लखनऊ (विसंकें). शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के प्रांतीय संयोजकों की राष्ट्रीय कार्यशाला सरस्वती शिशु मंदिर, निराला नगर में प्रारम्भ हुई. मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की अतिरिक्त सचिव सुश्री डॉ. पंकज मित्तल, विशिष्ट अतिथि पद्मश्री ब्रह्मदेव शर्मा ‘भाई जी’, न्यास के राष्ट्रीय अध्यक्ष दीनानाथ बत्रा जी तथा राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी जी ने माँ सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया. अतुल कोठारी जी ने कार्यशाला के बारे में जानकारी देते हुए न्यास के द्वारा पिछले 13 वर्षों में उल्लेखनीय प्रयासों की चर्चा की और कहा कि एनसीईआरटी, इग्नू, सीबीएसई, दिल्ली विश्वविद्यालय में चल रहे पाठ्यपुस्तकों की विकृति को दूर करने के लिए कानूनी कार्यवाही करके ज़िला से उच्चतम न्यायालयों तक 11 निर्णय अपने पक्ष में करवाए गए और आज बदले हुए स्वरूप में उन संस्थानों में पाठ्यपुस्तकें पढ़ाई जा रही हैं.
शिक्षा के नए विकल्प के प्रयास में देश की शिक्षा देश की संस्कृति, प्रकृति एवं प्रगति के अनुरूप बने, इस उद्देश्य से प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा, उच्च शिक्षा, तकनिकी शिक्षा, प्रबंधन शिक्षा सभी क्षेत्रों में नए सिरे से सामाजिक आवश्यकता के अनुसार लेखन करते हुए शोध कार्य की अनेक टोलियां बनाई गई हैं. उन्होंने कहा कि रोपड़ में पिछले वर्ष की राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित हुई थी, जिसमें तय किए गए कामों की समीक्षा के साथ सभी प्रांतीय समितियों के गठन की समीक्षा, पुनर्गठन, आगे प्रांतीय बैठकों की योजना इन सभी विषयों पर दो दिन तक यहाँ मंथन किया जाएगा. सुश्री डॉ. पंकज मित्तल ने शिक्षा में भारतीय भाषाओं के प्रयोग में आ रही बाधाओं के बारे में कहा कि पूर्व के काल में ऐसा वातावरण निर्माण किया गया कि विदेशी भाषाओं से ही हम सबका कल्याण होगा. इस मिथक को तोड़ने में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने प्रयास प्रारम्भ कर दिए हैं और जल्द ही कुछ सुखद परिणाम आएंगे. पद्मश्री भाई जी ने कहा कि अपना देश बहुत पुराना है. यहाँ की सांस्कृतिक विरासत के चलते ही राष्ट्रविरोधी विचार इस देश में हावी नहीं हो पाए. इजराइल भारत के साथ ही आजाद हुआ और अपने मिटे हुए हिब्रू लिपि को पुनः विकसित करके आधुनिक ज्ञान को हिब्रू भाषा में निर्मित कर दिया और स्वाभिमान के साथ खड़ा है, जबकि हम अभी पीछे हैं. मातृभाषा या प्रादेशिक भाषा में विश्व को ज्ञान देने के लिए हमें नए सिरे से काम करना पड़ेगा, तभी हम आधुनिक दौर की चुनौतियों का सामना कर सकेंगे. अंत में न्यास के अध्यक्ष दीनानाथ बत्रा जी ने कहा कि ईश्वर ने हमें श्रेष्ठ कार्य के लिए पृथ्वी पर भेजा है. श्रेष्ठता की तरफ हम सतत बढ़ें, स्वयं के साथ अपने साथी को श्रेष्ठ बनाएँ. क्रियाशील होना कार्यकर्ता का धर्म है, आत्मचिन्तन से हम परिवर्तन में सहायक बनें. कार्यक्रम का मंच संचालन दिल्ली प्रान्त के संयोजक संजय स्वामी ने किया तथा स्वागत भाषण वृषभ जैन ने किया. इस अवसर पर न्यास द्वारा प्रकाशित ‘भारतीय शिक्षा प्रणाली: सांख्यिकीय अवलोकन’ नामक पुस्तक का विमोचन भी किया गया.