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श्रद्धानन्द जी हिन्दुत्व समर्पित क्रान्तिकारी, निर्भीक संपादक थे – जितेन्द्र अग्रवाल जी

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मेरठ (विसंकें). स्वामी श्रद्धानन्द जी के बलिदान दिवस की स्मृति में 23 दिसंबर को विश्व संवाद केन्द्र द्वारा विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. इस अवसर पर सेव फूड के संचालक जितेन्द्र अग्रवाल जी ने कहा कि मानव जीवन में कभी-कभी ऐसे अवसर भी आते हैं जो जीवन की सारी दिशा ही बदल देते हैं. ऐसे ही उतार – चढ़ाव एवं चमत्कारिक परिवर्तनों से भरा था मुंशीराम का जीवन, जो आगे चलकर स्वामी श्रद्धानन्द कहलाये. मुंशीराम की स्वामी दयानन्द से पहली भेंट बरेली में हुई, उस दिव्य मूर्ती के प्रवचन सुन मुंशीराम के जीवन की दिशा ही बदल गयी और स्वामी श्रद्धानन्द बनकर उन्होंने आजीवन स्वामी दयानन्द के विचारों का प्रचार – प्रसार किया. स्वामी जी आर्य समाज, आर्य प्रतिनिधि सभा, पंजाब और सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि के प्रधान पद पर रहे.

स्वामी श्रद्धानन्द जी का व्यक्तित्व बहुआयामी था. वह आदर्श ईश्वर भक्त, वेदभक्त, देशभक्त, समाज सुधारक, लेखक, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी और दलितों के मसीहा थे. विधर्मियों की शुद्धि का उन्होंने अपूर्व ऐतिहासिक कार्य किया. उन्होंने हिन्दुत्व की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित किया. हरिद्वार में गुरूकुल कांगड़ी की स्थापना की, जिसके लिए उन्हें अपना घर भी बेचना पड़ा. वे सामाजिक छुआछूत को सबसे बड़ी बुराई मानते थे और सामाजिक समरसता के लिए स्वयं अपने बेटे और बेटी के अंतर्जातीय विवाह किये. हिन्दी व अंग्रेजी समाचार पत्रों का प्रकाशन एवं सम्पादन किया. क्रांतिकारी के रूप में अनेक स्वतंत्रता आन्दोलनों में भाग लिया. उनके द्वारा स्थापित भारतीय शुद्धि सभा के प्रयास से लाखों मुसलमानों ने हिन्दू धर्म में वापसी की. उनके इन प्रयासों के कारण एक मुसलमान ने गोली मारकर हत्या कर दी. वे सचमुच हिन्दुत्व के पुरोधा थे. स्वामी श्रद्धानंद ने हिन्दुत्व की रक्षा के लिये अपना जीवन बलिदान कर दिया.

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