उदयपुर (विसंकें). लंदन की एक महिला भारत में डॉ. फारूख अब्बदुल्ला से विवाह करती है, जिससे उसे जम्मू कश्मीर की नागरिकता मिल जाती है. वह अपने नाम से जम्मू कश्मीर में सम्पत्ति खरीद सकती है, सरकारी नौकरी कर सकती है, जम्मू कश्मीर की जनप्रतिनिधि बनकर निर्वाचित होने पर मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री तक भी बन सकती हैं. लेकिन जम्मू-कश्मीर में ही पैदा हुई, पली बढ़ी उसकी बेटी सारा अब्बदुला गैर कश्मीरी भारतीय युवक सचिन पायलट से विवाह के बाद भारत के किसी भी भाग में अपने नाम से कोई भी सम्पत्ति खरीद सकती हैं, अपने जन्म या विवाह के कारण वो किसी भी सरकारी नौकरी में अयोग्य घोषित नहीं हैं. लेकिन विवाह के बाद अब वह जम्मू कश्मीर में सम्पत्ति नहीं खरीद सकती, सरकारी नौकरी के अयोग्य घोषित हो जाती हैं. संविधान का अनुच्छेद 35ए बेटा-बेटी में भेदभाव करता है, वहां का बेटा अपनी पसंद की पत्नी ला सकता है, लेकिन बेटी को यह अधिकार नहीं है. भेदभाव की असल जड़ में संविधान का अनुच्छेद 370 नहीं होकर अनुच्छेद 35ए है, जो 14 मई 1954 को राष्ट्रपति द्वारा जारी एक आदेश से हो रहा है.
अनुच्छेद 35ए जम्मू कश्मीर विधानसभा को यह अधिकार देता है कि वह स्थानीय नागरिक की परिभाषा तय कर सके, जिसकी आड़ में जम्मू कश्मीर के संविधान की धारा 6 में इस प्रकार के प्रावधान कर दिये गये. सन् 1953 से लेकर आज तक भारत सरकार ने अनेक संवैधानिक संशोधनों द्वारा जम्मू कश्मीर को ढेरों राजनीतिक एवं आर्थिक सुविधाएं दी हैं. जम्मू कश्मीर के लोगों द्वारा चुनी गई संविधान सभा ने 14 फरवरी 1954 को प्रदेश के भारत में विलय पर अपनी स्वीकृति दे दी थी. सन् 1956 में भारत की केन्द्रीय सत्ता ने संविधान में सातवां संशोधन कर जम्मू कश्मीर को देश का अभिन्न हिस्सा बना लिया. प्रवीण खंडेलवाल जी विश्व संवाद केन्द्र, प्रज्ञा प्रवाह, उदयपुर द्वारा अनुच्छेद 370 एवं राष्ट्रीय एकता विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में प्रमुख वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे.
मुख्य वक्ता विद्या भारती के सुरेन्द्र सिंह राव ने जम्मू कश्मीर की बहस को घाटी केन्द्रित बनाने पर असहमति व्यक्त की. उन्होंने सम्पूर्ण कश्मीर समस्या को जम्मू लद्दाख तथा पाक अधिकृत कश्मीर के संदर्भ में देखने का विचार दिया. अनुच्छेद 370 पाक प्रायोजित अलगाववाद को वैधता प्रदान करने का एक कुत्सित प्रयास है. क्योंकि यह शेष भारत में राष्ट्रीय एकता के प्रति अविश्वास उत्पन्न करता है. साथ ही अनुच्छेद 35ए जैसे नितान्त अस्थाई एवं अनावश्यक प्रावधान को अविलम्ब समाप्त किया जाना चाहिए. संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि रमेष शुक्ल जी ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान को व्यर्थ न जाने देने का आह्वान किया. संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन सुरेन्द्र सिंह जाखड़ जी ने किया.