोगों की वकालत करने लगते हैं. चाहे वह देश का कोई भी राजनीतिक दल हो, उसे अपने तुच्छ राजनीतिक स्वार्थों को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय एकता, अखंडता एवं सम्मान से समझौता नहीं करना चाहिए.
जम्मू-कश्मीर प्रदेश पर भारत के खिलाफ एजेंडा चलाने वाला एक बड़ा गिरोह लंबे समय से सक्रिय है. इसके सदस्य देश के अंदर और बाहर दोनों ही जगह मौजूद हैं. ये लोग दुनिया भर में भारत विरोधी विचारों का प्रचार-प्रसार करने में खूब पसीना बहा रहे हैं. जम्मू-कश्मीर में भारत विरोधी तस्वीरों को प्रकाशित करने वालों को पुलित्जर पुरस्कार देना इसी अभियान का एक हिस्सा प्रतीत होता है.
मीडिया विश्लेषक
पुरस्कृत फोटो और उनके कैप्शन पर एक नजर…….