टोंक, जयपुर (विसंकें). विश्व हिन्दू परिषद के अखिल भारतीय सह संगठन मंत्री विनायक राव देशपाण्डे जी ने कहा कि हिन्दू साम्राज्य, संस्कृति और इतिहास के संबंध में अंग्रेजों ने षड्यंत्रपूर्वक हीनता की ग्रंथि पैदा करने का प्रयास किया. भारत के गौरवशाली और पराक्रमी इतिहास के स्थान पर हमें पराजय का इतिहास पढ़ाया गया. मंगलवार को निवाई स्थित सरस्वती विद्या मंदिर के चल रहे बजरंग दल के सप्त दिवसीय शौर्य प्रशिक्षण वर्ग के शिक्षार्थियों को संबोधित कर रहे थे.
विनायक राव जी ने कहा कि अंग्रेजों ने मैक्समूलर को लाखों रूपये देकर भारत का भ्रामक इतिहास लिखवाया. अंग्रेजों द्वारा लिखे इतिहास में पोरस को पराजीत बताया गया है, जबकि सत्य तो दूसरा ही है. पोरस की सेना के आघातों के कारण झेलम के युद्ध के 21 दिन बाद सिकंदर की मृत्यु हुई थी. ऐसी ही अनेक सत्य घटनाओं को अंग्रेजों द्वारा निर्मित इतिहास में जगह नहीं दी गई. उन्होंने कहा कि हमारा इतिहास पराजय का नहीं, बल्कि सतत संघर्ष का रहा है. भारतीय राजाओं ने विश्व विजेता का स्वप्न संजोने वाले विदेशी आक्रांताओं को धूल चटाई. जिन मुसलमानों ने पचास साल में आधा यूरोप और चालीस सालों में आधा अफ्रीका जीत लिया, उन मुसलमानों को दिल्ली जीतने में पांच सौ साल लग गये. उन्होंने कहा कि हिन्दुओं को पढ़ाया जाता है कि हम इसलिए हारे कि हम संगठित नहीं थे. आपस में लड़ते – झगड़ते थे, जबकि सच्चाई यह है कि इस्लाम का पूरा इतिहास ही शिया और सुन्नियों के आपसी झगड़ों से भरा पड़ा है. हमने कभी भी उनके झगड़ों का लाभ नहीं उठाया. हमने युद्ध में नैतिक मापदण्डों का पालन किया, जबकि मुस्लिम आक्रांताओं ने सभी युद्ध अनैतिकता के बल पर जीते.
राजस्थान क्षेत्र के क्षेत्र प्रचारक दुर्गादास जी ने कहा कि हमारा अतीत गौरवशाली रहा है. जब यूरोपीय लोग जंगली अवस्था में घूमा करते थे, तब भारत में व्यवस्थित खेती की जा रही थी. तकनीक, शस्त्र विद्या, शास्त्र विद्या, ज्ञान, विज्ञान, स्थापत्य कला, वस्त्र कला आदि क्षेत्रों में भारत विश्व में अग्रणी था. लेकिन अंग्रेजी इतिहासकारों ने हमारे गौरवशाली अतीत के इतिहास को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया. भारतीयों को वह पढ़ाया गया, जिससे हमारा न केवल आत्म विश्वास कमजोर हो बल्कि आत्मसम्मान को भी ठेस पहुंचे. वह सोमवार को निवाई के सरस्वती विद्या मंदिर में चल रहे बजरंग दल के सप्त दिवसीय शौर्य प्रशिक्षण शिविर में संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि हजारों उदाहरण ऐसे है जो भारतीयों की श्रेष्ठता को दर्शाते हैं. जैसे भास्कराचार्य ने तब ही अपने ग्रंथ लीलावती में गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का उल्लेख कर दिया था. महाभारत काल में तीरों से छलनी भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की थी. यह भारतीय खगोल शास्त्र की प्रमाणिकता का परिचायक ही है. यूरोपीय लोग गणित के अंकों को अरेषिक कहते हैं और अरब के लोग इन्हें हिन्दसा कहते हैं. अत: भारत गणित की दृष्टि से भी यूरोप का दादागुरू हुआ. नौकाशास्त्र की दृष्टि से भारत विश्व में आगे रहा है. वास्कोडीगामा चंदन नामक भारतीय व्यापारी का अनुसरण करते हुए अफ्रीका से भारत पहुंचा था. उन्होंने युवकों से आत्मसम्मान से जीने के लिए गौरवशाली अतीत पर गर्व करने और इतिहास का विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता पर बल दिया.