कुरुक्षेत्र में गत दिनों विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के सभागार में उपनिषद् आधारित शिक्षा विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. इसके मुख्य वक्ता थे एस़ व्यासा विश्वविद्यालय, बंगलुरु के कुलपति डॉ़ रामचन्द्र भट्ट. डॉ़ भट्ट ने कहा कि पुरातन काल में जहां गुरुकुल पद्धति में छात्र के चहुंमुखी विकास पर जोर दिया जाता था,वहीं आज शिक्षा अर्थ-केन्द्रित हो गई है. जरूरत है कि शिक्षा के क्षेत्र में निष्ठा का महत्व बढ़े और छात्र व शिक्षक अपनी पुरातन पद्धति से कर्तव्यपारायण बनें. प्रयोग, प्रवचन, परिशीलन व परिष्कार के माध्यम से अनुभव किया जाये और उसे शिक्षा में प्राथमिकता पर रखा जाये. उपनिषद् के अनुरूप ज्ञानवर्धन ही शिक्षा का बेहतर विकल्प है. गोष्ठी के विशिष्ट अतिथि और प्राच्य विद्या संस्थान के निदेशक डॉ़ श्रीकृष्ण शर्मा ने कहा कि आजकल की शिक्षा पाश्चात्य रंग में रंगी हुई है. उपनिषदों पर आधारित शिक्षा में परा और अपरा दो प्रकार की विद्या आती है. परा विद्या के अंतर्गत जीवन की दृष्टि है तथा अपरा विद्या के अंतर्गत लोक व्यवहार आता है जो जीवनचर्या को सही तरह से चलाने के लिए आवश्यक है. कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के शैक्षणिक विषयक के अधिष्ठाता डॉ़ राघवेंद्र तंवर ने गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कहा कि मेरे लिये उपनिषद् का अर्थ एक लगन व जानने का जुनून है. आज क्या होगा, वह हम सब जान सकते हैं, लेकिन कल क्या होगा, यही हमारी जिज्ञासा है. यही जिज्ञासा उपनिषद् की धारणा है. उन्होंने विद्या भारती व इससे जुड़े विद्यालयों की प्रशंसा करते हुये कहा कि ये जीवन में गलत और सही पर निर्णय करने की क्षमता छात्रों में पैदा करते हैं. श्री अवनीश भटनागर, विद्या भारती, अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के महामंत्री श्री विजय गणेश कुलकर्णी और संयोजक डा़ रामेन्द्र सिंह ने भी अपने विचार रखे.