शिक्षा संस्कृति, उत्थान न्यास दिल्ली प्रांत द्वारा पूर्वी दिल्ली, शाहदरा क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के उपलक्ष्य में मातृभाषा में हस्ताक्षर अभियान चलाकर लोगों को मातृभाषा के प्रति जागरूक किया गया. मातृभाषा के महत्व पर बताते हुए दिल्ली प्रांत सह संयोजक संजय स्वामी ने लोगों से अपने हस्ताक्षर अपनी मातृभाषा में करने का आह्वान किया. डॉ. संदीप कुमार उपाध्याय ने कहा कि आज भी भाषाओं के संदर्भ में भारत विश्व में सबसे समृद्ध देश है, परंतु भाषाएं इसी तरह विलुप्त होती रहीं तो भारत की सांस्कृतिक व बौद्धिक विरासत नष्ट हो जाएगी. संजय वशिष्ठ ने कहा कि जर्मन बच्चा अपनी मातृभाषा जर्मन में ही गणित सीखता है न कि अंग्रेजी भाषा में, स्पेन का बालक स्पेनिश भाषा में ही गिनती सीखता है. परंतु इसके विपरीत भारतीय छात्र अपनी मातृभाषा में गिनती सीखते हुए शर्म का अनुभव करता है. जिससे वह कभी भी अपनी सांस्कृतिक धरोहर के प्रति संवेदनशील नहीं हो पाता.
डॉ विनोद कुमार ने कहा कि विश्व के अधिकतर विकसित देशों में शिक्षा उनकी मातृभाषा के माध्यम से दी जाती है, इसीलिए वे विकसित देश हैं और हम विकासशील. पूजा ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने कहा था कि मैं एक अच्छा वैज्ञानिक इसलिए बना क्योंकि मैंने गणित और विज्ञान की शिक्षा मातृभाषा में प्राप्त की थी.
अधिकतर लोगों का यह मानना था कि आज हम अपनी मातृभाषा-भाषाओं से दूर होते जा रहे हैं. जिसके परिणाम स्वरूप हम अपनी संस्कृति एवं सभ्यता से भी अनभिज्ञ हो रहे हैं. किसी भी देश की पहचान उसकी भाषा, संस्कृति व सभ्यता होती हैं. हम भारतीय इन तीनों से दूर होते जा रहे हैं. आज के भारतीय जनसामन्य को अपनी भाषा में हस्ताक्षर करते हुए शर्म महसूस होती है. शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी जी का कहना है कि मां, मातृभूमि और मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं हो सकता है. वास्तव में वही हमारी मातृभाषा है. जिसमें हम सुंदर सपने देख पाते हैं. अपने भावों को सही प्रकार से दूसरों के समक्ष उजागर कर पाते हैं. आज के दिन हम सभी भारतीयों को संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने अधिक से अधिक कार्य अपनी मातृभाषा में करें व हस्ताक्षर को अपनी मातृभाषा में करने के लिए कृत संकल्पित हो.