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अपने तुच्छ स्वार्थों के लिए छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ अक्षम्य – अतुल कोठारी

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जेएनयू – शिक्षा और राजनीति

नई दिल्ली. गोवा की पूर्व राज्यपाल मृदुला सिन्हा जी ने कहा कि जेएनयू में घटित घटनाओं के मूल में जाकर इन समस्याओं का समाधान खोजना होगा. अब समय आ गया है, जब इन घटनाओं को समाज में उजागर कर चिंतन किया जाए. पूर्व राज्यपाल शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा नेहरू स्मारक संग्रहालय में जेएनयू – शिक्षा और राजनीति विषय पर आयोजित सेमीनार में संबोधित कर रही थीं. देश के प्रतिष्ठित संस्थानों के प्रमुखों को एक मंच पर लाकर आयोजकों ने महत्वपूर्ण विषय पर देश में बहस छेड़ी है, जिसके लिए वे साधुवाद के पात्र हैं.

अध्यक्षीय उद्बोधन में अतुल कोठारी जी ने कहा कि जेएनयू में हुए आदलन व हिंसात्मक घटना से कार्य बाधित हुआ, आम छात्रों के भविष्य के साथ भी खिलवाड़ किया गया. तथाकथित आजादी की मांग करने वाले छात्रों का वास्तविक व अलोकतांत्रिक चरित्र सामने आया है. अपनी विचारधारा के तुच्छ स्वार्थों के लिए छात्रों के भविष्य के साथ जो खिलवाड़ किया जा रहा है, वह अक्षम्य है. जेएनयू में असहमति की परिणीति जैसी उग्रता में हुई, वैसी पहले कभी नहीं हुई थी. घटना का हिंसात्मक पक्ष प्रमुखता से देश और विश्व के सामने गया, लेकिन शिक्षा और शैक्षणिक वातावरण की हानि पर चर्चा नहीं हुई.

उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा विश्वविद्यालयों को अतार्किक रूप से अनुदान दिए जाने पर प्रश्न उठाते हुए कहा कि सरकार देश के सुदूर क्षेत्र में चल रहे शिक्षण संस्थानों को कुछ लाख रुपये का अनुदान देती है, वहीं जेएनयू जैसे कुछ संस्थानों को 500 करोड़ तक देती है. सरकार को अनुदान देने की व्यवस्था का पुनरावलोकन करने की आवश्यकता है. फीस के संबंध में कहा कि जो छात्र परिसर में गाड़ी से घूमता है, क्या वह भी हॉस्टल का 10 रुपये शुल्क देगा? इस पर भी विचार करने की आवश्यकता है. जेएनयू के लगभग 90 प्रतिशत छात्रों को 2000 रुपये से लेकर 47 हजार रुपये तक की छात्रवृत्ति मिलती है, इन सभी बिन्दुओं का समावेश कर फीस पर चर्चा करना उचित होगा.

अतुल जी ने कहा कि मात्र जेएनयू में ही नहीं, अपितु देश के सभी शिक्षण संस्थानों में शुल्क के अनुपात पर गहन चिंतन करने की आवश्यकता है. कार्यक्रम में 13 केंद्रीय संस्थानों एनबीटी, एआईयू, एनआईओएस, आईसीएचआर, एलबीए, केंद्रीय विद्यालय संगठन, जवाहर नवोदय संगठन, एनआईटी, एनसीईआरटी, के प्रमुख, प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के कुलपति, वरिष्ठ शिक्षाविद्, जेएनयू के पूर्व व वर्तमान छात्र, सहित अन्य उपस्थित जनों ने विषय पर मंथन किया.

एनआईओएस के अध्यक्ष एवं जेएनयू के पूर्व छात्र सीबी शर्मा जी ने कहा कि जेएनयू की हिंसा पूर्णरूप से प्रायोजित थी. 1983 की घटना का उदाहरण देते हुए कहा कि जेएनयू में विचारधारा की लड़ाई व बहस का पुराना इतिहास रहा है. किसी समय संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद भी किया जा चुका था, तो ऐसे में इन प्रायोजित हिंसक घटनाओं के कारण व्रतमान प्रशासन पर सीधे उंगली उठाने के बजाय इस प्रवृत्ति के मूल में जाकर समस्या का हल निकालने की आवश्यकता है. आईआईएमसी के पूर्व निदेशक एवं जेएनयू में विजिटिंग प्रोफेसर केजी सुरेश ने कहा कि जेएनयू में रणनीतिक परिवर्तन की आवश्यकता है. इग्नू के सम कुलपति रविंद्र कान्हरे ने घटना की निंदा करते हुए कहा कि शैक्षणिक संस्थानों में लोकतांत्रिक ढंग से विरोध किया जाना चाहिए, लेकिन लोकतांत्रिक अधिकार का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए.

सभी शिक्षाविदों ने एक स्वर में हिंसा को नकारा.

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