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एकात्मता तथा सामाजिक समरसता ही हिन्दू समाज का प्राण है – सामाजिक सद्भाव सम्मेलन, गुजरात

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gujarat.1गुजरात (विसंकें). सामाजिक समरसता मंच, गुजरात ने बुधवार 03 अगस्त को सामाजिक अग्रणियों तथा संतों-महंतों की उपस्थिति में “ सामाजिक सद्भाव सम्मेलन “ का ऊना, भावनगर में आयोजन किया. इस सम्मेलन में संत समाज ने एक आवाज में ऊना की घटना के पीड़ितों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की तथा पीड़ित का साथ देने के लिए संपूर्ण हिन्दू समाज से आह्वान किया. संतों ने कहा कि इस प्रकार की घटनाएं संपूर्ण समाज की मानसिकता का प्रतिबिंब न मानी जाए. कुछेक स्थापित हित रखने वाले लोग समाज की भावनाएं भड़का कर समाज को विघटित करने का प्रयास कर रहे हैं, हम सब को साथ मिलकर इस प्रकार के तत्वों को असफल बनाना है. एकात्म और समरस समाज का निर्माण करने के लिए हम सब कटिबद्ध हैं.

सम्मेलन के समारोप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पश्चिम क्षेत्र के संघचालक डॉ. जयंतीभाई भाड़ेसिया जी ने कहा कि ऊना के समधियाला गांव की घटना के संदर्भ में राजकीय एवं समाज विरोधी तत्व स्वहित के लिए शांति एवं समरसता नष्ट करने का प्रयत्न कर रहे हैं, ऐसे समय में पूजनीय साधू-संत समरसता के भागीरथ कार्य में लगे हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तो अपने स्थापन काल से ही हिन्दू समाज की समरसता के लिए प्रयत्नशील है.

सामाजिक सद्भाव सम्मेलन में संतों की उपस्थिति में समरसता के लिए प्रस्ताव पारित किया गया –

1. ऊना के समधियाला गांव की घटना तथा इस प्रकार की अन्य घटनाएं निंदनीय हैं, अमानवीय हैं.

2. गौ-रक्षा के नाम से होने वाले असामाजिक कृत्य की संत समाज कड़े शब्दों में निंदा करता है. गौ-रक्षा के नाम से होने वाली असामाजिक प्रवृति बंद होनी चाहिए. गौ-रक्षा के नाम से निर्दोष बंधुओं पर अत्याचार करना एक सामाजिक अपराध है. सरकार को भी ऐसे तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए.

3. अस्पृश्यता हिन्दू समाज का महारोग है, यह समाज के कुछ लोगों की मानसिकता है. संत समाज, हिन्दू समाज को इस मानसिक रोग से मुक्त करने के लिए कटिबद्ध है. अस्पृश्यता को संत समाज अमान्य करता है. समाज से ऊँचनीच का भेदभाव दूर होना चाहिए, अपने ही बंधुओं के साथ छुआछूत का व्यवहार करना पाप है. हिन्दू समाज इस पाप से मुक्त हो, यही प्रत्येक नागरिक का जीवन लक्ष्य बने, ऐसी संत समाज अपील करता है.

4. हिन्दू धर्म के चिंतन में प्राणी मात्र के हृदय में परमात्मा का वास है. अस्पृश्यता, ऊँचनीच का भेद अमान्य है. एकात्मता तथा सामाजिक समरसता ही हिन्दू समाज का प्राण है. हिन्दू मात्र इस जीवन मंत्र को समर्पित हो, ऐसी संत समाज अपेक्षा रखता है.

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