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समरसता उद्घोष संग संत रविदास जयंति का आयोजन

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मेरठ (विसंकें). सेवाकार्यों के प्रति समर्पित संघ द्वारा संचालित संगठन सेवा भारती की मेरठ इकाई द्वारा महान संत रविदास जी की 641वीं जयंति सामाजिक समरसता के संकल्प के साथ मनाई गई.

इस अवसर आयोजित कार्यक्रम के दौरान बड़ी संख्या में एकित्रत हुए संत रविदास समाज के लोगों को संघ के प्रान्त कार्यवाह फूल सिंह जी, रविदास पंथ के संत गोवर्धन दास जी, संत वीर सिंह महाराज जी और मासिक पत्रिका राष्ट्रदेव के संपादक अजय मित्तल जी ने संबोधित किया. कार्यक्रम में सम्मलित हुए हिन्दू समाज को संत वीर सिंह जी ने कहा कि भारत में तुगलक, सैयद और लोदी जैसे कट्टर इस्लामिक राजवंशों के शासनकाल के दौरान संत रविदास ने हिन्दुओं का धर्मांतरण होने से रोका, ठीक अपने गुरु रामानंद जी की तरह. जो अयोध्या में धर्मांतरण कर चुके लगभग 34,000 हिन्दुओं को वापस सनातन परंपरा में लेकर आए थे. गुरु रामानंद जी द्वारा अपने सबसे तेजस्वी शिष्यों रविदास, कबीर, धन्ना, पीपा, सैन एवं सात अन्य अनुयायियों को पूरे भारतवर्ष में हो रहे धर्मांतरण के विरुद्ध खड़ा होने का व्रत दिलाया.

इसके बाद संत गोवर्धन दास जी ने कहा कि संत रविदास जी जैसी महान विभूति किसी जाति विशेष की नहीं, वरन् समूचे हिन्दू समाज के संत हैं. प्रान्त कार्यवाह फूल सिंह जी ने संत रविदास जी के जीवन के विभिन्न प्रेरणादायी वृतांत सुनाते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जाति विहीन समाज की स्थापना के लिए कटिबद्ध है. स्वयंसेवकों की केवल एक पहचान है और वह है – हिन्दू.

अजय मित्तल जी ने गुरु रामदास जी के उद्घोष- जात-पात पूछे न कोई, हरि को भजे सो हरि को होई, और रविदास के उद्घोष- जात-पात का नहीं अधिकारा, राम भजे सो उतरे पारा– का उदाहरण देते हुए कहा कि श्रीमद्भागवत में वेदव्यास जी ने स्पष्ट उल्लेख किया है कि जो व्यक्ति वर्ण विशेष में उत्पन्न होने का गर्व करता है, वह ईश्वर के प्रेम से स्वयं को वंचित कर देता है. इस अवसर पर रविदास व बाल्मीकि समाज के 80 मेधावी छात्रों एवं 36 के करीब समाज सेवियों को सम्मानित किया गया.

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