राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने कहा सिंध के अंतिम हिन्दू राजा दाहिर की पत्नियां जब जौहर करने जा रही थीं, तब उन्होंने ‘म्लेच्छ’ शब्द का प्रयोग किया था. रानियों का मानना था कि अगर उन्होंने जल्द से जल्द जौहर कर अपने प्राण नहीं त्यागे तो ‘म्लेच्छ’ लोग (इस्लामिक आक्रांता) आकर उन्हें छू लेंगे. भारत में छुआछूत की समस्या को लेकर अक्सर बहस होती रहती है और यह आज़ादी के काफ़ी पहले से चली आ रही है. सह सरकार्यवाह 26 अगस्त को दिल्ली में आयोजित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी ने कहा कि भारत में छुआछूत की समस्या इस्लाम के आने के बाद शुरू हुई. उन्होंने ‘दलित’ शब्द पर कहा कि अंग्रेजों ने एक साज़िश के तहत समाज को बांटने के लिए इस शब्द का आविष्कार किया. संघ एक ऐसा समाज चाहता है, जहां कोई जात-पात नहीं हो, अर्थात् जातिविहीन समाज हो.
उन्होंने भारतीय ग्रंथों से उदाहरण देते हुए कहा कि प्राचीन काल में ऊंची और नीची जातियां तो थीं, लेकिन छुआछूत नहीं था. गौ का मांस खाने वालों को अछूत माना जाता था. आम्बेडकर भी ऐसा ही मानते थे. उन्होंने कई ऐसे उदाहरण गिनाए, जिनके कारण कभी ‘फॉरवर्ड’ जाति के लोग रहे, आज ‘बैकवर्ड’ हो गए हैं. उन्होंने कहा “आज मौर्य जाति के लोग ‘बैकवर्ड’ कहलाते हैं, लेकिन कभी वे ‘फॉरवर्ड’ थे. बंगाल में पाल लोग राजा हुआ करते थे, लेकिन आज वे भी ‘बैकवर्ड’ कहलाते हैं. इसी प्रकार भगवान बुद्ध की जाति शाक्य भी आज ओबीसी श्रेणी में आती है. हमारे समाज में ‘दलित’ शब्द था ही नहीं. ये ब्रिटिश आक्रांताओं की ‘फूट डालो और राज करो’ की साज़िश का एक हिस्सा था. यहां तक कि हमारी संविधान सभा ने भी ‘दलित’ शब्द का प्रयोग करने से मना कर दिया. भारत में इस्लामिक शासनकाल एक ‘अन्धकार युग’ था, लेकिन हमारी आध्यात्मिक जड़ों के कारण हम किसी तरह बचे रहे.”
उन्होंने कहा कि चन्द्रगुप्त मौर्य पहले शूद्र थे, लेकिन बाद में अखंड भारत के सम्राट बने. उन्होंने महर्षि वाल्मीकि का उदाहरण देते हुए कहा कि वे भी शूद्र थे, लेकिन बाद में एक महान ऋषि हुए. उन्होंने नास्तिकों की बढ़ती संख्या पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हिन्दू जीवन पद्धति और वेदांत में ही उन्हें उनके सवालों का उत्तर मिल सकता है.