
जालंधर (विसंकें). लघु उद्योग भारती के अध्यक्ष एडवोकेट अरविंद धूमल ने युवाओं को विदेशी विचारधारा और अपनी जीवन पद्धत्ति के बीच सामंजस्य बैठाने का आह्वान किया. भारतीय इतिहास संकलन समिति की ओर से भगत सिंह चौक स्थित विश्व संवाद केंद्र में आयोजित गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए भारत में वैदिक धर्म और उसके बाद आए धर्मों की यात्रा पर विस्तार से चर्चा की.
एडवोकेट धूमल ने कहा कि वैदिक और श्रमण विचारधारा प्रारंभकाल से चली आ रही है. भगवान ऋषभदेव जी के विचारों की परिणति भगवान महावीर जी के जैन धर्म के रूप में हुई. बुद्ध धर्म का जन्म भी तत्कालीन पशु बलि सहित अनेक कर्मकांडों की प्रतिक्रिया स्वरूप हुआ. इसके बाद विदेशी धर्म इस्लाम और इसाईयत भारत में आए. इस्लाम को यहां फैलने का काफी अवसर मिला, परंतु इसाई धर्म यहां के लोगों पर अपना प्रभाव नहीं डाल पाया. इन्हीं धर्मों के साथ सामंजस्य बैठाते हुए कई भारतीय विचारकों जैसे स्वामी दयानंद जी व अन्यों ने निर्गुण उपासना की तरफ ध्यान दिया. एडवोकेट धूमल ने कहा कि वर्तमान समय में विदेशी विचारधारा का प्रभाव बढ़ता जा रहा है और देखना है कि युवा वर्ग किस प्रकार अपनी पुरातन पद्धत्ति और पश्चिमी विचारधारा में सामंजस्य बैठा पाती है.
गोष्ठी में चर्चा सत्र में प्रतिभागियों ने अपने-अपने विचार रखे और प्रश्नों के उत्तर दिए. गोष्ठी का समापन करते हुए समिति के प्रांतीय महासचिव डॉ राजेश ज्योति ने कहा कि वेद सभी धर्मों का मूल है. श्रमण विचारधारा में त्याग का विचार वेदों से आया और किसी धर्म का कोई विचार वेदों से बाहर नहीं है. गोष्ठी का संचालन समिति की महानगर इकाई के महासचिव डॉ विनीत मेहता ने किया.