रांची (विसंके). बस्ती (उत्तर प्रदेश) जिले के कुसमौर गांव निवासी राधेश्याम के पिता सूरत में मजदूरी करते हैं. बगैर घर-द्वार के राधेश्याम ने अपने भाई और मां के साथ गांव में ही अत्यंत गरीबी में अपना जीवन गुजारा और आठ-नौ साल की उम्र में अपनी एक आंख इलाज के अभाव में गवां बैठा. उसे स्कूल जाने के क्रम में लड़खड़ाकर गिर पड़ने पर मामूली चोट लगी थी. किन्तु चौका-बर्तन करने वाली अपनी मां लीलावती की इच्छा पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ने वाला राधेश्याम किसी तरह दसवीं की परीक्षा (माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश) दी और पास की. लेकिन पढ़ाई का जुनून उस पर इस कदर सवार रहा कि उसने इसके लिये रास्ता तलाशने का प्रयास किया और इसमें उसे सफलता मिली. किसी ने उसे गणितज्ञ आनंद के बारे में बताया और वह तत्काल पटना चला आया. आनंद से मिलकर अपनी दयनीय स्थिति और प्रबल इच्छा का जिक्र किया. आनंद ने उसे अपने पास रखकर आई.आई.टी. की तैयारी करायी. वर्ष 2014 की आई.आई.टी. परीक्षा पास कर आज वह रूड़की में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर की पढ़ाई कर रहा है.