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असीमानंद सहित चारों आरोपी समझौता ब्लास्ट मामले में बरी

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भगवा आतंक का शोर मचाने वालों के मुंह पर तमाचा

नई दिल्ली. समझौता ब्लास्ट केस के मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत ने फैसला सुना दिया. अदालत ने मामले में चार आरोपियों को बरी कर दिया है. हिन्दू आतंकवाद, भगवा आतंकवाद का शोर मचाने वालों की सच्चाई सबके सामने आ गई है. यूपीए सरकार द्वारा संघ और अन्य राष्ट्रीय संगठनों को बदनाम व फंसाने के प्रयास भी विफल हुए हैं.

18 फरवरी, 2007 को समझौता एक्सप्रेस में हुए इस धमाके में 68 लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें मुख्यतः पाकिस्तानी नागरिक थे. तत्कालीन यूपीए सरकार और जाँच एजेंसियों, विशेषकर कांग्रेस नेताओं ने ‘हिन्दू आतंकवाद’ का नया शगूफा छोड़ा था. हिन्दू संगठनों पर यह धमाका करने का आरोप लगाया था. एनआइए की विशेष अदालत ने स्वामी असीमानंद सहित चारों आरोपियों को इस मामले में बरी कर दिया है.

2011 से मामले की जाँच कर रही राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआइए) ने अदालत में यह आरोप लगाया कि गुजरात के अक्षरधाम, जम्मू के रघुनाथ, एवं वाराणसी के संकट मोचन मंदिर में हुए आतंकी हमलों का बदला लेने के लिए आरोपियों लोकेश शर्मा, कमल चौहान, राजिंदर चौधरी ने समझौता एक्सप्रेस में धमाके को अंजाम दिया. स्वामी असीमानंद पर मामले में शामिल व्यक्तियों को साजिश हेतु आवश्यक सामग्री मुहैया कराने (logistical support) का आरोप था.

पर, एनआइए कोर्ट के जज जगदीप सिंह के फैसले के अनुसार उन्हें यह थ्योरी और जाँच एजेंसी द्वारा पेश सबूत इतने ठोस नहीं लगे कि उनके आधार पर आरोपियों को दोषी करार दिया जा सके. उन्होंने एक पाकिस्तानी महिला द्वारा पाकिस्तानी गवाहों को पेश करने की याचिका को भी खारिज कर दिया.

इस मामले के मास्टरमाइंड के तौर पर प्रचारित आरएसएस सदस्य सुनील जोशी की 2007 में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. उस मामले को भी इसी भगवा आतंकवाद नैरेटिव से जोड़ कर देखा गया था. जाँच एजेंसियों ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत 8 लोगों को इस मामले में भी आरोपी बनाया था पर बाद में उनके खिलाफ भी एनआइए दोष साबित करने लायक सबूत पेश करने में असफल रही थी.

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