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लिटफेस्ट एजेंडा साहित्यकारों का जमावड़ा – मानवाधिकार मंच

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लिटफेस्ट का हिमाचल और हिमाचली संस्कृति, साहित्य से नहीं कोई सरोकार

शिमला (विसंकें). मानवाधिकार मंच के प्रदेशाध्यक्ष एवं सेवानिवृत्त एडीजीपी केसी सडयाल ने कहा कि हिमाचल प्रदेश के कसौली में प्रख्यात लेखक स्व. खुशवंत सिंह की याद में होने वाले लिटफेस्ट का हिमाचल और हिमाचल की संस्कृति, साहित्य से कोई सरोकार नहीं रह गया है. इस मंच में जिस तरह मॉब लिंचिग को एक सम्प्रदाय विशेष के साथ जोड़कर प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है, उससे प्रख्यात लेखक खुशवंत सिंह की धर्मनिरपेक्ष सोच का मजाक बन गया है. केसी सडयाल ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से लिटफेस्ट में आए साहित्यकारों की मंशा पर सवाल उठाए.

उन्होंने लिटफेस्ट में लेखिका तवलीन सिंह के कथन को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताया, जिसमें उन्होंने पश्चिम बंगाल में मुस्लिमों द्वारा हिन्दू परिवार की मॉब लिंचिग को एक सामान्य घटना बताया, जबकि मुस्लिमों के साथ हुई ऐसी घटनाओं को ही मॉब लिंचिग माना है. साथ ही तवलीन ने कहा था कि कश्मीर में धारा 370 और 35ए को गलत तरीके से हटाया गया है. जबकि इन धाराओं को हटाने से पूर्व पूरी संवैधानिक प्रक्रिया का पालन किया गया था.

मंच का मानना है जिन निर्णयों में भारत सरकार को पूरे देश का समर्थन मिला, वहीं कुछ देश विरोधी लोगों को ये बातें पसन्द नहीं आ रही हैं. जिस कारण वे लिटफेस्ट जैसे साहित्यिक मंचों का प्रयोग करके देश विरोधी एंजेडा को आगे कर रहे हैं.

केसी सडयाल ने कहा कि कसौली में चल रहे 8वें लिटफेस्ट में पहुंचे अधिकतर साहित्यकार एक विचारधारा विशेष के ही पोषक हैं. ये साहित्यकार पहले भी एक विशेष एंजेडा को आगे बढ़ाने को लेकर प्रदेश में एकत्र होते रहे हैं. वर्ष 2017 के लिटफेस्ट में जेएनयू प्रकरण से चर्चा में आए देशद्रोही नारों के आरोपी छात्र नेता कन्हैया कुमार को भी एक बड़े विचारक के रूप में ऐसे ही साहित्यकारों ने अपने कार्यक्रम में बुलाया था. जिससे पता चलता है कि लिटफेस्ट एक विशेष प्रकार के साहित्यकारों का जमावड़ा बन गया है.

मानवाधिकार मंच ने लिटफेस्ट में पाक साहित्यकारों की कमी खलने की बात को देश विरोधी सोच को बढ़ावा देने वाला बताया है. प्रदेश में ऐसे कार्यक्रमों के माध्यम से देश विरोधी सोच को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए. उन्होंने सरकार से अपील की कि ऐसे कार्यक्रमों को आयोजित करने की अनुमति देने से पूर्व प्रशासन को आयोजकों की मंशा को भी समझ लेना चाहिए.

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